Karni Mata Temple History: भारत एक ऐसा देश है जो कि कई रहस्यों और चमत्कारों से भरा पड़ा है, यहां कई ऐसे धार्मिक स्थल है, जिनके रहस्यों का खुलासा आज तक विज्ञान भी नहीं कर सकी है।
वहीं उन्हीं में से एक है राजस्थान का सबसे प्रसिद्ध मंदिर – करणी माता का मंदिर जो कि अपने आप में कई रहस्य समेटे हुए हैं, यह मंदिर बीकानेर से करीब 30 किलोमीटर दूरी पर देशनोक में स्थित एक ऐसा हिन्दू मंदिर है, जिसमे 25 हजार से भी ज्यादा चूहे हैं, इसलिए इसे ”चूहों का मंदिर” भी कहा जाता है।
राजस्थान के इस अनूठे मंदिर में चूहों को दूध, लड्डू एवं अन्य पकवानों का भोग लगाया जाता है एवं मंदिर में आने वाले श्रद्धालुओं को चूहों का झूठा प्रसाद वितरित किया जाता है।
ऐसी मान्यता है कि करणी माता के दर पर आने वाले सभी भक्तों की मनोकामनाएं पूर्ण होती है और मनवांछित फल मिलता है, चलिए जानते है करणी माता मंदिर का इतिहास, इसमें रहने वाले चूहों की वजह एवं इससे जुड़े कुछ रोचक एवं अनसुने तथ्यों के बारे में –
करणी माता मंदिर का निर्माण व इतिहास
राजस्थान के बीकानेर में स्थित यह प्रसिद्ध मंदिर करणी माता को समर्पित है। इस मंदिर का निर्माण 20वी शताब्दी में बीकानेर रियासत के महाराजा गंगा सिंह ने करवाया था।
ऐसा माना जाता है कि माता करणी बीकानेर राजघराने की कुलदेवी हैं। दरअसल, माता करणी को मां दुर्गा का साक्षात अ्वतार माना जाता है। वे एक बेहद बुद्दिजीवी एवं ज्ञानी महिला थी।
करणी माता 1387 ईसवी में एक शाही परिवार में रिघुबाई के नाम से जन्मी थी। उनकी शादी किपजी चारण से हुई थी, लेकिन विवाह के कुछ समय पश्चात ही माता करणी का संसारिक मोहमाया से मन उब गया फिर उन्होंने अपने पति किपोजी चारण की शादी अपने ही छोटी बहन गुलाब से करवा दी और एक तपस्वी की तरह अपना जीवन व्यतीत करने का फैसला लिया।
इस दौरान उन्होंने खुद को मां जगदंबा की भक्ति में पूरी तरह समर्पित कर दिया।
वहीं उनके धार्मिक काम और चमत्कारी शक्तियों की वजह से उनकी ख्याति आस-पास फैल गई। लोग उनका काफी आदर और सम्मान करने लगे एवं दुर्गा मां का अवतार मानकर उनकी आराधना करने लगे।
करीब 151 साल तक जीवित रहीं थी करणी माता
इतिहासकारों का मानना है कि राजस्थान में प्रसिद्ध करणी माता करीब 151 साल तक जिंदा रही थी। वहीं जहां आज यह प्रसिद्ध मंदिर स्थित है, वहां बनी एक गुफा में कऱणी माता अपनी इष्ट देव की आराधना करती थी, वहीं आज भी यह गुफा करणी माता मंदिर के परिसर में स्थित है।
करीब 151 सालों तक जीवित रहने के बाद 1538 ईसवी में करणी माता ज्योतिर्लिंन हो गईं थी। जिसके बाद करणी माता की मूर्ति को इस गुफा में स्थापित कर दिया गया। फिर बाद में बीकानेर के महाराजा गंगा सिंह ने करीब यहां करणी माता का मंदिर बनवाया दिया था, वहीं आज इस मंदिर से हजारों भक्तों की आस्था जुड़ी हुई है।
करणी माता मंदिर की शानदार संरचना एवं आर्कषक बनावट
