आज देश में स्वच्छता को लेकर जोर-शोर से अभियान जारी है। 21वीं सदी में वर्तमान सरकार भी लोगों को स्वच्छता के प्रति जागरूक करने और परिवेश को साफ सुथरा रखने के लिए स्वच्छ भारत जैसे अभियान चला रही है। जिसका उद्देश्य है कि हम स्वच्छ और स्वस्थ रहे ताकि हमारा परिवेश और देश भी साफ रहे। लेकिन क्या आप जानते है कि स्वच्छता और जन जागरूकता का जो अभियान आज देशभर में जारी है।
आज से लगभग 147 वर्ष पूर्व महाराष्ट्र के विदर्भ में जागृत हुआ था। विदर्भ के एक सन्त हुए जिन्होंने आजीवन स्वच्छता और समरसता के क्षेत्र में समाज प्रबोधन का कार्य किया। उन्होंने झाड़ू लेकर तीर्थस्थानों और मेलों में स्वच्छता अभियान चलाया, इसके साथ-साथ उन्होंने गाँव-गाँव भ्रमण कर हरि कीर्तनों से पशुबलि, जात-पात, दहेज जैसी कुरीतियों के जालों को नष्ट करते के लिए कार्य किया।
उन्होंने सामाजिक जीवन की मैली गँगा को कीर्तन के जरिये शुद्ध करने का आन्दोलन चलाया, वे महान सन्त थे गाडगे बाबा। जिनका जन्म 23 फरवरी वर्ष 1876 को महाराष्ट्र के अमरावती जिले के रोडगाँव में हुआ था।
सन्त गाडगे बाबा को बचपन में लोग डेबूजी के नाम से पुकारते थे। डेबूजी को अंधश्रद्धा, पशुबलि आदि पर विश्वास नहीं था। यहीं कारण था की जब उन्हें पुत्री रूपी महारत्न की प्राप्ति हुई तो उन्होंने उसके नामकरण संस्कार के अवसर पर पशुबलि न देकर लड्डू वितरित किए।
डेबूजी का गृहस्थ जीवन में बिल्कुल भी मन नहीं लगा। वह जातपात में बंटे समाज, अन्धविश्वास और उसमें व्याप्त गंदगी को देखकर बेचैन रहते थे। ऐसे समय में डेबूजी की भेंट एक योगी से हुई और उनसे ज्ञान प्राप्ति कर वह सन्त गाडगे बाबा कहलाए। फरवरी 1905 को बाबा ने शरीर पर एक वस्त्र पहने, हाथ में लाठी और मिट्टी का घड़ा लेकर सिद्धार्थ की तरह गृह त्याग दिया…और अपना पूरा जीवन उन्होंने सनातन मूल्य नर ही नारायण है के भाव के साथ व्यतीत किया। उन्होंने धर्मशालाओं, गौशालाओं, शिक्षालयों की स्थापना करने में अपना महत्वपूर्ण योगदान दिया ।
गाडगे बाबा का मानना था कि अगर भोजन के लिए थाली नहीं है, तो हथेली पर रखकर भोजन कर लो, लेकिन बच्चों को शिक्षा संस्कार जरूर दिलाओं, स्वच्छता को लेकर गाडगे बाबा इतने प्रतिबद्ध थे, वे अपने साथ सदैव झाड़ू रकते और जहाँ भी गंदगी मिलती वहाँ सफाई शुरू कर देते।
गाडगे जी का पूरा जीवन निर्धनता में बीता, लेकिन लोगों से दान के रूप में उन्हें जो पैसा मिलता था, उससे उन्होंने महाराष्ट्र के कोने-कोने में अनेक धर्मशालाएं, गौशालाएं, विद्यालय, चिकित्सालय तथा छात्रावासों का निर्माण कराया।
सनातनी संस्कार सादा जीवन उच्च विचार से पोषित सन्त गाडगे बाबा ने अपने लिए एक छोटी सी कुटिया तक नहीं बनवाई। उन्होंने धर्मशालाओं के बरामदे या आसपास के किसी वृक्ष के नीचे ही अपनी सारी जिंदगी बिता दी।
उनकी सम्पति की बात करे तो एक लकड़ी, फटी-पुरानी चादर और मिट्टी का एक बर्तन जो खाने-पीने और कीर्तन के समय ढपली का काम करता था, यही उनकी सम्पत्ति थी।
सन्त गाडगे बाबा के जीवन का एकमात्र ध्येय था, लोक सेवा। दरिद्र नारायण के भाव से दीन-दुखियों तथा उपेक्षितों की सेवा को ही वे ईश्वर भक्ति मानते थे। उनका मानना था कि ईश्वर इस समाज के प्रत्येक प्राणी में विद्यमान है। मनुष्य को चाहिए कि वह इस भगवान को पहचाने और उसकी तन-मन-धन से सेवा करें।
भूखों को भोजन, प्यासे को पानी, नंगे को वस्त्र, अनपढ़ को शिक्षा, बेकार को काम, निराश को धैर्य और मूक जीवों को अभय प्रदान करना ही भगवान की सच्ची सेवा है।
सन्त गाडगे द्वारा स्थापित ‘गाडगे महाराज मिशन’ आज भी समाज सेवा में रत है। मानवता के महान उपासक सन्त गाडगे बाबा 20 दिसम्बर 1956 को ब्रह्मलीन हो गए, सनातम धर्म के मूल्यों को अपने आचरण से सिखाने वाले महान सन्त गाडगे बाबा को कोटि-कोटि प्रणाम।