murgee paalan: भारत में मुर्गी पालन का उद्योग आज से लगभग 5000 वर्ष पूर्व ही शुरू हो चुका था। मुर्गी पालन मौर्य साम्राज्य का एक प्रमुख उद्योग था। हालांकि इसे 19वीं शताब्दी से ही वाणिज्यिक उद्योग के रूप में देखा जाने लगा था। मुर्गी पालन में मुर्गियों की विभिन्न प्रकार की नस्लों का पालन कर उनके अंडे एवं चिकन का व्यवसाय किया जाता है।
मुर्गी पालन एक ऐसा व्यवसाय है जो आपकी आय का अतिरिक्त साधन बन सकता है… यह व्यवसाय बहुत कम लागत में शुरू किया जा सकता है और इसमें मुनाफा (लाखों-करोड़ो) भी काफी ज्यादा है… देश में रोजगार तलाश रहे युवा इसे रोज़गार के तौर पर अपना सकते हैं… पिछले चार दशकों में मुर्गीपालन ब्यवसाय क्षेत्र में शानदार विकास के बावजूद, कुक्कुट उत्पादों की उपलब्धता तथा मांग में काफी बड़ा अंतर है।
वर्तमान में प्रति व्यक्ति वार्षिक 180 अण्डों की मांग के मुकाबले 70 अण्डों की उपलब्धता है… इसी प्रकार प्रति व्यक्ति वार्षिक 11 कि.ग्रा. मीट की मांग के मुकाबले केवल 3.8 कि.ग्रा. प्रति व्यक्ति कुक्कुट मीट की उपलब्धता जनसंख्या में वृद्धि जीवनचर्या में परिवर्तन, खाने-पीने की आदतों में परिवर्तन, तेजी से शहरीकरण,प्रति व्यक्ति आय में वृद्धि स्वास्थ्य के प्रति बढ़ती जागरुकता, युवा जनसंख्या के बढ़ते आकार आदि के कारण कुक्कुट उत्पादों की मांग में जबर्दस्त वृद्धि हुई है।
वर्तमान बाजार परिदृश्य में कुक्कुट उत्पाद उच्च जैविकीय मूल्य के प्राणी प्रोटीन का सबसे सस्ता उत्पाद है… मुर्गीपालन व्यवसाय से भारत में बेरोजगारी भी काफी हद तक कम हुई है… आर्थिक स्थिति ठीक न होने पर बैंक से लोन लेकर मुर्गीपालन ब्यवसाय की शुरुआत की जा सकती है और कई योजनाओं में तो बैंक से लिए गए लोन पर सरकार सबसिडी भी देती है। कुल मिलाकर इस व्यवसाय के जरिए मेहनत और लगन से सिफर से शिखर तक पहुंचा जा सकता है।
देसी मुर्गी या Free Range Chicken ब्रायलर मुर्गियों से बहुत अलग होती है। इन मुर्गियां का ब्रायलर मुर्गियों की तुलना में बहुत धीरे विकास होता है। फ्री रेंज चिकन को 1-2 किलो का वज़न तक होने में लगभग 4-5 महिना लगता है। यह मुर्गियां ब्रायलर मुर्गियों के मुकाबले बहुत शक्तिशाली और सक्रिय होते हैं और बाज़ार में भी ब्रायलर मुर्गियों कि तुलना में इसकी तीन गुना अधिक मूल्य में बिक्री होती है। देसी मुर्गी कि सबसे ख़ास बात यह होती है की इसमें मुर्गी दाना की सबसे कम ज़रुरत पड़ती है और बहुत कम जगह में यह आराम से रह जाती हैं इसलिए इनको बड़ी आसानी से आप पाल सकते हैं।

