प्रतीक तिवारी
आजकल सनातन धर्म के देवी-देवताओं और पौराणिक कथा-कहानियों के साथ खिलवाड़ करने की होड़ सी लगी हमारे देश में। कभी कोई नेता राम और रामायण को लेकर अमर्यादित टिप्पणी कर देता है, तो कुछ लोग रामचरितमानस मानस की प्रतियों में आग लगाने लगते हैं। रही सही कसर बॉलीवुड और अन्य सिनेमा पूरी कर देते हैं। धार्मिक और पौराणिक कथाओं को अपने हिसाब से फेरबदल करके कुछ भी बना देना, ताकि दर्शकों को आनंद आए। धार्मिक चरित्रों के साथ अलग-अलग प्रकार के प्रयोग करना, उनकी छवि और मर्यादा से हटकर उनके चरित्र को समाज के आगे पेश कर देना। आज देवी-देवताओं को पूर्ण मनोरंजन के लिए के सिनेमा में इस्तेमाल किया जा रहा है। अश्लीलता, हिंसा, विद्रोह और विभिन्न व्यसनों को खुलेआम दिखाते-दिखाते अब बॉलीवुड ने सनातन धर्म को अपने फिल्मों को बनाने का जरिया बना लिया है। उन्हें बस दर्शकों के मनोरंजन से मतलब है चाहे उससे किसी धर्म का अपमान हो या किसी धार्मिक चरित्र का।
ऐसा ही काम किया गया है आदिपुरुष नामक फिल्म के निर्माण में। निर्माताओं ने रामायण और उसके पात्रों को आधार बनाकर इस फिल्म में रामायण जैसे पावन और पवित्र ग्रंथ के अपमान के साथ सनातन धर्म का उपहास उड़ाने की पुरजोर कोशिश की है।
इस फिल्म के निर्माता-निर्देशक का कहना है कि यह फिल्म वाल्मिकी रामायण पर केन्द्रित है, पर इस फिल्म को देखकर कहीं से ऐसा नहीं लगता की यह फिल्म ब्रह्मज्ञानी महर्षि वाल्मीकि जी द्वारा रचित आदिकाव्य रामायण पर बनी है। फिल्म में रामायण की कथा और चरित्रों को आधार बनाकर इसके मूल भाव को नष्ट करने की पूरी कोशिश की गई है।
आदिपुरुष फिल्म में रामायण को आधार बनाकर राम सहित सभी चरित्रों और उस काल एवं युग की सभ्यता, संस्कृति और आचार-विचार का घोर अपमान किया गया है। फिल्म निर्माण के क्षेत्र में मिलने वाले रचनात्मक छूट का इस फिल्म में गलत प्रयोग किया गया है। इसे कलियुग की रामायण बनाकर पेश किया गया है या राम और रामायण को अपमानित करने के लिए ही बना दिया गया है यह तो हमें नहीं पता, पर ऐसा जरूर लगता है कि फिल्म बनाने वाले मनोरंजन के लिए कुछ भी करने को तैयार रहते हैं।
इस फिल्म में राम की जगह रावण को ज्यादा प्रभावी दिखाया गया है। विशालकाय शरीर के साथ रावण को काले वस्त्रों में कोयले के खदान जैसे दिखने वाले खंडहर में रहते हुए और बड़े से चमगादड़ पर सवारी करने के साथ अजीबोगरीब आवाज निकालते हुए दिखाया गया है। इस फिल्म में रावण को कहीं पर भी पांडित्य दिखाया ही नहीं गया है जिसके लिए रावण प्रसिद्ध था। हर जगह रावण को विनाशकारी और अपराधी, पिसाचवत व्यवहार करने वाला ही प्रदर्शित किया गया है।
