–प्रतीक खरे
चैत्र प्रतिपदा अर्थात चैत्र माह के शुक्ल पक्ष की पहली तिथि, यह हम सभी भारतीयों का नववर्ष है। हजारों वर्ष प्राचीन भारतीय संस्कृति का नववर्ष। हिन्दू शास्त्रों के अनुसार यह सृष्टि के आरंभ का दिन भी है। क्योंकि इसी दिन ब्रह्माजी ने सृष्टि की रचना की थी।
सम्पूर्ण भारत में इस दिन को अलग-अलग नाम से जाना जाता है। उद्हारण के तौर पर मराठी समुदाय चैत्र प्रतिपदा को गुड़ी पड़वा के नाम से मनाता है तो सिंधी समुदाय चेटीचंद के नाम से इसे मनाता है।
कोंकण क्षेत्र में इसे सम्वत्सर पड़वो के रूप में मनाया जाता है तो वही कश्मीर में इस नववर्ष को नवरेह कहा जाता है। पारसी समुदाय इसे नवरोज कहता है।
पंजाब में वैशाखी, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना और कर्नाटक में ‘उगादि’ तथा मणिपुर में यह दिन सजिबु नोंगमा पानबा के नाम से मनाया जाता है। वहीँ यह पर्व केरल में ‘विशु’, असम में ‘रोंगली बिहू’ के रूप में जाना जाता है। इस तिथि को ‘नवसंवत्सर‘ भी कहते हैं क्योंकि इस तिथि से नए संवत्सर अर्थात नए कैलेंडर्स की शुरुआत भी होती है।
महान गणितज्ञ भास्कराचार्य ने इसी दिन, सूर्योदय से सूर्यास्त तक, महीना और वर्ष की गणना करते हुए पांच अंगों वाले ‘पंचांग’ की रचना की थी।
हमारी संस्कृति में इस दिन के महत्व का अनुमान इन बातों से भी लगाया जा सकता है कि इसी दिन मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्रीराम का राज्याभिषेक भी हुआ था।
इस दिन से शक्ति पर्व नवरात्र का प्रारंभ होता है, जिसे हम ग्रीष्म नवरात्र भी कहते हैं। बहोत ही कम लोग जानते होंगे कि इसी दिन चक्रवर्ती सम्राट युधिष्ठिर का भी राज्याभिषेक हुआ था, उनके नाम से युगाब्द अर्थात युधिष्ठिर संवत् का आरम्भ किया गया था। उज्जयिनी सम्राट विक्रमादित्य द्वारा विक्रमी संवत् का प्रारंभ भी इसी पवित्र तिथि से हुआ था।
शालिवाहन शक संवत् जिसे हम भारत सरकार के राष्ट्रीय पंचांग के रूप भी जानते है, का प्रारंभ भी इसी दिन से होता है। इसके साथ ही आर्यों को अपने स्वत्व का बोध कराने के उद्देश्य से महर्षि दयानन्द द्वारा आर्य समाज की स्थापना भी इसी तिथि को की गई थी।
“चैत्रे मासि जगद् ब्रह्मा ससर्ज प्रथमे अहनि”…
भगवान ब्रह्माजी ने सृष्टि का आरंभ इसी दिन किया था, अर्थात पृथ्वी पर आज के ही दिन मनुष्य उत्पन्न हुए थे।
अतः यह हमारा मधुमय नववर्ष है।
भारतीय काल गणना के अनुसार सृष्टि को प्रारंभ हुए लगभग एक अरब 95 करोड़ 58 लाख 85 हजार 123 वर्ष बीत चुके हैं तब से सनातन सृष्टि निरंतर चल रही है। आइये सब मिलकर चैत्र प्रतिपदा की पावन वेला को आनंदमय महोत्सव के रूप में मनाएं।
सुरभित शीतल मन्द मलय हो, नववर्ष शुभ मंगलमय हो…