मुर्गी पालन का फायदा और बढ़ता महत्व
भारत एक कृषि प्रधान देश है। यहां पर लोग खेती एवं पशुपालन करके अपना जीवन यापन करते हैं। आजकल लोग पशुपालन की तरफ ज्यादा अग्रसर हो रहे हैं जिसमें मुर्गी पालन को भी एक बहुत अच्छा व्यवसाय माना जाता है। पहले के समय मे लोग गाय, भैंस, भेड़ आदि जानवरों को पालते थे तथा इनसे लाभ कमाते थे परंतु आजकल के समय मे देसी मुर्गी का पालन भी एक ऐसा व्यवसाय बन गया है जो व्यक्ति को एक अतिरिक्त आय का साधन प्रदान करता है।
इसमें कम लागत पर अधिक मुनाफा कमाया जा सकता है परंतु इसमें आपकी मेहनत और लगन पर सब कुछ निर्भर है क्योंकि इनमे संक्रमण का खतरा बहुत अधिक होता है इसीलिये आप जितनी मेहनत से और अच्छे से इनकी देखभाल करेंगे इनसे उतना ही अधिक लाभ होगा। भारत में दिन-प्रतिदिन देसी मुर्गी पालन के व्यवसाय का प्रचलन बढ़ता जा रहा है भारत अंडो के उत्पाद में तीसरे नंबर पर और मांस के उत्पाद में पांचवें नंबर पर है।
ग्रामीण क्षेत्रों में निम्न स्तर पर मुर्गी पालन का व्यवसाय किया जा सकता है और अधिक से अधिक लाभ कमाया जा सकता है। मुर्गी पालन का व्यवसाय अधिकतर अंडे एवं मांस उत्पादन के लिए किया जाता है क्योकि देशी मुर्गी के अंडे तथा मांस में मानव पोषण के लिए सबसे आवश्यक तत्व, प्रोटीन बहुत अधिक मात्रा में पाया जाता है।
इसके साथ ही साथ मुर्गियों के कूड़े (litter) से खेतों को उपजाऊ भी बनाया जा सकता है क्योकि जितना एक गाय के गोबर से एक खेत को उपजाऊ बनाया जा सकता है उतना ही 40 मुर्गियों के बिष्ठों से एक खेत को उपजाऊ बनाया जा सकता है। अगर मुर्गी पालन में सही प्रजाति के चूजे, देखभाल, पौष्टिक आहार, बिमारियों से बचने का टीका एवं साफ़ सफाई सही ढंग से किया जाए तो एक बेहतर आय बनाई जा सकती है।

देसी मुर्गी के कुछ मुख्या प्रजातियाँ
भारत मे मुर्गियों की बहुत सी प्रजातियां पायी जाती है लेकिन इन सभी प्रजातियों में से देशी मुर्गियों की प्रजाति पालन की दृष्टि से सबसे उपयुक्त होती है। देसी मुर्गी निम्न प्रकार की होती है, आप इनमें से अपने अनुसार चुन सकते हैं :-

भारत में मुर्गियों की नस्लें (कुक्कुट नस्ल) Chicken Breeds in India Hindi

असेल नस्ल
यह नस्ल भारत के उत्तर प्रदेश, आंध्र प्रदेश और राजस्थान में पाई जाती है। भारत के अलावा यह नस्ल ईरान में भी पाई जाती है जहाँ इसे किसी अन्य नाम से जाना जाता है। इस नस्ल का चिकन बहुत अच्छा होता है। इन मुर्गियों का व्यवहार बहुत ही झगड़ालू होता है इसलिए मानव जाति इस नस्ल के मुर्गों को मैदान में लड़ाते हैं।
मुर्गों का वजन 4-5 किलोग्राम तथा मुर्गियों का वजन 3-4 किलोग्राम होता है। इस नस्ल के मुर्गे-मुर्गियों की गर्दन और पैर लंबे होते हैं तथा बाल चमकीले होते हैं। मुर्गियों की अंडे देने की क्षमता काफी कम होती है।

