राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रमुख 6 उत्सवों में एक, भाई-बहन के प्रेम का पावन पर्व रक्षाबंधन प्रतिवर्ष श्रावण मास के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा तिथि को मनाया जाता है। रक्षाबंधन दो शब्द रक्षा और बंधन से मिलकर बना है। जिसका अर्थ है ‘किसी की रक्षा के लिए वचनबद्ध होना’।
पहले गुरु शिष्य को, राजपुरोहित राजा को, पुरोहित आम जन मानस को रक्षा सूत्र बांधकर देश की ज्ञान परम्परा, सांस्कृतिक और समाज की रक्षा का संकल्प दिलाते थे। आज भी आपने कहीं न कहीं यह अवश्य ही देखा होगा कि अनुष्ठान के बाद लोगों को रक्षा सूत्र बांधकर रक्षा का संकल्प कराया जाता है।
सनातन काल से ही रक्षा बंधन का यह पर्व लोगों में सौहार्द और आपसी विश्वास बढ़ाता आ रहा है, लेकिन पराधीनता काल में असुरक्षा की भावना बढ़ी और लोगों को इस बात का एहसास ही नहीं हुआ कि कब हिन्दू समाज में सामञ्जस्य और समरसता के धागे कमजोर होने लगे। लोगों में असुरक्षा, स्वार्थ और अविश्वास बढ़ने लगा। जब राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने हिन्दू समाज की इस दुर्दशा को महसूस किया, तो संघ ने इन स्थिति को बदलने का संकल्प लिया।
हिन्दू समाज मिलकर पूरे हिन्दू समाज की रक्षा करे और आपस में सौहार्द बढे इस उद्देश्य से संघ के संस्थापक डॉ हेडगेवार जी ने रक्षा बंधन को संघ में स्थापित किया। रक्षा बंधन पर स्वयंसेवक परम पवित्र भगवा ध्वज को रक्षा सूत्र बांधकर उस संकल्प का स्मरण करते हैं, जिसमें कहा गया है कि धर्मो रक्षति रक्षित:। इस दिन स्वयंसेवक विभिन्न बस्तियों में जाकर अपने इसी धर्म का निर्वाहन करते है। ताकि समाज का एक भी अंग अपने आपको अलग-थलग या असुरक्षित महसूस न करे। साथ ही सभी स्वयंसेवक भी एक-दूसरे को स्नेह-सूत्र बांधते हैं। ताकि समाज में जाति, धर्म, भाषा, धनसंपत्ति, शिक्षा या सामाजिक ऊंच-नीच का भाव न आए।
भगवान कृष्ण ने गीता में कहा है कि… ‘मयि सर्वमिदं प्रोतं सूत्रे मणिगणा इव’
अर्थात ‘सूत्र’ अविच्छिन्नता का प्रतीक है, क्योंकि सूत्र बिखरे हुए मोतियों को अपने में पिरोकर एक माला के रूप में एकाकार बनाता है। माला के सूत्र की तरह रक्षा-सूत्र भी लोगों को जोड़ता है।
आज भी गुजरात, उत्तर प्रदेश एवं अन्य स्थानों में बहने अपने भाइयों की कलाई पर रक्षा बाँधती हैं। श्रावण की पूर्णिमा को पश्चिमी भारत विशेशकर कोंकण और मालाबार में न केवल हिन्दू बल्कि मुसलमान और व्यवसायी पारसी भी समुद्र तट पर जाते हैं और समुद्र को पुष्प एवं नारियल चढ़ाते हैं। ताकि समुद्र-देव व्यापारी जहाज़ों की रक्षा करें।
आजकल की व्यस्त और ग्लोबल दुनिया में रक्षाबंधन एक महत्वपूर्ण सामाजिक समारोह है जो परिवार के सदस्यों को एकत्रित करता है। वस्तुतः रक्षाबंधन वर्तमान समाज में एक महत्वपूर्ण पर्व है जो सामाजिक, सांस्कृतिक, पारिवारिक और आर्थिक महत्व के साथ जुड़ा हुआ है। यह एक विशेष मौका प्रदान करता है जिसमें सम्बंधों को मजबूत किया जाता है और समृद्धि की कामना की जाती है।