Strawberry Farming: हर किसान चाहता है कि उसकी कमाई बढ़े, लेकिन ऐसा तभी मुमकिन है जब कुछ अलग तरीके की खेती की जाए। आज भी अधिकतर किसान गेहूं-धान-मक्का जैसी पारंपरिक खेती कर रहे हैं। ऐसी खेती में मुनाफा कम होता है। वहीं अगर आप कुछ अलग तरह की खेती करते हैं तो आपको तगड़ा मुनाफा हो सकता है। ऐसी ही एक खेती है स्ट्रॉबेरी की खेती, जिससे किसान तगड़ी कमाई कर सकते हैं। आइए जानते हैं कैसे होती है स्ट्रॉबेरी की खेती और इससे कितनी कमाई की जा सकती हैं।
स्ट्रॉबेरी शीतोष्ण जलवायु में पाये जाने वाला एक फल है। जिसकी खेती केवल पहाड़ी एवं शीतोष्ण जलवायु वाले ठंड़े क्षेत्रों में ही होती थी। भारत में इसकी खेती नैनीताल, देहरादून, हिमाचल प्रदेश, महाराष्ट्र, नीलगिरी, दार्जलिंग आदि पहाड़ी क्षेत्रों में व्यावसायिक तौर पर होती है। भारत में स्ट्रॉबेरी की खेती की शुरूआत 1960 के दशक में उत्तर प्रदेश एवं हिमाचल प्रदेश में की गई थी। लेकिन इसकी उपयुक्त किस्मों की कमी तथा वैज्ञानिक ज्ञान की कमी के कारण इसकी खेती में कोई विशेष सफलता प्राप्त नहीं हुई थी, लेकिन अब हमारें कृषि वैज्ञानिकों ने अपने प्रयासों से इसकी विभिन्न प्रकार की किस्मों को विकसित किया है। जिनकी खेती उष्णकटिबंधीय जलवायु वाले क्षेत्र के मैदानी इलाकों में भी हो सकती है। सर्दियों के मौसम में अब मैदानी इलाकों में भी स्ट्रॉबेरी की तैयार प्रमुख किस्मों को उगाया जा सकता है। अब इसकी खेती मध्य प्रदेश, पंजाब, राजस्थान, हरियाणा और बिहार जैसे राज्यों में भी प्रचलित हुई है। इन राज्यों में किसान इसकी खेती से सर्दियों के सीजन की पारंपारिक साधारण फल-सब्जी की फसलों की खेती के बजाए स्ट्रॉबेरी खेती (Strawberry Farming) से अच्छा मुनाफा कमा रहे है। क्योंकि स्ट्रॉबेरी के फल की डिमांड बड़े-बड़े शहरों से लेकर छोटे कस्बों तक भी काफी ज्यादा है। इस कारण किसानों के पास इस मौसम में इसकी खेती कर अच्छा मुनाफा कमाने का मौका है। देश में अब सर्दियों का मौसम चल रहा है। इस मौसम में किसान साधारण फल-सब्जीयों की खेती के बजाए इसकी खेती कर सकते है। ट्रैक्टरगुरु के इस लेख में हम आपकों स्ट्रॉबेरी की खेती की पूरी जानकारी देने जा रहे है। इस जानकारी से आप इसकी उन्नत खेती कर सकते है।
स्ट्रॉबेरी क्या हैं?
सर्दियों में मौसम में मिलने वाला स्ट्रॉबेरी एक विदेशी फल है। इस फल का वैज्ञानिक नाम (फ्ऱागार्या) है, जो रोजेसी कुल का सदस्य है। यह विदेशी फल पूरे विश्व में अपने स्वाद एव पौष्टिकता की दृष्टि से स्वास्थ्यवर्धक फल के रूप में जाना जाता है। स्ट्रॉबेरी का फल दिल के आकार में गहरे लाल रंग का होता है। जिसकी बहकाने वाली खुशबू लाजवाब होती है। स्ट्रॉबेरी (Strawberry ) का फल खाने में हल्का खट्टा और मीठा होता है। इसके फल की सतह पर बाहर की ओर बीज पाएं जाते है। एवं इसके ऊपर चमकदार हरी पत्तेदार टोपी भी पाएं जाती है। विश्व भर में स्ट्रॉबेरी की लगभग 600 से अधिक किस्में है, जो अपने रंग, स्वाद और आकर में एक दूसरे से अलग होती है। खेतों में उगाई जाने वाली स्ट्रॉबेरी के अलावा जंगली किस्म की स्ट्रॉबेरी का आकार बहुत छोटा होता है, लेकिन यह अधिक स्वादिष्ट होती हैं।
स्ट्रॉबेरी में पाएं जाने वाले पौषक तत्व एवं उपयोग
स्ट्रॉबेरी फल का लगभग 98 प्रतिशत खाने योग्य होता है। इसके फल में विटामिन-सी एवं लौह तत्व प्रचुर मात्रा में पाया जाता है। इसके फल में 87।8 प्रतिशत पानी, 0।7 प्रतिशत प्रोटीन, 0।2 प्रतिशत वसा, 0।4 प्रतिशत खनिज लवण, 1।1 प्रतिशत रेशा, 9।8 प्रतिशत कार्बोहाइड्रेट, 0।03 प्रतिशत कल्शियम, 0।03 प्रतिशत फास्फोरस व 1।8ः लौह तत्व पाया जाता है। इसके अलावा स्ट्रॉबेरी में 30 मि।ग्रा। निकोटिनिक एसिड, 52 मि।ग्रा। विटामिन सी व 0।2 मि।ग्रा। राइवोफ्लेविन भी होता है। इसका फल अपने स्वाद एवं रंग के साथ-साथ औषधीय गुणों के लिए भी जाना जाता है। इसके फल का सेवन रक्त अल्पता से ग्रसित रोगियों के लिए बहुत ही लाभप्रद है। स्ट्रॉबेरी का उपयोग व्यवसायिक इकाईया जैसे जैम, रस, पाइ, मिल्क-शेक, आइसक्रीम, ब्यूटी प्रोडक्ट्स आदि बनाने किया जाता है।
स्ट्रॉबेरी की खेती कहां होती हैं?
