भारत में रहस्यमय और प्राचीन मन्दिरों की कोई कमी नहीं है। एक ऐसा ही मन्दिर उत्तराखण्ड के श्रीनगर से लगभग 14 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है, जहाँ हर दिन कुछ ऐसा होता है, जिसके कारण कुछ लोग इसे चमत्कार तो कुछ माता की महिमा कहते है।
उत्तराखण्ड के पौड़ी गढ़वाल जिले में बद्रीनाथ रोड पर श्रीनगर और रुद्रप्रयाग के बीच अलकनन्दा नदी के तट पर स्थित धारी देवी मन्दिर, हिन्दू आस्था का प्रमुख केन्द्र है। माँ धारी देवी मन्दिर, माँ काली को समर्पित एक हिन्दू मन्दिर है । यह मन्दिर झील के ठीक बीचों-बीच स्थित है। स्थानीय मान्यता है कि मन्दिर में विराजमान माता की प्रतिमा दिन में तीन बार अपना स्वरूप बदलती है। प्रतिमा सुबह एक कन्या, दोपहर में युवती और शाम को एक वृद्ध के रूप में दिखाई देती हैं।
एक पौराणिक कथा के अनुसार, एक बार भीषण बाढ़ में यह मन्दिर बह गया था जिसके कारण मन्दिर में स्थापित माता की प्रतिमा भी बह गई और वह जाकर धारो गाँव के पास एक चट्टान से टकराकर रुक गई। कहते हैं कि उस प्रतिमा से एक ईश्वरीय ध्वनि निकली, जिसने गाँव वालों को उस जगह पर प्रतिमा स्थापित करने का की प्रेरणा मिली। इसके बाद गाँव के सभी लोगों ने मिलकर वहाँ माता का मन्दिर स्थापित करवाया।
पुजारियों की मानें तो मन्दिर में माँ धारी की प्रतिमा द्वापर युग से ही स्थापित है। प्रतिमा का निचला आधा हिस्सा कालीमठ में स्थित है, जहाँ माता की काली के रूप में आराधना की जाती है। कालीमठ एवं कालीस्य मठों में माँ काली की प्रतिमा क्रोध मुद्रा में है, परन्तु धारी देवी मन्दिर में माँ काली की प्रतिमा शान्त मुद्रा में स्थित है, माँ धारी को उत्तराखण्ड के चारधाम की रक्षक देवी के रूप में पूजा जाता है। मन्दिर में माँ धारी की पूजा-अर्चना धारी गाँव के पण्डितों द्वारा की जाती है। धारी देवी मन्दिर में भक्त बड़ी संख्या में पूरे वर्ष माँ के दर्शन के लिए आते रहते हैं। मन्दिर में प्रतिवर्ष चैत्र और शारदीय नवरात्र में हजारों श्रद्धालु अपनी मनौतियों के लिए दूर-दूर से पहुँचते हैं। माता का यह मन्दिर आज भी लोगों की आस्था का प्रमुख केन्द्र है।
