Jageshwar Dham: उत्तराखंड का अल्मोड़ा क्षेत्र देवभूमि की सांस्कृति नगरी के रूप में जाना जाता है। धार्मिक लिहाज से महत्वपूर्ण अल्मोड़ा जिले में कई पौराणिक और एतिहासिक मंदिर स्थित हैं। जिसमें पौराणिक जागेश्वर धाम, विश्व प्रसिद्ध मंदिरों में शामिल है। मंदिरों के समूह और ज्योतिर्लिंगों आदि के लिए जागेश्वर का नाम इतिहास में दर्ज है।
राष्ट्रीय राजधानी नई दिल्ली से लगभग 390 किमी और हरिद्वार से लगभग 250 किलोमीटर दूर स्थित है। जागेश्वर धाम भगवान शिव को समर्पित मंदिर है। यह मंदिर लगभग 2500 वर्ष पुराना है। शिव पुराण, लिंग पुराण और स्कंद पुराण आदि पौराणिक कथाओं में भी इस मंदिर का उल्लेख है।
उत्तराखंड के प्रमुख देवस्थालो में “जागेश्वर धाम” प्रसिद्ध तीर्थ स्थान है। यह उत्तराखंड का सबसे बड़ा मंदिर समूह है। यह मंदिर कुमाउं मंडल के अल्मोड़ा जिले से 38 किलोमीटर की दुरी पर देवदार के जंगलो के बीच में स्थित है। जागेश्वर धाम को उत्तराखंड का “पाँचवा धाम” भी कहा जाता है। जागेश्वर मंदिर में 125 मंदिरों का समूह है। जिसमे 4-5 मंदिर प्रमुख है जिनमे विधि के अनुसार पूजा होती है। जागेश्वर धाम के सारे मंदिर समूह केदारनाथ शैली से निर्मित हैं। जागेश्वर अपनी वास्तुकला के लिए काफी विख्यात है। बड़े-बड़े पत्थरों से निर्मित ये विशाल मंदिर बहुत ही सुन्दर और आकर्षन का प्रमुख केन्द्र भी हैं।
प्राचीन मान्यता के अनुसार जागेश्वर धाम भगवान शिव की तपस्थली है… इसी स्थान पर सप्तऋषियों ने भी तपस्या की थी।
दंतकथाओं के अनुसार… 8वी और 10वी शताब्दी में निर्मित इस मंदिर समूहों का निर्माण कत्यूरी राजाओ ने करवाया था परन्तु लोग मानते हैं कि मंदिर को पांडवों ने पुनर्निर्मित किया था। वहीं इतिहासकार मानते हैं कि इन्हें कत्यूरी और चंद शासकों ने बनवाया था।
इसे “योगेश्वर” के नाम से भी जाना जाता है। ऋगवेद में ‘नागेशं दारुकावने” के नाम से इसका उल्लेख मिलता है। महाभारत में भी इसका वर्णन है । जागेश्वर के इतिहास के अनुसार उत्तरभारत में गुप्त साम्राज्य के दौरान हिमालय की पहाडियों के कुमाउं क्षेत्र में कत्युरीराजा हुए… जागेश्वर मंदिर का निर्माण भी उसी काल में हुआ। इसी वजह से मंदिरों में गुप्त साम्राज्य की झलक दिखाई देती है। मंदिर के निर्माण की अवधि को भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग द्वारा तीन कालो में बाटा गया है “कत्युरीकाल , उत्तर कत्युरिकाल एवम् चंद्रकाल”। अपनी अनोखी कलाकृति से इन साहसी राजाओं ने देवदार के घने जंगल के मध्य बने जागेश्वर मंदिर का ही नहीं बल्कि अल्मोड़ा जिले में 400 सौ से अधिक मंदिरों का निर्माण किया ।
जिसमे से जागेश्वर में ही लगभग 150 छोटे-बड़े मंदिर है…. मंदिरों का निर्माण लकड़ी तथा सीमेंट के जगह पर पत्थरो की बड़ी-बड़ी स्लैब से किया गया है। दरवाज़े की चौखटे देवी-देवताओ की प्रतिमाओं से चिन्हित है। जागेश्वर को पुराणों में “हाटकेश्वर” और भू-राजस्व लेख में “पट्टी-पारुण” के नाम से जाना जाता है।