कड़कनाथ नस्ल
इस नस्ल का मूल नाम कलामासी है, जिसका अर्थ काले मांस वाला पक्षी होता है। कड़कनाथ नस्ल मूलतः मध्य प्रदेश में पाई जाती है। इस नस्ल के मीट में 25% प्रोटीन पायी जाती है जो अन्य नस्ल के मीट की अपेक्षा अधिक है। कड़कनाथ नस्ल के मीट का उपयोग कई प्रकार की दवाइयां बनाने में भी किया जाता है इसलिए व्यवसाय की दृष्टि से यह नस्ल अत्यधिक लाभप्रद है। यह मुर्गिया प्रतिवर्ष लगभग 80 अंडे देती है। इस नस्ल की प्रमुख किस्में जेट ब्लैक, पेन्सिल्ड और गोल्डेन है।

ग्रामप्रिया नस्ल
ग्रामप्रिया को भारत सरकार द्वारा हैदराबाद स्थित अखिल भारतीय समन्वय अनुसंधान परियोजना के तहत विकसित किया गया है। इसे ख़ास तौर पर ग्रामीण किसान और जनजातीय कृषि विकल्पों के लिये विकसित गया है। इनका वज़न 12 हफ्तों में 1.5 से 2 किलो होता है।
इनके मीट का प्रयोग तंदूरी चिकन बनाने में अधिक किया जाता है। ग्रामप्रिया एक साल में औसतन 210 से 225 अण्डे देती है। इनके अण्डों का रंग भूरा होता है और उसका वज़न 57 से 60 ग्राम होता है।

स्वरनाथ नस्ल
स्वरनाथ कर्नाटक पशु चिकित्सा एवं मत्स्य विज्ञान और विश्वविद्यालय, बंगलौर द्वारा विकसित चिकन की एक नस्ल है। इन्हें घर के पीछे आसानी से पाला जा सकता है। ये 22 से 23 सप्ताह में पूर्ण परिपक्व हो जाती है और तब इनका वज़न 3 से 4 किलोग्राम होता है। इनकी प्रतिवर्ष अण्डे उत्पादन करने की क्षमता लगभग 180-190 होती है।

कामरूप नस्ल
यह बहुआयामी चिकन नस्ल है जिसे असम में कुक्कुट प्रजनन को बढ़ाने के लिए अखिल भारतीय समन्वय अनुसंधान परियोजना द्वारा विकसित किया गया है। यह नस्ल तीन अलग-अलग चिकन नस्लों का क्रॉस नस्ल है, असम स्थानीय(25%), रंगीन ब्रोइलर(25%) और ढेलम लाल(50%)।
इसके नर चिकन का वज़न 40 हफ़्तों में 1.8 – 2.2 किलोग्राम होता है। इस नस्ल की प्रतिवर्ष अण्डे देने की क्षमता लगभग 118-130 होती है जिसका वज़न लगभग 52 ग्राम होता है।

चिटागोंग नस्ल
यह नस्ल सबसे ऊँची नस्ल मानी जाती है। इसे मलय चिकन के नाम से भी जाना जाता है। इस नस्ल के मुर्गे 2.5 फिट तक लंबे तथा इनका वजन 4.5 – 5 किलोग्राम तक होता है। इनकी गर्दन और पैर बाकी नस्ल की अपेक्षा लंबे होते है। इस नस्ल की प्रतिवर्ष अण्डे देने की क्षमता लगभग 70-120 अण्डे है।

केरी श्यामा नस्ल
यह कड़कनाथ और कैरी लाल का एक क्रास नस्ल है। इस किस्म के आंतरिक अंगों में भी एक गहरा रंगद्रव्य होता है, जिसे मानवीय बीमारियों के इलाज़ के लिए जनजातीय समुदाय द्वारा प्राथमिकता दी जाती है। यह ज्यादातर मध्यप्रदेश, गुजरात और राजस्थान में पायी जाती है।

यह नस्ल 24 सप्ताह में पूर्ण रूप से परिपक्व हो जाती है और तब इनका वज़न लगभग 1.2 किलोग्राम(मादा) तथा 1.5 किलोग्राम(नर) होता है। इनकी प्रजनन क्षमता प्रतिवर्ष लगभग 85 अण्डे होती है।