राजस्थान के बीकानेर में स्थित एक शानदार मंदिर राजपूत औऱ मुगल वास्तु शैली का इस्तेमाल कर बनवाया गया है। करणी माता का मंदिर संगममर के पत्थरों से बना हुआ है। यह मंदिर देखने में काफी आर्कषक और सुंदर है।
इस मंदिर की दीवारों पर की गई खूबसूरत नक्काशी इस मंदिर की सुंदरता पर चार चांद लगाती है। इसके साथ ही मां जगदम्बा की साक्षात अवतार माने जाने वाली करणी माता के मंदिर में बने खिड़की, दरवाजों और दीवारों में बेहतरीन कारीगिरी की गई है, जो कि देखती ही बनती है।
हिन्दुओं की धार्मिक आस्था से जुड़ा इस प्रसिद्ध मंदिर के दरवाजे को बीकानेर रियासत के महाराजा गंगा सिंह ने चांदी का बनवाया था। इस मंदिर पर रखा सोने का छत्र और चूहों के भोग के लिए रखी चांदी की विशाल पारात भी मंदिर के मुख्य आर्कषण हैं।
इस मंदिर की धार्मिक मान्यताओं और इसकी खूबसूरती को देखने दूर-दूर से लोग यहां आते हैं और करणी माता का आशीर्वाद प्राप्त करते हैं।
करणी माता मंदिर में चूहों से जुड़ी धार्मिक मान्यताएं
राजस्थान में करणी माता के प्रसिद्ध मंदिर में 25 हजार से भी ज्यादा चूहों हैं। मंदिर में इन चूहों से कई रहस्य और धार्मिक मान्यताएं जुड़ी हुई हैं। ऐसा कहा जाता है, ये चूहे राजस्थान की माता करणी के वंशज माने जाते हैं।
इन मंदिर में चूहों की संख्या इतनी ज्यादा है कि यहां दर्शन के लिए आने वाले भक्तों को माता करणी मंदिर के प्रमुख प्रतिमा पर पहुंचने के लिए अपने पैर घसीटते हुए पहुचंना पड़ता है, ऐसी मान्यता है कि, अगर एक भी चूहा भक्त के पैर के नीचे आकर घायल हो जाता है तो अशुभ माना माना जाता है। और यदि गलती से किसी चूहे की मृत्यु हो जाती है उसी जगह पर एक चाँदी का चूहा बनाकर रख दिया जाता है,
वहीं अगर करणी माता के मंदिर में दर्शन करने आने वाले भक्तों को सफेद चूहे के दर्शन होते हैं तो इसे काफी शुभ माना जाता है। ऐसी मान्यता है कि सफेद चूहे के दर्शन मात्र से ही भक्तों की सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती है।
यहां के चूहों को ”काबा” के नाम से जाना जाता है। ये हजारों चूहे करणी माता के मंदिर में संध्या वंदन एवं मंगला आरती के समय बिलों से बाहर आते हैं। वहीं राजस्थान के इस प्रसिद्ध करणी माता के मंदिर में दर्शन के लिए आए भक्तगण इन चूहों भोग लगाते हैं एवं इनका जूठा प्रसाद भी ग्रहण करते हैं।
20 वीं शताब्दी में बीकानेर के महाराजा गंगा सिंह के द्धारा निर्मित इस प्रसिद्ध करणी माता मंदिर को, चूहों की ज्यादा संख्या होने की वजह से इसे ”मूषक मंदिर” या फिर चूहों का मंदिर भी कहा जाता है।
हजारों की तादाद में भी चूहे होने के बाबजूद नहीं आती दुर्गन्ध एवं नहीं फैलती बीमारी
मां जगदम्बा का साक्षात अवतार माने जाने वाली राजस्थान का प्रसिद्ध करणी माता मंदिर में हजारों की तादाद में चूहे हैं, यहां तक कि यहां भक्तों को पैर जमीन पर घसीटकर चलना पड़ता है, लेकिन फिर भी यहां चूहों की किसी तरह की दुर्गन्ध नहीं आती है, साथ ही आज तक इन चूहों से किसी भी तरह की बीमारी नहीं फैली है।
जबकि आमतौर पर चूहें आमजनता के लिए काफी खतरनाक होते हैं, इनसे प्लेग जैसी जानलेवा बीमारी फैलती है।
