Triyuginarayan Temple: क्या आप जानते वह स्थान, यहाँ हुआ था भगवान शंकर और माता पार्वती का विवाह… और वह स्थान यहाँ युग युगांतर से जल रही है अग्नि।
उत्तराखंड राज्य के रुद्रप्रयाग जिले के त्रियुगीनारायण गाँव में स्थित त्रियुगीनारायण मंदिर हिन्दू आस्था का प्रमुख केन्द्र है। यह धाम राष्ट्रीय राजधानी नई दिल्ली से लगभग 450 किमी और हरिद्वार से लगभग 275 किलोमीटर दूर स्थित है। वहीं सोनप्रयाग से यह क्षेत्र लगभग 12 किमी की दूरी पर स्थित है….
यह धाम प्राचीन पगडण्डी मार्ग गुटठुर से होते हुए यह श्री केदारनाथ को जोड़ता है। इस मंदिर की वास्तुकला शैली केदारनाथ मंदिर के जैसी है जो इस गांव को एक महत्वपूर्ण तीर्थस्थान का केंद्र बनाता हैं।
लेकिन बहोत ही कम लोग जानते है कि त्रियुगीनारायण गांव ही वह स्थान है जहाँ भगवान शिव और माता पार्वती का विवाह संपन्न हुआ था। उत्तराखंड का यह खूबसूरत गांव भगवान विष्णु को समर्पित है। आज भी इस मंदिर की कई ऐसी विशेषताएं हैं, जो प्राचीन कथा की गवाही देती हैं। एक शाश्वत अग्नि चौबीसों घंटे मंदिर में जलती रहती है। लोककथाओं के अनुसार ये वही अग्नि है जो भगवान शिव और माता पार्वती के विवाह के अवसर पर जलाई गई थी। आज भी युग युगांतर से यह जल रही है। इसलिए इस जगह का नाम त्रियुगी पड़ गया जिसका मतलब है, अग्नि जो यहाँ तीन युगों से जल रही है।
खास बात यह है कि इस विवाह में भगवान ब्रह्मा जी ने पुरोहित की भूमिका अदा की थी…. वहीं भगवान विष्णु जी ने दुल्हन के भाई द्वारा किए जाने वाले सभी अनुष्ठानों को पूर्ण किया था। यहां स्थित ब्रह्म शिला विवाह के सटीक स्थान को दर्शाता है… ऐसी मान्यता है कि अगर कोई पवित्र अग्नि से राख लेकर अपने घर में एक साफ जगह पर रखता है, तो इससे उन्हें दांपत्य सुख की प्राप्ति होती है।
इसके साथ ही यहाँ चार पानी के कुंड भी स्थित है… स्नान के लिए रुद्र कुंड, पानी पीने के लिए ब्रह्म कुंड, सफाई के लिए विष्णु कुंड और तर्पण के लिए सरस्वती कुंड… जो भी तीर्थयात्री त्रियुगीनारायण मंदिर जाते हैं, वे गौरी कुंड मंदिर भी जाते हैं। वेदों में उल्लेख है कि यह त्रियुगीनारायण मंदिर त्रेतायुग से स्थापित है। जबकि केदारनाथ और बदरीनाथ द्वापरयुग में स्थापित हुए। वहीं एक अन्य मान्यता है कि इस स्थान पर विष्णु भगवान ने वामन देवता का अवतार लिया था।
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