झारसीम नस्ल
यह झारखंड की मूल दोहरी उद्देश्य नस्ल है इसका नाम वहाँ की स्थानीय बोली से प्राप्त हुआ है। ये कम पोषण पर जीवित रहती है और तेज़ी से बढ़ती है। इस नस्ल की मुर्गियाँ उस क्षेत्र के जनजातीय आबादी के आय का स्रोत है। ये अपना पहला अण्डा 180 दिन पर देती है और प्रतिवर्ष 165-170 अण्डे देती है। इनके अण्डे का वज़न लगभग 55 ग्राम होता है। इस नस्ल के पूर्ण परिपक्व होने पर इनका वज़न 1.5 – 2 किलोग्राम तक होता है।

देवेंद्र नस्ल
यह एक दोहरी उद्देश्य चिकन है। यह पुरूष और रोड आइलैंड रेड के रूप में सिंथेटिक ब्रायलर की एक क्रॉस नस्ल है। 12 सप्ताह में इसका शरीरिक वज़न 1800 ग्राम होता है। 160 दिन में ये पूर्ण रूप से परिपक्व हो जाती है। इनकी वार्षिक अण्डा उत्पादन क्षमता 200 है। इसके अण्डे का वज़न 54 ग्राम होता है।

श्रीनिधि
इस प्रजाति की भी मुर्गियां दोहरी उपयोगिता वाली होती हैं यह लगभग 210 से 230 अंडे तक देती है। इनका वजन 2.5 किलोग्राम से 5 किलोग्राम तक होता है जो कि ग्रामीण मुर्गियों से काफी ज्यादा होता है और इन से अधिक मात्रा में मांस और अंडे दोनों के जरिए अधिक मुनाफा कमाया जा सकता है। इस प्रजाति की मुर्गियों का विकास काफी तेजी से होता है।

वनराजा
शुरुआत में मुर्गी पालन करने के लिए यह प्रजाति सबसे अच्छी मानी जाती है ये मुर्गी 3 महीने में 120 से 130 अंडे तक देती हैं और इसका वज़न भी 2.5-5 किलो तक जाता है। हलाकि यह प्रजाति अन्य प्रजाति से थोडा कम क्रियात्मक और सक्रिय रहते हैं।
केन्द्रीय पक्षी अनुसंधान संस्थान, इज्जतनगर द्वारा विकसित नस्लें
घर के पिछवाड़े में पाले जाने वाली नस्लें
कारी निर्भीक (एसील क्रॉस)
• एसील का शाब्दिक अर्थ वास्तविक या विशुद्ध है। एसील को अपनी तीक्ष्णता, शक्ति, मैजेस्टिक गेट या कुत्ते से लड़ने की गुणवत्ता के लिए जाना जाता है। इस देसी नस्ल को एसील नाम इसलिए दिया गया क्योंकि इसमें लड़ाई की पैतृक गुणवत्ता होती है।
• इस महत्वपूर्ण नस्ल का गृह आंध्र प्रदेश माना जाता है। यद्यपि, इस नस्ल के बेहतर नमूने बहुत मुश्किल से मिलते हैं। इन्हें शौकीन लोगों और पूरे देश में मुर्गे की लड़ाई-शो से जुड़े हुए लोगों द्वारा पाला जाता है।
• एसील अपने आप में विशाल शरीर और अच्छी बनावट तथा उत्कृष्ट शरीर रचना वाला होता है।
• इसका मानक वजन मुर्गों के मामले में 3 से 4 किलो ग्राम तथा मुर्गियों के मामले में 2 से 3 किलो ग्राम होता है।
• यौन परिपक्वता की आयु (दिन) 196 दिन है।
• वार्षिक अंडा उत्पादन (संख्या)- 92
• 40 सप्ताह में अंडों का वजन (ग्राम)- ५०