इस फिल्म में राघव (भगवान राम) बने प्रभास के चेहरे पर में सौम्यता दिखती ही नहीं है। जैसी छवि रामजी की हम सब के मन में रहती है उस छवि का इस फिल्म में दूर-दूर तक कोई नाता नहीं है। हर जगह क्रोधित, सशंकित और उतावला रूप दिखाया गया है। मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम की छवि इस फिल्म में है ही नहीं। यहां राम को एक क्रोधित योद्धा से ज्यादा कुछ दिखाया ही नहीं गया है। फिल्म में बजरंग (हनुमान जी) का किरदार निभा रहे देवदत्त नागे को बस थोड़ा वानर जैसा चेहरा दिखाकर हनुमान बना दिया गया है और अमर्यादित और असभ्य संवादों के साथ पेश किया गया है। शेष (लक्ष्मण) बने सनी सिंह को देखकर ऐसा लगता है कि मानो उनसे जबरन अभिनय कराया जा रहा हो। इनके अलावा सब पात्र कार्टून जैसे लगते हैं।
इस फिल्म का एक संवाद है जहां रावण का एक राक्षस सैनिक बजरंग को अशोक वाटिका में जानकी से बात करते देख लेता है। वो बजरंग से कहता है, ये तेरी बुआ का बगीचा है क्या जो हवा खाने चला आया। मरेगा बेटे आज तू, अपनी जान से हाथ धोएगा।’ फिल्म के एक सीन में इंद्रजीत, बजरंग की पूंछ में आग लगाने के बाद कहते हैं- ‘जली ना? अब और जलेगी। बेचारा जिसकी जलती है वही जानता है।’ इसके जवाब में बजरंग कहते हैं, ‘कपड़ा तेरे बाप का, तेल तेरे बाप का, आग भी तेरे बाप की, और जलेगी भी तेरे बाप की।’ फिल्म के एक सीन में जब लंका से लौटकर बजरंग आते हैं तो एक सवाल के जवाब में वे कहते हैं ‘ बोल दिया, जो हमारी बहनों को हाथ लगाएंगे, उनकी लंका लगा देंगे। शेष (लक्ष्मण) पर वार करने के बाद इंद्रजीत कहता है, ‘मेरे एक सपोले ने तुम्हारे इस शेष नाग को लंबा कर दिया। अभी तो पूरा पिटारा भरा पड़ा है।’ आदि ये संवाद किस हिसाब से लिखे गए, क्योंकि ये रामायण के हिसाब के डायलॉग तो नहीं हैं। फिल्म के मेकर्स ने अपने ऊट पटांग डायलॉग्स से इस कलयुगी बना दिया है। यही उनकी भारी गलती है।
इसके अलावा रहन-सहन, हाव-भाव, आचार-विचार और पहनावा आदि कहीं से भी यह फिल्म रामराज्य की प्रतीत नहीं होती हैं। न इस फिल्म में रामजी के मर्यादित गुण का प्रदर्शन हैं न लक्ष्मण के क्रोध और पराक्रम का, न रावण के पांडित्य का। केवल अमर्यादित संवाद और खराब वीएफएक्स का प्रयोग करके बना दिया गया है। राम और रामायण कोई ऐसी वस्तु नहीं है जिसका उपयोग लोगों के मनोरंजन और मौज मस्ती के लिए नये सिनेमा के प्रयोगों के साथ किया जाए। राम आस्था हैं, राम विश्वास हैं और राम मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान हैं। अगर ऐसे ही धार्मिक और पौराणिक तथ्यों सहित सनातन ग्रंथों को तोड़ मरोड़ के पेश किया जाता रहा तो आने वाली पीढ़ियों को यही लगेगा की हमारे देवता इसी प्रकार के होते हैं और उनकी छवि और स्वरूप इसी प्रकार के होते हैं। राम, रामायण और आदि धार्मिक कथाओं और पौराणिक परंपराओं का इस तरह का प्रदर्शन अगर भारत जैसे धर्मगर्भा राष्ट्र में होता है, तो यह बहुत ही चिंतनीय विषय है। क्योंकि ये रामायण, महाभारत आदि ग्रंथ हमारे देश की अमूल्य दैविक धरोहर हैं।
(लेखक स्वतंत्र पत्रकार हैं।)