भारत ऋषियों, मुनियों और तपस्वियों और संतों की भूमि है। यहाँ पुराण, गीता, रामचरितमानस जैसे कई धार्मिक ग्रंथों की रचना हुई है। ऐसा ही एक ग्रंथ है श्री गुरु ग्रंथ साहिब, जो विश्व के प्रमुख धर्मग्रंथों में सबसे नवीन है और धर्म गुरु है, इस पवित्र पुस्तक में आत्मा, परमात्मा का ज्ञान और गुरु का प्रकाश सम्मिलित है।
वर्ष 1604 में अमृतसर के श्री हरमन्दिर साहिब में पवित्र पुस्तक गुरु ग्रन्थ साहिब की स्थापना की गई, इस दिन को सिख समुदाय प्रकाशोत्सव के रूप में मनाता है। श्री गुरु ग्रंथ साहिब का प्रकाशन सिख समुदाय के पाँचवें गुरु, गुरु अर्जुन देव जी ने अमृतसर के घने वृक्षों की छायावाले एकांत क्षेत्र रामसर में किया था। इसे लिखने के लिए कश्मीर से विशेष कागज मँगवाया गया और स्याही भी तैयार करवाई। ताकि वाणी ज्यादा से ज्यादा दिन तक सुरक्षित रह सके। वाणी को लिपिबद्ध करने का कार्य भाई गुरदास जी ने गुरुमुखी लिपि में किया था। गुरु ग्रन्थ साहिब को पहले आदिग्रन्थ और पोथी साहिब के नाम से भी जाना जाता था। जिसमें ईश्वर और मोक्ष के अलावा जीवन के प्रत्येक पहलू के बारे में व्यक्ति को मार्गदर्शन मिलता है।
गुरु ग्रंथ साहिब की रचना के पीछे गुरु अर्जुनदेव का उद्देश्य संसार की आध्यात्मिक भूख को शांत करना और उसका उद्धार करना था। राग मुंदावणी में रचित अपने इस पद में गुरुजी कहते है कि…
थाल विचि तिनि वस्तु पईओ, सतु संतोखुविचारो ।
अमृत नाम ठाकुर का पइओ, जिसका सभसु अधारो ।
जे को खावै जे को भुंचे, तिसका होइ उधारो ।
ऐह वस्त तजी नह जाई, नित नित रखु उरिधारो ।
तम संसारु चरन लग तरीऔ, सभु नानक जी ब्रह्म पसारो ॥
अर्थात मैंने विश्व की आध्यात्मिक भूख की शांति के लिए गुरु ग्रंथ साहिब के रूप में एक बहुमूल्य थाली में तीन वस्तुएँ परोसकर रख दी हैं। ये वस्तुएँ हैं। सत्य, संतोष और प्रभु के अमृत नाम का विचार। जो भी प्राणी इन वस्तुओं को खाएगा और पचाएगा अर्थात.. गुरु ग्रंथ साहिब की वाणी को पढ़ेगा और जीवन में उसपर अमल करेगा, उसका उद्धार होगा। प्राणी को सदा इन वस्तुओं को हृदय में बसाना होगा, तभी उसके मन से अज्ञान का अंधकार दूर होगा और ब्रह्मज्ञान का प्रकाश होगा।
सिख पंथ की इस यात्रा पर अगर हम नजर डाले तो पाते है कि सिख पंथ का उदय पंजाब में हुआ और इसकी अधिकतर कार्य भी पंजाब में ही केंद्रित रहें, लेकिन गुरु अर्जुन देव जी ने श्री गुरु ग्रंथ साहिब को ईश्वरीय वाणी का वह विशाल सागर बनाया जिसमें उत्तर से दक्षिण, पूर्व से पश्चिम, चारों दिशाओं से ईश्वरस्तुति की सरिताएँ आकर समाहित हुई है।
गुरु ग्रंथ साहिब में अपनी वाणी के रूप में मौजूद संत नामदेव और संत परमानंद महाराष्ट्र के थे, तो संत त्रिलोचन गुजरात से। वहीं संत रामानंद दक्षिण में पैदा हुए तो संत जयदेव का जन्म पश्चिमी बंगाल के एक छोटे से गाँव में हुआ। इसी प्रकार धन्ना जी का संबंध राजस्थान से था तो सदना जी सिंध से थे। इन सभी संतों की वाणी को एक माला में पिरोकर गुरु अर्जुनदेव ने भारत के भौगोलिक समन्वय की बेहतरीन और अभूतपूर्व मिसाल कायम की। इसी लिए हम कह सकते है कि श्री गुरु ग्रंथ साहिब न सिर्फ राष्ट्रीय अखंडता का अनुपम उदाहरण है बल्कि इसमें एक भारत श्रेष्ठ भारत का भी दर्शन होता है। जिसे नई पीढ़ी को अपने जीवन में धारण करने की अवश्यकता है।