कारी श्यामा (कडाकानाथ क्रॉस)
• इसे स्थानीय रूप से “कालामासी” नाम से जाना जाता है जिसका अर्थ काले मांस (फ्लैश) वाला मुर्गा है। मध्य प्रदेश के झाबुआ और धार जिले तथा राजस्थान और गुजरात के निकटवर्ती जिले जो लगभग 800 वर्ग मील में फैला हुआ है, इन क्षेत्रों को इस नस्ल का मूल गृह माना गया है।
• इनका पालन ज्यादातर जनजातीय, आदिवासी तथा ग्रामीण निर्धनों द्वारा किया जाता है। इसे पवित्र पक्षी के रूप में माना जाता है और दीवाली के बाद इसे देवी के लिए बलिदान देने वाला माना जाता है।
• पुराने मुर्गे का रंग नीले से काले के बीच होता है जिसमें पीठ पर गहरी धारियां होती हैं।
• इस नस्ल का मांस काला और देखने में विकर्षक (रीपल्सिव) होता है, इसे सिर्फ स्वाद के लिए ही नहीं बल्कि औषधीय गुणवत्ता के लिए भी जाना जाता है।
• कडाकनाथ के रक्त का उपयोग आदिवासियों द्वारा मानव के गंभीर रोगों के उपचार में कामोत्तेजक के रूप में इसके मांस का उपयोग किया जाता है।
• इसका मांस और अंडे प्रोटीन (मांस में 25-47 प्रतिशत) तथा लौह एक प्रचुर स्रोत माना जाता है।
• 20 सप्ताह में शरीर वजन (ग्राम)- 920
• यौन परिपक्वता में आयु (दिन)- 180
• वार्षिक अंडा उत्पादन (संख्या)- 105
• 40 सप्ताह में अंडे का वजन (ग्राम)- 49
• जनन क्षमता (प्रतिशत)- 55
• हैचेबिल्टी एफ ई एस (प्रतिशत)- ५२

हितकारी (नैक्ड नैक क्रॉस)
• नैक्ड नैक परस्पर बड़े शरीर के साथ-साथ लम्बी गोलीय गर्दन वाला होता है। जैसे इसके नाम से पता लगता है कि पक्षी की गर्दन पूरी नंगी या गालथैली (क्रॉप) के ऊपर गर्दन के सामने पंखों के सिर्फ टफ दिखाई देते हैं।
• इसके फलस्वरूप इनकी नंगी चमड़ी लाल हो जाती है विशेषरूप से नर में यह उस समय होता है जब ये यौन परिपक्वतारूपी कामुकता में होते है।
• केरल का त्रिवेन्द्रम क्षेत्र नैक्ड नैक का मूल आवास माना जाता है।
• 20 सप्ताह में शरीर का वजन (ग्राम)- 1005
• यौन परिपक्वता में आयु (दिन)- 201
• वार्षिक अंडा उत्पादन (संख्या)- 99
• 40 सप्ताह में अंडे का वजन (ग्राम)- 54
• जनन क्षमता (प्रतिशत)- 66
• हैचेबिल्टी एफ ई एम (प्रतिशत)- ७१

उपकारी (फ्रिजल क्रॉस)
• यह विशिष्ट मुरदार-खोर (स्कैवइजिंग) प्रकार का पक्षी है जो अपने मूल नस्ल आधार में विकसित होता है। यह महत्वपूर्ण देसी मुर्गे की तरह लगता है जिसमें बेहतर उपोष्ण अनुकूलता तथा रोग प्रतिरोधिता, अपवर्जन वृद्धि तथा उत्पादन निष्पादन शामिल है।
• घर का पिछवाड़ा मुर्गी पालन के लिए उपयुक्त है।
• उपकारी पक्षियों की चार किस्में उपलब्ध हैं जो विभिन्न कृषि मौसम स्थितियों के लिए अनुकूल है।
• काडाकनाथ X देहलम रैड
• असील X देहलम रैड
• नैक्ड नैक X देहलम रैड
• फ्रिजल X देहलम रैड

