Akhand Bharat : अखंड भारत का अभिप्राय उस अविभाजित भारत से है प्राचीन काल में जिसका भौगोलिक विस्तार और सांस्कृतिक प्रभाव बहुत विस्तृत था और इसमें वर्तमान समय के अफगानिस्तान, पाकिस्तान, बांग्लादेश, श्रीलंका, बर्मा, थाईलैंड इत्यादि देश सम्मिलित थे।
अखण्ड भारत का विचार उतना ही पुराना है, जितना कि सभ्यताओं का इतिहास और इसका विस्तृत वर्णन प्राचीन भारतीय शास्त्रों में किया गया है। अखण्ड भारत के विचार का प्रतिपादन महान भारतीय अर्थशास्त्री चाणक्य ने किया था। तीसरी शताब्दी ईसा पूर्व, भारतीय उपमहाद्वीप-जिसमे अब अफगानिस्तान, पाकिस्तान, भारत, नेपाल, बर्मा, तिब्बत, भूटान और बांग्लादेश जैसे आधुनिक समय के राष्ट्र हैं, ये सभी अखंड भारत के स्वायत्तशासी राज्यों मे विभक्त थे । चाणक्य ने एक अखंड भारत के विचार को रेखांकित किया जिसका अर्थ है कि इस क्षेत्र मे स्थित सभी राज्य एक ही सत्ता , शासन और प्रशासन के अधीन होंगे। महान स्वतंत्रता सेनानी और हिंदू महासभा के नेता विनायक दामोदर सावरकर ने एक अखंड भारत के साथ-साथ एक हिंदू राष्ट्र की धारणा को प्रतिपादित किया, जिसमे ‘कश्मीर से रामेश्वरम और सिंध से असम तक’ सम्पूर्ण भारतीय उपमहाद्वीप में हिंदुओं के बीच प्रबल सांस्कृतिक, धार्मिक और राजनीतिक एकता पर जोर दिया गया। भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन के समय, कन्हैयालाल मुंशी ने अखंड हिन्दुस्तान की वकालत की, जिनके इस प्रस्ताव को मोहनदास करमचंद गांधी ने भी स्वीकार किया। 7-8 अक्टूबर 1944 को, दिल्ली में, प्रमुख बुद्धिजीवी राधा कुमुद मुखर्जी ने दिल्ली में अखंड हिन्दुस्तान लीडर्स कॉन्फ्रेंस की अध्यक्षता की।
आरएसएस प्रचारक और भारतीय जनसंघ के नेता पंडित दीनदयाल उपाध्याय ने आगे चलकर अखंड भारत के विचार को परिभाषित किया। उन्होंने कहा “अखण्ड भारत” शब्द में राष्ट्रवाद के सभी मौलिक मूल्य और एक अभिन्न संस्कृति की संकल्पना निहित है।”
“इन शब्दों में यह भावना समाहित है कि अटक से कटक, कच्छ से कामरूप और कश्मीर से कन्या कुमारी तक की यह पूरी भूमि न केवल हमारे लिए पवित्र है, बल्कि हमारा एक हिस्सा है। वे लोग जो अनादि काल से इसमें जन्मे हैं और जो अभी भी इसमें रहते हैं, उनके स्थान और समय के आधार पर सतही रूप से कुछ मतभेद हो सकते हैं, लेकिन उनके संपूर्ण जीवन की मूल एकता अखंड भारत के प्रत्येक राष्ट्रभक्त में देखी जा सकती है।”
24 अगस्त, 1949 को दिल्ली में एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में आरएसएस के सरसंघचालक एम एस गोलवलकर ने पाकिस्तान को “अनिश्चित राज्य” बताया था और कहा कि “यदि विभाजन एक स्थायी तथ्य है, तो हम इसे अनसुना करने के लिए यहाँ हैं।” वास्तव में, इस संसार मे स्थायी तथ्य ’जैसी कोई चीज नहीं होती है। मनुष्य की इच्छा से चीजें पूरी तरह से व्यवस्थित या अस्थिर हो जाती हैं और मनुष्य की इच्छा एक कारण के प्रति समर्पण की भावना से प्रेरित होती है, जिसे वह धर्मसंगत और गौरवपूर्ण मानता है।
मुख्य बिन्दु
मैं स्पष्ट रूप से चित्र देख रहा हूं कि भारत माता अखंड होकर विश्वगुरु के सिंहासन पर फिर से आरूढ़ हैं
– अरबिंदो घोष
• आइए, हम प्राप्त स्वतंत्रता को सुदृढ़ नीव पर खड़ा करें और अखण्ड भारत के लिए प्रतिज्ञाबद्ध हों
-वीर विनायक दामोदर सावरकर
• अखंड भारत मात्र एक विचार न होकर विचारपूर्वक किया हुआ एक संकल्प है। कुछ लोग विभाजन को एक पत्थर का स्तंभ मानते है, उनका ऐसा दृष्टिकोण सर्वथा अनुचित है । ऐसे विचार केवल मातृभूमि के प्रति उत्कट भक्ति की कमी का परिचायक हैं
-पंडित दीनदयाल उपाध्याय
• पश्चाताप से पाप प्रायः धुल जाता है, किन्तु जिन आत्माओं को विभाजन के कुकृत्य पर संतप्त होना चाहिए था, वे अपनी अपकीर्ति की धूल मे लोटकर प्रसन्न हो रहे हैं। आइए , जनता ही पश्चाताप कर ले, अपनी भूल चूक मात्र के लिए ही नहीं, बल्कि अपने नेताओं के कुकृत्यों के लिए भी।
-राम मनोहर लोहिया
हम सब अर्थात भारत पाकिस्तान और बांग्लादेश इन तीनों देशों में रहने वाले लोग वस्तुतः एक ही राष्ट्र भारत के वासी हैं, हमारी राजनीतिक इकाइयां भले ही भिन्न हों परंतु हमारी राष्ट्रीयता एक रही है और वह है भारतीय – लोकनायक जयप्रकाश नारायण
पिछले 40 वर्ष का इतिहास इस बात का साक्षी है कि विभाजन ने किसी को कोई लाभ नहीं पहुंचाया। यदि आज भारत अपने मूल रूप में अखंडित होता तो वह न केवल दुनिया की सबसे बड़ी ताकत बन सकता था बल्कि दुनिया में अमन-चैन कायम करने में उसकी खास भूमिका होती
– गुलाम मुर्तजा सैयद, जिए सिंध के प्रणेता
मुझे वास्तविक शिकायत यह है कि राष्ट्रवादी मुसलमानों के प्रति न केवल कांग्रेस अपितु खुद महात्मा गांधी भी उदासीन रहे, उन्होंने जिन्ना एवं उनके सांप्रदायिक अनुयायियों को ही महत्व दिया। मुझे पूरा विश्वास है कि यदि उन्होंने हमारा समर्थन किया होता तो हम जिन्ना की हर बात का खंडन कर देते और विभाजन वादी आंदोलन के आरंभ काल में ही पर्याप्त संख्या में मुसलमानों को राष्ट्रवादी बना देते
-न्यायमूर्ति मोहम्मद करीम छागला