स्ट्राबेरी की खेती यूरोप, संयुक्त राज्य अमेरिका, ब्रिटेन, फ्रांस व अन्य देशों के पहाड़ी क्षेत्रों के शीतोषण में होती है। भारत में इसकी खेती नैनीताल, देहरादून, हिमाचल प्रदेश, महाबलेश्वर, महाराष्ट्र, नीलगिरी, दार्जलिंग की पहाडि़यों आदि में व्यावसायिक तौर पर की जाती है। अब इसकी खेती मैदानी भागों, बंगलौर, जालंधर, मेरठ, पंजाब, दिल्ली, हरियाणा, आदि क्षेत्रों में की जा रही है। देहरादून, रतलाम, सोलन हल्दवानी, नासिक, गुड़गाँव और अबोहर स्ट्राबेरी के उत्पादन के लिए प्रसिद्ध है। बिहार और झारखंड की जलवायु स्ट्रोबेरी खेती के लिए उपयुक्त है। यहाँ पर इसकी व्यवसायिक खेती प्रचलित हुई है।
स्ट्रॉबेरी की खेती से होने वाली कमाई
स्ट्रॉबेरी की खेती के लिए अलग-अलग राज्य सरकारें अपने-अपने उद्यानिकी और कृषि विभाग की ओर से किसानों को अपने स्तर पर अनुदान प्रदान करती है। जिसमें प्लास्टिक मल्चिंग और ड्रिप इरीगेशन फव्वारा सिंचाई आदि यंत्र के लिए 40 से 50 प्रतिशत का अनुदान का प्रावधान करती है। भारत में इसका उत्पादन पर्वतीय भागों में व्यावसायिक तौर पर किया जा रहा है। स्ट्रॉबेरी अल्प अवधि 4 से 5 महीने में ही पैदावार देने वाली खेती है। अन्य साधारण फसलों की तुलना में यह कम समय में ज्यादा मुनाफा देने वाली फसल है। इसके फलों की तुड़ाई फल का रंग 70 प्रतिशत असली हो जाने पर किया जाता हैं। स्ट्रॉबेरी के फलों की तुड़ाई सप्लाई जगह की दूरी के अनुसार की जाती है। स्ट्रॉबेरी की खेती से औसत फल सात से बारह टन प्रति हेक्टयेर प्राप्त हो जाता है। जिसका बाजार में 300 से 600 रुपए प्रति किलो तक होता है। इसके खरीदार आपकों फसल लगने के साथ ही मिल जाते है। इस लिहाज से स्ट्रॉबेरी के फसल से आपकी कुल लागत का 3 गुना बहुत आसानी से मिल जाता है।
स्ट्रॉबेरी की खेती कैसे की जाती हैं?
स्ट्रॉबेरी की खेती में वैज्ञानिक तकनीक एवं स्ट्रॉबेरी की प्रमुख किस्मों का प्रयोग कर उष्णकटिबंधीय जलवायु में भी उगाया जा सकता है। व्यावसायिक रूप से खेती के लिए स्ट्रॉॅबेरी की ओफ्रा, चांडलर, ब्लेक मोर, स्वीट चार्ली, कमारोसा, फेयर फाक्स, सिसकेफ, एलिस्ता आदि प्रमुख किस्में का इस्तेमाल किया जा सकता है। इनमें से अधिकतम किस्में बाहर से मगवाई जाती है।
स्ट्रॉबेरी की खेती के लिए जलवायु
स्ट्रॉबेरी शीतोष्ण जलवायु की फसल है। इसकी खेती के लिए 5 से 6।5 पीएच वाली मिट्टी एवं 7 डिग्री सेल्सियस से 30 डिग्री सेल्सियस तापमान उपयुक्त माना गया है। इसकी खेती के लिए बलुई दोमट मिट्टी को उपयुक्त माना है।
स्ट्रॉबेरी की खेती के लिए खेत की तैयारी कैसे करें?
स्ट्रॉबेरी की बुवाई सिंतबर से अक्टूबर महीने में करें। स्ट्रॉबेरी की खेती करने के लिए इसके खेत को बुवाई से एक सप्ताह पहले खेत की 3 से 4 बार अच्छी से जुताई करें। इसके बाद 75 टन सड़ी हुई गोबर की खाद् प्रति हेक्टेयर की दरर से खेत मे अच्छे तरीके से मिलाए। कीट एवं रोग से बचाने के लिए खेत में पोटाश और फास्फोरस भी मिट्टी परीक्षण के आधार पर मिलाए। तैयार खेत में 25 से 30 सेंटीमीटर ऊंची क्यारियां बनाएं। इन तैयार क्यारियों की चौड़ाई 2 फिट और तथा लंबाई खेत की स्थिति के अनुसार रखे। देखभाल तथा विभिन्न कार्य करने के लिए 40 से 50 सेंटीमीटर चौड़ा रास्ता भी बनाएं। क्यारियों में ड्रेप एरिगेशन की पाइपलाइन बिछा दे।
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