उत्तराखंड को देवी-देवताओं की भूमि माना जाता है.यहां भगवान शिव के शिवालयों के साथ देवी दुर्गा के कई शक्तिपीठ मौजूद हैं, जो अपनी पौराणिक मान्यताओं के साथ आध्यात्म के लिए भी श्रद्धालुओं की आस्था का केंद्र बिंदु हैं. ऐसा ही यहां एक मां राज राजेश्वरी का भी एक प्राचीन सिद्धपीठ स्थित है. चूलागढ़ पर्वत पर स्थित सिद्धपीठ राज राजेश्वरी मंदिर अपनी वास्तुशैली के लिए भी प्रसिद्ध है. मंदिर में विराजमान देवी स्थानीय ग्रामीणों की आराध्य देवी भी हैं. टिहरी गढ़वाल जिले के भिलंग व मोनगढ़ के बीच चूलागढ़ पर्वत पर स्थित देवी राज राजेश्वरी का मंदिर स्थित है. यहां बड़ी संख्या में श्रद्वालु मां के दर्शन करने के लिए आते हैं. राज राजेश्वरी को गढ़वाल राजवंश की कुलदेवी भी माना जाता है, जिस वजह से जहां-जहां राजाओं ने अपना राज्य विस्तार किया, उन क्षेत्रों में मां राज राजेश्वरी का मंदिर भी स्थापित किया गया. श्रीनगर गढ़वाल के देवलगढ़ में भी त्रिपुरा सुंदरी स्वरूप राज राजेश्वरी मंदिर स्थित है. वहीं कीर्तिनगर के रानीहाट में भी राजराजेश्वरी मंदिर देखने को मिलता है.

राज राजेश्वरी मंदिर ट्रस्ट के महासचिव भास्कर नौटियाल जानकारी देते हुए बताते हैं कि इस मंदिर में 10 महाविद्या में से एक त्रिपुरा सुंदरी का स्वरूप विराजमान है. कहा जाता है कि मंदिर का जीर्णोद्धार 14वीं शताब्दी में टिहरी रियासत पर राज करने वाले कनकवंश ने किया था. चूलागढ़ में राजा निवास भी करते थे. यहां मंदिर से कुछ ही दूरी पर एक विशाल चबूतरा है. बताया जाता है कि यहां पर राजा सत्यसिन्ध की सभा लगती थी और सभा में अहम फैसले लिए जाते थे.

पूजा से लेकर ढोल बजाने का कार्य वितरित

मंदिर में पूजा-अर्चना का कार्य जहां राजा ने मान्द्रा गांव के नौटियाल वंश को सौंपा था, तो वहीं यहां सेवा कार्य के लिए गडारा के चौहान परिवार को चुना गया. तब से वर्तमान समय तक यहां पूजा अनुष्ठान का कार्य इन्हीं दो परिवार के लोग करते हैं. साथ ही यहां ढोल, दमाऊं बजाने का कार्य ‘गड़वे’ अर्थात माता के दास करते हैं.

यहां गिरा था मां दुर्गा का खड्ग

मंदिर में लाखों वर्ष पुराना एक खड्ग भी है. पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, मां दुर्गा देवासुर के साथ युद्ध के दौरान जब आकाश मार्ग से यहां से गुजर रही थीं, तो उनका अज्ञात धातु से बना एक शक्ति शस्त्र खड्ग (तलवार जैसा हथियार) चूलागढ़ की पहाड़ी पर गिर गया था, जो आज भी मंदिर के गर्भगृह में मौजूद है. वहीं भारतीय पुरातत्व विभाग भी इस खड्ग को लाखों वर्ष पुराना मानता है. भास्कर नौटियाल बताते हैं कि इस घटना का जिक्र स्कंदपुराण के केदार खंड में भी किया गया है. यहां मां केे मंदिर को भव्य स्वरूप देने की तैयारियां जोरों पर हैं. अगले साल तक मंदिर एक अलग स्वरूप में नजर आएगा.

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By pratik khare

पत्रकार प्रतीक खरे झक्कास खबर के संस्थापक सदस्य है। ये पिछले 8 वर्ष से पत्रकारिता के क्षेत्र में सक्रिय हैं। इन्होंने कई समाचार पत्र, पत्रिकाओं के साथ - साथ समाचार एजेंसी में भी अपनी सेवाएं दी है। सामाजिक मुद्दों को उठाना उन्हें पसंद है।

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