प्रतीक तिवारी
देवभाषा संस्कृत के गर्भ से जन्म लेनें वाली भाषा हिन्दी, जिसको संस्कृत की टूटी-फूटी भाषा कहा जाता है, जो देवनागरी लिपि में लिखी जाती है, आज भारत की पहचान है। हिंदी संस्कृत से जन्मी होनें के कारण व्यापक और अंतहीन भाषा है। हिन्दी भारोपीय भाषा परिवार (भारत-यूरोपीय भाषा परिवार) की भाषा है। हिंदी सुंदर, सरल, सरस और कर्णप्रिय होने के साथ ही कठिन विशाल और विस्तृत भाषा है। हिंदी व्याकरण को अन्य भाषाओं के व्याकरण से ज्यादा व्यापक, कठिन और अंतहीन बताया गया है। हिंदी भाषा के अनेक भेद हैं और भेदों एवं अर्थों के भी भेद और अर्थ हैं। हिंदी को अनेकार्थी भेद वाली भाषा कहा गया है। हिंदी भाषा की समृद्धि और व्यापकता का अंदाजा हम इसके साहित्य और काव्य रचनाओं से लगा सकते हैं। भारत हिंदी का जन्मदाता , सृजनकर्ता, उपयोगकर्ता और प्रचारक राष्ट्र है।
हिन्दी भाषा पूरी दुनिया में तीसरी सबसे ज्यादा बोली जाने वाली भाषाओं में से एक है। एक रिपोर्ट के अनुसार हमारे देश में लगभग 77 फीसदी लोग हिन्दी भाषा को आसानी से समझते, पढ़ते, बोलते और लिखते हैं। संविधान के अनुच्छेद 343 (1) में भी इस बात का उल्लेख किया गया है। इसके अनुसार भारत की राजभाषा हिन्दी और लिपि देवनागरी है। संविधान सभा ने 14 सितंबर 1949 को हिंदी को राजभाषा घोषित किया था, तो वहीं राष्ट्रभाषा प्रचार समिति की सिफारिश के बाद से 14 सितंबर 1953 से हिंदी दिवस मनाया जाने लगा। वर्ष 1953 से हिन्दी के प्रचार-प्रसार के लिए हर साल 14 सितंबर को हिन्दी दिवस मनाने की शुरुआत हुई थी।
हिंदी को राजभाषा बनाए जाने पर देश के कई हिस्सों में इसका विरोध भी हुआ। 26 जनवरी 1965 को जब हिंदी को देश की आधिकारिक राजभाषा बनाया गया, तो दक्षिण भारत के राज्यों में रहने वाले लोगों को ये डर सताने लगा कि हिंदी के आने से वे उत्तर भारतीयों की तुलना में विभिन्न क्षेत्रों में पिछड़ जाएंगे। इसके बाद देश में कई जगहों पर हिंदी विरोधी आंदोलन शुरू हो गये। उस समय मद्रास (अब तमिलनाडु ) में आंदोलन और हिंसा का एक जबरदस्त दौर चला। तमिलनाडु के साथ-साथ दक्षिणी भारत के राज्यों में हिंदी की प्रतियां भी जलाई जाने लगी और दंगे भड़ उठे।
आजादी की लड़ाई के समय भी एक राष्ट्र एक भाषा की भी मांग उठती रहती थी। कई नेताओं ने हिन्दी को देश की संपर्क भाषा बनने के काबिल माना क्योंकि पूरे उत्तर भारत के अलावा पश्चिम भारत के ज्यादातर राज्यों में भी हिन्दी भाषा को ही बोला और समझा जाता था। मगर दक्षिण भारतीय राज्यों और पूर्वोत्तर के राज्यों के लिए हिन्दी एक परायी भाषा थी। यही कारण है कि आजादी के तुरंत बाद ही हिन्दी को देश की राजभाषा घोषित नहीं किया गया था। संविधान के अनुच्छेद 351 के तहत हिन्दी को अभिव्यक्ति के सभी माध्यमों के रूप में विकसित और प्रचारित करने की जिम्मेदारी केंद्र सरकार की है। उस समय यह सोच थी कि सरकार हिन्दी का प्रचार-प्रसार करेगी और जब पूरे देश की सहमति होगी, तब हिंदी को राजभाषा घोषित किया जाएगा।
जब अंग्रेजी भाषा को आधिकारिक भाषा के तौर पर हटने का समय आया, तो देश के कुछ हिस्सों में इसको लेकर भी विरोध-प्रदर्शन शुरू हो गए। सबसे ज़्यादा दक्षिण भारतीय राज्यों में हिंसक प्रदर्शन हुए और तमिलनाडु में जनवरी 1965 में भाषा विवाद को लेकर दंगे तक भड़क उठे। उसके बाद केंद्र सरकार ने संविधान में संशोधन किया और अंग्रेजी को हिन्दी के साथ भारत की आधिकारिक भाषा बनाए रखने का प्रस्ताव पारित किया। आधिकारिक भाषा के अलावा आज भारत के संविधान की 8वीं अनुसूची में 22 भाषाएं शामिल हैं।
