Yamunotri Dham: हिमालय की पर्वत श्रंखलाओं में बसा यमुनोत्री धाम हिन्दुओं के चार धामों में से एक है। यमुनोत्री धाम गढ़वाल हिमालय के पश्चिम में समुद्र तल से लगभग 3235 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है। यह मन्दिर चार धाम यात्रा का पहला धाम है, चार धाम यात्रा का प्रारंभ यहीं से होता है। सनातन शास्त्रों में निहित है कि इस स्थल पर असित मुनि रहते थे। सरल शब्दों में कहें तो यमुनोत्री क्षेत्र उनका निवास स्थान था। ब्रह्मांड पुराण में यमुनोत्री को पावन स्थल बताया गया है।


महाभारत काल में पांडवों ने चार धाम यात्रा का प्रारंभ यमुनोत्री से ही किया था। इसके बाद क्रमशः गंगोत्री, केदारनाथ और बद्रीनाथ की यात्रा की थी। उस समय से चार धाम यात्रा का प्रारंभ यमुनोत्री दर्शन से होता है। यमुनोत्री प्रांगण में एक स्तंभ स्थापित है। इस विशाल स्तंभ को दिव्यशिला कहा जाता है। इस मन्दिर के प्रांगण में पदयात्रा कर पहुंचना होता है।

पूर्व में वाहन से श्रद्धालु हनुमान चट्टी तक पहुंचते थे। इस स्थल से मन्दिर की दूरी 14 किलोमीटर है। वहीं, अब श्रद्धालु जानकी चट्टी तक वाहन से पहुंच सकते हैं। यहां से मन्दिर की दूरी 05 किलोमीटर है।
यमुनोत्री धाम का पौराणिक इतिहास लगभग-लगभग उतना ही प्राचीन है जितना कि सनातन धर्म। पौराणिक कथानक के अनुसार यमुना, यमराज की बहन व भगवान सूर्य की पुत्री हैं, यमुना जी भगवान श्रीकृष्ण की आठ पटरानियों में कालिंदी के नाम से प्रसिद्ध थी। महाभारत के विराटपर्व तथा वनपर्व में कलिन्द पर्वत तथा कालिन्दी का उल्लेख मिलता है। केदारखण्ड में यमुना के उद्भव और नामकरण के सम्बन्ध में कहा गया है….

सन्तुष्टोभास्करः प्रादात्पितॄणां स्वामिता च वै।
यमुना च महाभागे त्रैलोक्यहितकांक्षया॥
नदी जाता महाभागा यमुनोत्तरवासिनी।
यस्या वै दर्शनात्सद्यः प्रमुचयते॥

अर्थात…. संतुष्ट सूर्य ने यम को पितरों का स्वामी बना दिया और तीनों लोकों की हित कामना से सूर्य भगवान ने अपनी पुत्री यमुना को भी देवताओं के हित में दे दिया। तब से यमुना, नदी हो गयी। यमुना उत्तर में ‘यमुनोत्तरी’ में वास करने लगी। जिसके दर्शन मात्र से सब पापों से मुक्ति मिल जाती है।

यमुनोत्री धाम के मन्दिर निर्माण के विषय में मान्यता है कि टिहरी गढ़वाल के महाराजा प्रतापशाह ने देवी यमुना को समर्पित यह मन्दिर बनवाया था। यमुनोत्री मन्दिर एक बार भूकम्प से पूरी तरह से खंडित हो गया था तब मन्दिर का पुनः निर्माण जयपुर की धर्मपरायण “महारानी गुलेरिया” के द्वारा 19वीं सदी में करवाया गया । यमुनोत्री का वास्तविक स्रोत जमी हुयी बर्फ की एक झील और हिमनद है। जो समुन्द्र तल से लगभग 4421 मीटर की ऊँचाई पर कालिंद पर्वत पर स्थित है। मन्दिर के मुख्य गर्भ गृह में माँ यमुना की काले संगमरमर की मूर्ति विराजती है। इस मन्दिर में यमुनोत्री जी की पूजा पूर्ण विधि विधान के साथ की जाती है। यमुनोत्री धाम में पिण्ड दान का विशेष महत्व है। सनातन धर्म में आस्था रखने वाले श्रद्धालु इस मन्दिर के परिसर में अपने पितरो का पिण्ड दान करते है। भैयादूज के दिन जो भी व्यक्ति यमुना में स्नान करता है। उसे यमत्रास से मुक्ति मिल जाती है। इस मन्दिर में यम की पूजा का भी विधान है।
वेद-पुराणों में यमुनोत्री धाम का वर्णन ‘‘यमुना प्रभव’’ तीर्थ क्षेत्र के रूप में वर्णित है। यमुनोत्री धाम मन्दिर के पास ही दो पवित्र कुण्ड भी है, जिसे सूर्य कुण्ड और गौरी कुण्ड के नाम से जाना जाता है।


यमुनोत्री मन्दिर के कपाट प्रतिवर्ष अक्षय तृतीया के पावन दिवस पर खुलते हैं और दिवाली के दूसरे दिन बंद होते है। सूर्य कुण्ड का जल उच्चतम तापमान के लिए प्रसिद्ध है। यहां आने वाले श्रद्धालु सूर्य कुण्ड के जल में कपड़े की पोटली में बांधकर चावल पकाते हैं और उसे ही प्रसाद के रूप में ग्रहण करते हैं। सूर्य कुण्ड के निकट ही दिव्य शिलाखंड स्थित है। इसे ज्योति शिला भी कहा जाता है। प्रत्येक वर्ष मई से अक्टूबर के माह के बीच पतित पावनी यमुना देवी के दर्शन करने के लिए लाखों श्रद्धालु और तीर्थयात्री इस पावन स्थान पर आते हैं।

By pratik khare

पत्रकार प्रतीक खरे झक्कास खबर के संस्थापक सदस्य है। ये पिछले 8 वर्ष से पत्रकारिता के क्षेत्र में सक्रिय हैं। इन्होंने कई समाचार पत्र, पत्रिकाओं के साथ - साथ समाचार एजेंसी में भी अपनी सेवाएं दी है। सामाजिक मुद्दों को उठाना उन्हें पसंद है।

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