वहीं आश्चर्य की बात तो यह है कि इस मंदिर में पहले प्रसाद चूहों को चढ़ाया जाता है, और फिर उनका जूठा प्रसाद यहां आने वाले भक्तों को वितरित किया जाता है। बता दें कि आज तक कोई भी भक्त चूहों का जूठा प्रसाद खाकर बीमार नहीं पड़ा है।
करणी माता के वंशज माने जाते हैं ये चूहे
मां जगदंबा का साक्षात अवतार माने जानी वाली राजस्थान की प्रसिद्ध करणी माता मंदिर में रहने वाले हजारों चूहों से कई रहस्य जुड़े हुए हैं। इस माता मंदिर में रहने वाले चूहों को करणी माता की संतान या वंशज बताया जाता है।
इससे जुड़ी कथा के मुताबिक एक बार करणी माता का सौतेला बेटा लक्ष्मण, जो कि उनके पति किपोजी चारण और उनकी छोटी बहन गुलाब का पुत्र था। वह कोलायत में बने हुए एक सरोवर में पानी पीने की कोशिश के दौरान डूब गया और उसकी तुरंत मृत्यु हो गई।
वहीं जब यह बात करणी माता को पता चली तो, तब उन्होंने मृत्यु के देवता यमराज की कठोर तपस्या कर अपने सौतेले बेटे को फिर से जीवित करने की प्रार्थना की, लेकिन पहले तो यमराज ने लक्ष्मण को फिर से जीवित करने के लिए मना कर दिया।
लेकिन बाद में उन्होंने करणी माता की कठोर आराधना से प्रसन्न होकर उनके सौतेले पुत्र लक्ष्मण को फिर से जीवित कर दिया। इसलिए, करणी माता के मंदिर में इन चूहों को मां का बेटा माना जाता है।
इसके अलावा, मंदिर में इन चूहों से जुड़ी अन्य लोककथा के मतुाबिक, एक बार करीब 20 हजार सैनिकों की विशाल सेना बीकानेर के पास स्थित देशनोक पर हमला करने के उद्देश्य से आई।
जिसके बाद देशनोक की सुरक्षा के लिए करणी माता ने अपनी चमत्कारी शक्ति और प्रताप से इन सैनिकों को चूहा बना दिया और उन्हें अपनी सेवा में रख लिया था, ऐसा माना जाता है कि तब से ये चूहे बेटे के रुप में करणी माता की सेवा कर रहे हैं।
करणी माता मंदिर दर्शन का समय
वैसे तो यह मंदिर श्रद्धालुओं के लिए सुबह 4.30 बजे से रात 10 बजे तक खुला रहता हैं। लेकिन सुबह पांच बजे मंगला आरती और सायं सात बजे आरती के समय चूहों का जुलूस तो देखने लायक होता है।
कैसे पुहंचे करणी माता मंदिर
राजस्थान के इस प्रसिद्ध तीर्थस्थल माता करणी के दर्शन के लिए दूर-दूर से भक्तगण आते हैं।
यह बीकानेर से करीब 30 किलोमीटर की दूरी पर देशनोक में स्थित है। देशनोक रेलवे स्टेशन बीकानेर-जोधपुर रेल मार्ग पर स्थित है, जहां से राजस्थान के आसपास के इलाके काफी अच्छी रेल सुविधा से जुड़े हुए हैं।
वहीं करणी माता मंदिर तक पहुंचने के लिए बीकानेर से कई बेहतरीन बस और टैक्सी सेवाएं भी उपलब्ध हैं। इसके साथ ही यहां श्रद्धालुओं के रहने और भोजन के लिए भी काफी अच्छी धर्मशालाएं भी बनी हुई हैं।
राजस्थान के प्रसिद्ध करणी माता के मंदिर में साल में दो बार नवरात्रों के दौरान मेला भी लगता है। इस दौरान इस मेले को देखने दूर-दूर से लोग आते हैं। इसके साथ ही लोग यहां मुंडन करवाने एवं अन्य मनौतियों को लेकर यहां आते हैं एवं करणी माता का आशीर्वाद लेते हैं।