प्रतीक तिवारी
चित्रकूट की धरती हमेशा से धर्म, इतिहास और रहस्यों का केंद्र रही है। यहां पर अनेकों प्रकार के आध्यात्मिक और पुरातात्विक रहस्यों ने लोगों को हमेशा से अचंभित किया है। आज हम चित्रकूट के दुर्गम बीहड़ बेधक के बारे में बाता रहे हैं। नैसर्गिक सुकून और सुन्दरता अपने चारों ओर बिखेरे हुए बेधक घाटी अपने में अनेक रहस्यों को समेटे हुए है। यह स्थान चित्रकूट जिला मुख्यालय से लगभग 58-60 की दूरी पर पाठा की विंध्य पर्वत श्रृंखलाओं से घिरे दुर्गम और दुष्कर रास्तों के बीच स्थित है। यहां से मध्य प्रदेश की सीमा भी शुरू हो जाती है। यह स्थान प्रकृति प्रेमियों के लिए किसी वरदान से कम नहीं है। इसी जंगल के बीचो-बीच राम भक्त हनुमान जी का एक प्राचीन मंदिर स्थित है। ये मंदिर अनेकों भक्तों के आस्था और विश्वास का केंद्र है। यह मंदिर देखने में तो बहुत छोटा है, लेकिन यहां की हनुमान जी की मूर्ति बहुत जागृत है, यहां बजरंगबली के दर्शन मात्र से भक्तों की हर मनोकामना पूर्ण हो जाती है। कहा जाता है कि यहां प्राचीन समय में अनेक ॠषि मुनियों ने साधनाएं की थीं और बजरंगबली की इस दिव्य प्रतिमा को स्थापित किया था। यहां कभी-कभी भक्तों द्वारा हवन पूजन और भंडारे का आयोजन भी किया जाता हैं।
यह स्थान प्रकृति और अध्यात्म का सुख एक साथ प्रदान करता है। यहां का वातावरण शहरी शोर-गुल से एकदम अछूता है। यहां स्थित प्राकृतिक झरना इस स्थान की सुन्दरता को और भी भव्यता प्रदान करता है। यहां पक्षियों की सुमधुर कलरव और अनेक प्रकार के जंगली जानवरों की आवाजें इस क्षेत्र को रहस्यों के आगोश में समेटे रहती है।
रात के समय घुंघरुओं की आती है आवाजें
यह जंगल बेहद घना और दुर्गम है। वृक्षों की सघनता और चारों तरफ से विंध्य पर्वत श्रृंखलाओं से घिरे होने से यहां सूर्य की रोशनी पहुंच नहीं पाती। इस कारण यह स्थान यहां के रहस्यों को और बल प्रदान कर देता है। बेधक के जंगल के विषय में यह भी कहा जाता है कि यहां रात्रि के समय कोई व्यक्ति रूक नहीं सकता, क्योकिं यहां अप्सराओं का वास है। ऐसा कहा जाता है कि यहां रात के समय घुंघरुओं की आवाजें सुनाई देती हैं।
रानीपुर वन्यजीव अभ्यारण्य के अंतर्गत आने वाले इस जंगल को डाकुओं की शरणस्थली भी कहा जाता है। घने वनों और दुर्गम रास्तों के होने से यहां डाकुओं को छुपने के लिए अनुकूल स्थान है। इस जंगल में लोग बहुत कम आते हैं और अगर आते भी हैं तो दो-तीन के समूह में। इस जंगल के खतरनाक होने का अंदाजा आप इसी बात से लगा सकते हैं कि आम लोगों का मानना है कि यहां जाना मतलब जान जोखिम में डालना।
कठिन है पहुंचने का रास्ता
अगर इस जंगल में पहुंचने वाले रास्ते की बात करें तो वैसे तो कई रास्ते हैं, लेकिन यहां अंदर जाने के लिए निहि गांव से होकर रास्ता जाता है। काफी पथरीला रास्ता और झाड़ियों से घिरा ये जंगल काफी सन्नाटे भरा है। बेधक जाने का रास्ता आज भी दुर्गम और कठिन है, इसलिए यहां अकेले जाना सही नहीं है, क्योंकि जंगल में अनेक प्रकार के खूंखार जानवर हैं। वैसे यहां जाने के दो रास्ते हैं। पहला रास्ता निहि गांव से होकर अंदर जाता है। जंगलों से भरा रास्ता है, लगभग 10-15 किमी दूर का रास्ता तय करना पर पड़ता है। दूसरा मध्य प्रदेश सीमा से जाता है जहां आप प्रतापपुर से जा सकते हैं। अंत में हम यही कहना चाहेंगे कि मध्य प्रदेश और उत्तर प्रदेश दोनों सरकारों को मिलकर इस रहस्यमय प्राकृतिक स्थल के लिए कुछ करना चाहिए जिससे यह स्थान और भी विख्यात हो सके।
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