30 जनवरी वर्ष 1948, दिन शुक्रवार। स्थान बिरला भवन, नई दिल्ली। शाम का समय थाजब नाथूराम गोडसे आता है और गांधी की गोली मारकर हत्या कर देता है। शाम का समय था जब नाथूराम गोडसे आता है और गांधी की गोली मारकर हत्या कर देता है।
अब सवाल उठता है कि गांधी हत्याकांड का क्या इतिहास बस इतना ही है, आपमें से अधिकतर लोगों का उत्तर होगा हाँ। क्योंकि हमें बताया और पढ़ाया ही यही गया है। लेकिन क्या यही एक सत्य है या फिर हमसे कुछ छिपाया गया। कहीं इस घटना को कोई किसी अवसर की तरह तो नहीं प्रयोग कर रहा था। क्योंकि बड़े बुजुर्ग कहते हैं कि अगर झूठ को भी 100 बार बोला जाए तो वह भी सत्य लगने लगता है।
वास्तव में साम्यवादी विचारधारा के प्रति झुकाव रखने वाले जवाहरलाल नेहरू की आरएसएस के प्रति दृष्टि सही नहीं थी। यहीं कारण था कि जब वर्ष 1948 में गांधी की हत्या हुई तो नेहरू सहित तमाम साम्यवादियों को संघ को बदनाम करने और उसे खत्म करने का मौका मिल गया। और जन-जन तक यह प्रसारित करवाया गया कि ‘नाथूराम गोडसे संघ का स्वयंसेवक है और गांधीजी की हत्या का षड्यंत्र आरएसएस ने रचा है।’
यह आरोप लगवाकर कांग्रेस की तत्कालीन सरकार ने राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ पर न केवल प्रतिबंध लगाया, बल्कि देशभर में उससे संबंद्ध नागरिकों को जेल में ठूंस दिया।
वहीं दूसरी तरफ अहिंसा के पुजारी के अनुयायियों ने देश के कई हिस्सों में रक्त की नदियाँ बहा दी और चुन-चुन कर कई हिस्सों में ब्राह्मणों को मारा गया। उनका जुर्म केवल इतना था कि वह भी गोडसे की जाति के थे। स्वतंत्र भारत के इतिहास का यह वह काला अध्याय है जिसके बारे में लोगों को कभी जानने ही नहीं दिया गया।
लेकिन सरकार के तमाम दुष्चक्र के बाद भी गांधीजी की हत्या में संघ की किसी भी प्रकार की भूमिका साबित नहीं हुई। नतीजा, सरकार को संघ से प्रतिबंध हटाना पड़ा।
उस समय इस मामले में न्यायालय ने कहा था कि गोडसे ने गांधी को मारा और संघ या संघ के लोगों ने गांधी को मारा, दोनों कथनों में बहुत बड़ा अंतर है। नाथूराम गोडसे और संघ के संबंध में स्वयं गोडसे ने अदालत में कहा था कि वह किसी समय संघ की शाखा जाता था लेकिन बाद में उसने संघ छोड़ दिया था।
यदि यह माना जाए कि एक समय गोडसे संघ का स्वयंसेवक था, इसलिए संघ गांधी हत्या के लिए जिम्मेदार है। तब यह भी बताना उचित होगा कि एक समय नाथूराम गोडसे कांग्रेस का पदाधिकारी रह चुका था। इस हिसाब से तो कांग्रेज का भी गांधी हत्या में उतना ही हांथ है जितना संघ का।
लेकिन संघ विरोधियों ने नाथूराम गोडसे और कांग्रेस के संबंध को कभी भी प्रचारित नहीं किया। इससे स्पष्ट होता है कि आज की तरह उस समय का तथाकथित बौद्धिक नेतृत्व, वामपंथी लेखक/इतिहासकार और कांग्रेस का नेतृत्व ऐन केन प्रकारेण संघ को कुचलना चाहता था।
गांधी हत्या की जांच के लिए गठित कपूर आयोग को दी गई बनर्जी की गवाही इस मामले में बहुत महत्त्वपूर्ण थी, क्योंकि गांधीजी की हत्या के समय आरएन बनर्जी केन्द्रीय गृह सचिव थे। बनर्जी ने अपने बयान में कहा था कि यह साबित नहीं हुआ है कि अपराधी संघ के सदस्य थे। वे तो संघ की गतिविधियों से संतुष्ट नहीं थे। संघ के खेलकूद, शारीरिक व्यायाम आदि को वे व्यर्थ मानते थे। वे अधिक उग्र और हिंसक गतिविधियों में विश्वास रखते थे। -(कपूर आयोग रिपोर्ट खंड 1 पृष्ठ 164)
गांधी हत्या की प्राथमिकी तुगलक रोड थाने में दर्ज कराई गई थी। इस प्राथमिकी में राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ का कहीं कोई जिक्र भी नहीं था लेकिन गांधी की हत्या के बाद ही तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने अपने भाषणों में गांधी हत्या के लिए राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ को दोष देना शुरू कर दिया। अदालत द्वारा दोषी नहीं ठहराए जाने पर भी राजनीतिक और वैचारिक षड्यंत्र के तहत गांधी हत्या के मामले में आरएसएस को जबरदस्ती घसीटा गया।
महात्मा गांधी की हत्या से संबंधित संवेदनशील मामले को सुनवाई के लिए न्यायमूर्ति आत्मा चरण की विशेष अदालत को सौंपा गया था, कार्रवाई के बाद नाथूराम गोडसे और नारायण आप्टे को मृत्युदंड तथा शेष पाँच को आजन्म कारावास की सजा सुनाई गई थी।
तब भी कांग्रेस और वामपंथियों ने अपने राजनीतिक प्रतिद्वंद्वी विनायक दामोदर सावरकर को इस मामले में फंसाने का दुष्प्रयास किया लेकिन उन्हें मुहं की खानी पड़ी, गाँधी हत्या मामले में न्यायालय ने सावरकर को निर्दोष बरी किया। इसी फैसले में न्यायालय ने स्पष्ट तौर पर यह भी कहा कि गांधी की हत्या से संघ का कोई लेना-देना नहीं है।
स्पष्ट है कि न्यायालय के निर्णय के बाद बात यहीं खत्म हो जानी चाहिए थी। लेकिन, नहीं। न्यायालय के निर्णय के बाद भी गांधी हत्या के लिए संघ को बदनाम करने का दुष्प्रयास बंद नहीं हुआ। बाद में भी
वर्ष 1965-66 में तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा ने गांधी हत्या मामले की दोबारा जाँच के लिए न्यायमूर्ति जीवनलाल कपूर आयोग ने अपनी रिपोर्ट में घोषणा की थी कि महात्मा गांधी की जघन्य हत्या के लिए संघ को किसी प्रकार जिम्मेदार नहीं ठहराया जा सकता। – (रिपोर्ट खंड 2 पृष्ठ 76)
हमें इस सच को स्वीकार करना होगा कि गांधी हत्या में संघ को बार-बार इसलिए घसीटा जाता है ताकि सत्ताधीश और वामपंथी विचारक अपने निहित स्वार्थ पूरे कर सकें। संघ विरोधियों ने अब तक गांधी हत्या प्रकरण को राजनीतिक लाभ के लिए रखा था। लेकिन उन्हें यह समझना चाहिए कि अब प्रोपेगंडा राजनीति का दौर बीत चुका है। सूचना प्रोद्योगिकी के युग में तथ्यों को छिपाकर जनता जनार्दन को मूर्ख बनाने के दिन अब बीत चुके हैं। अब जनता तथ्यों को खोजना भी जानती है और सच को उघाड़ना भी।