Peppermint Farming: दवा से लेकर ब्यूटी प्रोडक्ट और खाने-पीने की चीजों में इस्तेमाल होने वाले पिपरमेंट की मांग लगातार बढ़ती जा रही है। पिपरमेंट की सबसे अधिक खेती प्रतापगढ़ जिले के रानीगंज कैथौला, बभनपुर, सारीपुर, पयागीपुर, अगई सहित दर्जनों गांवों में होती है। 90 दिन से अधिक दिनों में तैयार होने वाली इस फसल में किसान कुछ ही समय में मुनाफा कमा सकते हैं।

जनवरी माह के अंत से डाली जाती हे मेंथा की बेहन

लालगंज तहसील क्षेत्र के सारीपुर गांव के प्रगतिशील किसान पंच लाल वर्मा, बबनपुर के रामेश्वर, धीरेंद्र कुमार, पयागीपुर के राकेश कुमार, बभनपुर के पिंकू पटेल बताते हैं कि जनवरी माह के अंत से इसका बेहन किसान डाल देते। माह भर बाद इसकी रोपाई होने लगती है। जुलाई तक फसल काट ली जाती है। फिलहाल क्षेत्र के दर्जनों किसान 200 बीघे से अधिक की खेती कर रहे हैं। कई गैर सरकारी संस्थाएं भी मेंथा की प्रगतिशील खेती के लिए किसानों को प्रेरित करते हैं। सीमैप ने सिम क्रांति, सिम कोसी सहित कई किस्में विकसित की है तो वहीं कुछ संस्थाएं किसानों को कम लागत में ज्यादा पैदावार के तरीके बता रही हैं। किसान श्रीपाल प्रधान, गेंदा लाल पटेल, नरेंद्र पटेल, वीरू पटेल, राजेश यादव, आदि किसानों ने बताया कि इस समय पिपरमेंट का भाव 980 रुपये प्रति किलो है। यहां तक कि अधिक डिमांड होने पर इसे दो हजार रुपये प्रति किलो की दर से भी बिक्री की गई है।


एक बीघे में 40 किलो की पैदावार

मेंथा की खेती करने वाले किसान बताते हैं कि एक बीघे में न्यूनतम 40 किलो मेंथा तैयार हो जाता है। अगर फसल अच्छी तरह से पैदा हो गई तो उसमें 10 से 15 किलो प्रति बीघे और बढ़ जाता है।

कई प्रांतों में जाता है मेंथा

जैसे आंवले के उत्पाद की बिक्री गैर जनपदों ही नहीं बल्कि कई प्रांतों में होती है, वहीं मेंथा की भी खपत कानपुर, नोएडा, कोलकाता के अलावा मध्य प्रदेश सहित अन्य कई प्रांतों में होती है।

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By pratik khare

पत्रकार प्रतीक खरे झक्कास खबर के संस्थापक सदस्य है। ये पिछले 8 वर्ष से पत्रकारिता के क्षेत्र में सक्रिय हैं। इन्होंने कई समाचार पत्र, पत्रिकाओं के साथ - साथ समाचार एजेंसी में भी अपनी सेवाएं दी है। सामाजिक मुद्दों को उठाना उन्हें पसंद है।

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