happy independence day : भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में अगर हमें संघ की भूमिका को जानना हैं तो उससे पहले हमें राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के संस्थापक डॉ. केशव बलिराम हेडगेवार जी के जीवन को भी जानना पड़ेगा।
क्योंकि जिस व्यक्ति ने अपना पूरा जीवन राष्ट्र निर्माण और मातृभूमि की सेवा में लगा दिया हो, आज कुछ तथाकथित बुद्धिजीवी वर्ग अपने आकाओं को खुश करने के लिए, भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में उनकी भूमिका के सबूत मांग रहे हैं और इतना ही नहीं अपने कुतर्कों से उनके योगदान पर प्रश्नचिन्ह खड़े कर रहे हैं।
जबकि दूसरी ओर यही तथाकथित बुद्धिजीवी वर्ग भारतीय स्वतंत्रता को महात्मा गांधी और कांग्रेस द्वारा किए गए प्रयासों का परिणाम बताती हैं और बड़ी चालाकी से लाल, बाल और पाल, नेताजी सुभाषचंद्र बोस, वीर सावरकर जैसे अनगिनत क्रांतिवीरों की उपेक्षा करते हुए उनके द्वारा किए गए प्रयासों को भी मान्यता देना जरूरी नहीं समझते हैं। जबकि उन्होंने मां भारती के लिए अपना सर्वस्व न्योछावर कर दिया।
डॉ. हेडगेवार जी भी उन्हीं स्वतंत्रता सेनानियों में से एक थे जो बचपन से ही क्रांतिकारी स्वभाव के थे। मात्र 10 वर्ष की आयु में ही उन्होंने रानी विक्टोरिया के राज्यारोहण की 50वीं जयंती पर बांटी गई मिठाई यह कहकर फेक दिया था कि विदेशी राज्य की खुशियां हम क्यों मनाए।
16 वर्ष की आयु में जब उनकी कक्षा में अंग्रेजी निरीक्षक निगरानी के लिए स्कूल पहुंचा उस वक्त उन्होंने सहयोगियों के साथ मिलकर वंदे मातरम का जयघोष किया। जिसके चलते उन्हें स्कूल से निकाल दिया गया था।
1910 में वे मेडिकल की पढ़ाई के लिए कोलकाता चले गए क्योंकि कोलकाता समय क्रांतिकारियों का गढ़ था। मेडिकल की पढ़ाई पूरी करने के बाद डॉ. हेडगेवार 1915 में नागपुर लौट गए और ग्रैंड ओल्ड पार्टी ‘कांग्रेस’ में सक्रिय भूमिका निभाने लगे।
1920 में कांग्रेस के नागपुर अधिवेशन में डॉ. हेडगेवार ने पूर्ण स्वराज्य को लक्ष्य बनाने का प्रस्ताव रखा तब इसे अस्वीकार कर दिया गया जबकि नौ साल बाद कांग्रेस के लाहौर अधिवेशन में इस प्रस्ताव को स्वीकार कर लिया गया। 1921 एवं 1930 में डॉ. हेडगेवार सत्याग्रह में भाग लिया और जेल भी गये।
इस सबके बीच एक प्रश्न डॉ. हेडगेवार को सतत सताता रहता था कि 7000 मील दूर से व्यापार करने आए मुट्ठी भर अंग्रेज, इस विशाल देश पर राज कैसे करने लगे? जरूर हममें कुछ दोष होंगे। उनके ध्यान में आया कि हमारा समाज आत्म-विस्मृत हैं और बंटा हुआ हैं जिसका लाभ लेकर अंग्रेज यहां राज कर सके। अगर स्वतंत्रता मिल भी गई तो कल फिर इतिहास दोहराया जाएगा।
इसलिए डॉ. साहब ने समाज को आत्मगौरव युक्त, जागृत, संगठित करने एवं दोषों से मुक्त करने के लिए वर्ष 1925 में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की स्थापना की। संघ के स्वयंसेवक राष्ट्रीय हित की सभी गतिविधियों में सक्रिय रहते थे।
जब वर्ष 1938 में हैंदराबाद निजाम के द्वारा हिन्दुओं पर अत्याचार के खिलाफ हिन्दू महासभा और आर्य समाज के सत्याग्रह में अनेक स्वयंसेवकों ने भाग लिया था ।
08 अगस्त 1942 को महात्मा गांधी ने ‘अंग्रेजों भारत छोड़ो’की ऐतिहासिक घोषणा की। इसके दूसरे दिन से ही विदर्भ में अमरावती, वर्धा और चंद्रपुर में विशेष आन्दोलन हुए। यहां आन्दोलन का नेतृत्व कांग्रेस के उद्धवराव कोरेकर और संघ के कार्यकर्ता दादा नाईक, बाबूराव बेगडे, अण्णाजी कर रहे थे। इस आन्दोलन में अंग्रेजों की गोली से एकमात्र मृत्यु बालाजी रायपुरकर की हुई थी जो संघ के स्वयंसेवक थे।
1943 के प्रसिद्द चिमूर आन्दोलन में भी स्वयंसेवकों की प्रमुख भूमिका रही और असंख्य स्वयंसेवकों को कारावास में रखा गया।
1940 में ‘भारत छोड़ो’ आंदोलन शुरू होने से पहले ही डॉ. हेडगेवार का निधन हो गया था। स्वयं डॉ. हेडगेवार और उनके द्वारा स्थापित राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ सहित अनेक बलिदानियों की स्वतंत्रता संग्राम में महत्वपूर्ण भूमिका रही, भारतीय इतिहास में उन्हें स्थान ही नहीं मिला। दुर्भाग्यपूर्ण रूप से भारतीय जनमानस में यह धारणा बैठा दी गयी कि कांग्रेस ने ही भारत को आजादी दिलाई, लेकिन ये आधा सच है, वास्तव में माँ भारती की स्वाधीनता के लिए संघ स्वयंसेवकों सहित हजारों क्रांतिकारियों और हुतात्माओं ने अपना जीवन, अपना सब कुछ दांव पर लगा दिया था, उनकी उपेक्षा करना घोर अन्याय होगा।