आपको बता दें राष्ट्रीय हिंदी दिवस 14 सितंबर को और विश्व हिंदी दिवस 10 जनवरी को मनाया जाता है। हिन्दी भाषा को सम्मान दिलाने के लिए ही हर साल हिन्दी दिवस मनाया जाता है ताकि हिन्दी भाषा का अधिक से अधिक उत्थान हो सके और भविष्य में यह भारत की राष्ट्रभाषा भी बन सके।
14 सितम्बर 1949 को संविधान सभा ने एक मत से यह निर्णय लिया कि हिन्दी भारत की राजभाषा होगी। इसी महत्वपूर्ण निर्णय के महत्व को प्रतिपादित करने तथा हिन्दी भाषा को हर क्षेत्र में प्रसारित करने के लिये राष्ट्रभाषा प्रचार समिति, वर्धा के अनुरोध पर वर्ष 1953 से पूरे भारत में 14 सितम्बर को प्रतिवर्ष हिन्दी-दिवस के रूप में मनाया जाता है। एक तथ्य यह भी है कि 14 सितम्बर 1949 को हिन्दी के पुरोधा व्यौहार राजेन्द्र सिंहा का 50वां जन्मदिन था, जिन्होंने हिन्दी को राष्ट्रभाषा बनाने के लिए बहुत लंबा संघर्ष किया लेकिन वे असफल रहे।
अंग्रेजी पढ़ि के जदपि, सब गुन होत प्रवीन।
पर निज भाषा-ज्ञान बिन, रहत हीन के हीन।।
भारतेन्दु हरिशचन्द्र की उपयुक्त पक्तियां बतलाती हैं कि मातृभाषा हिन्दी के अलावा हम भारतीयों को अन्य कितनी ही भाषाओं का ज्ञान क्यों न प्राप्त हो जाए, लेकिन बिना हिन्दी अक्षरों के ज्ञान अधूरा ही माना जाता है। लेकिन वर्तमान समय में हिन्दी उपेक्षित हो रही है, क्योंकि जिस भाषा से संस्कृति, समाज और देशहित की गाथा लिखी जाती रही है आज वही भाषा अपने ही देश में पराई हो गई है। उसके अस्तित्व को बचाने के लिए हिन्दी पखवाड़े और दिवसों की शुरूआत की जाने लगी है, ताकि आने वाली पीढ़ी और वर्तमान समाज के समक्ष हिन्दी के महत्व को बरकरार रखा जा सके। इसी कड़ी में हर साल 14 सिंतबर को हिन्दी दिवस मनाने की घोषणा की गई।
बहुत सी जगहों पर तो हिन्दी दिवस का जश्न पूरे एक हफ्ते तक मनाया जाता है, जिसे हिन्दी पखवाड़ा कहा जाता है। हिन्दी भाषा का स्थान पूरी दुनिया में बोली जाने वाली भाषाओं में तीसरे नंबर पर आता है। इस दिन की खुशी को स्कूलों से लेकर ऑफिसों तक में मनाया जाता है।
आज हिंदी पूरी दुनिया में सबसे ज़्यादा बोली जाने वाली भाषाओं में से एक बन गई है। अब सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म के जरिए धीरे-धीरे लोगों के दिलों में हिंदी के प्रति सम्मान बढ़ता हुआ दिखाई दे रहा है और हिंदी को लेकर उनकी सोच भी बदल रही है। हिंदी अब लोकप्रिय भाषा बनती जा रही है। हिन्दी भाषा को अब पूरे विश्व भर में सम्मान की नजरों से देखे जाने की कोशिश की जा रही है और पसंद भी किया जा रहा है। विश्व की सबसे बड़ी कंपनियां जैसे गूगल, फेसबुक आदि भी हिंदी को बढ़ावा देने का काम रही हैं।
आज हमारें भारत में हिंदी भाषा के प्रयोग में कमी होना बहुत ही चिंतनिय विषय हैं, भारत की अपनी भाषा होते हुए भी आज के लोग और ज्यादातर युवा वर्ग हिंदी के प्रयोग में अपने आप को शर्मिंदा महसूस कर रहें हैं, कोई ज्यादा अच्छा हिंदी बोलता हैं, तो आज उसे पुराने जमाने का ,प्रवचन करना या अंकलजी, बाबाजी या बहनजी कहा जाता हैं। यह हमारे देश और समाज की विडंबना हैं की हमारे देश की राष्ट्रभाषा का दूसरी पश्चिमी या अन्य भाषाओं ने अपने ही देश में दबा दिया है। आज विदेशों में हिंदी को सिखा और पढ़ा जा रहा है ,आज हिंदी ग्लोबल भाषा की श्रेणी में आ गयी है।
(लेखक स्वतंत्र पत्रकार हैं।)