निष्पादन रूपरेखा
• यौन परिपक्वता की आयु 170-180 दिन
• वार्षिक अंडा उत्पादन 165-180 अंडे
• अंडे का आकार 52-55 ग्राम
• अंडे का रंग भूरा होता है
• अंडे की गुणवत्ता, उत्कृष्ट आंतरिक गुणवत्ता
• 95 प्रतिशत से ज्यादा सहनीय
• स्वभाविक प्रतिक्रिया तथा बेहतर चारा
लेयर्स
कारी प्रिया लेयर
• पहला अंडा 17 से 18 सप्ताह
• 150 दिन में 50 प्रतिशत उत्पादन
• 26 से 28 सप्ताह में व्यस्तम उत्पादन
• उत्पादन की सहनीयता (96 प्रतिशत) तथा लेयर (94 प्रतिशत)
• व्यस्तम अंडा उत्पादन 92 प्रतिशत
• 270 अंडों से ज्यादा 72 सप्ताह तक हेन हाउस
• अंडे का औसत आकार
• अंडे का वजन 54 ग्राम
कारी सोनाली लेयर (गोल्डन– 92)
• 18 से 19 सप्ताह में प्रथम अंडा
• 155 दिन में 50 प्रतिशत उत्पादन
• व्यस्तम उत्पादन 27 से 29 सप्ताह
• उत्पादन (96 प्रतिशत) तथा लेयर (94 प्रतिशत) की सहनीयता
• व्यस्तम अंडा उत्पादन 90 प्रतिशत
• 265 अंडों से ज्यादा 72 सप्ताह तक हैन-हाउस
• अंडे का औसत आकार
• अंडे का वजन 54 ग्राम

कारी देवेन्द्र
• एक मध्यम आकार का दोहरे प्रयोजन वाला पक्षी
• कुशल आहार रूपांतरण- आहार लागत से ज्यादा उच्च सकारात्मक आय
• अन्य स्टॉक की तुलना में उत्कृष्ट- निम्न लाइंग हाउस मृत्युदर
• 8 सप्ताह में शरीर वजन- 1700-1800 ग्राम
• यौन परिपक्वता पर आयु- 155-160 दिन
• अंडे का वार्षिक उत्पादन- 190-200

ब्रायलर
कारीब्रो – विशाल( कारीब्रो-91)
• दिवस होने पर वजन – 43 ग्राम
• 6 सप्ताह में वजन – 1650 से 1700 ग्राम
• 7 सप्ताह में वजन – 100 से 2200 ग्राम
• ड्रैसिंग प्रतिशतः 75 प्रतिशत
• सहनीय प्रतिशत – 97-98 प्रतिशत
• 6 सप्ताह में आहार रूपांतरण अनुपातः 94 से 2.20
कारी रेनब्रो (बी-77)
• दिवस होने पर वजन – 41 ग्राम
• 6 सप्ताह में वजन – 1300 ग्राम
• 7 सप्ताह में वजन – 160 ग्राम
• सहनीय प्रतिशत – 98-99 प्रतिशत
• ड्रैसिंग प्रतिशतः 73 प्रतिशत
• 6 सप्ताह में आहार रूपांतरण अनुपातः 94 से 2.20
कारीब्रो–धनराजा (बहु–रंगीय)
• दिवस होने पर वजन – 46 ग्राम
• 6 सप्ताह में वजन – 1600 से 1650 ग्राम
• 7 सप्ताह में वजन – 2000 से 2150 ग्राम
• ड्रेसिंग प्रतिशतः 73 प्रतिशत
• सहनीय प्रतिशत – 97-98 प्रतिशत
• 6 सप्ताह में आहार रूपांतरण अनुपातः 90 से 2.10
कारीब्रो– मृत्युंजय (कारी नैक्ड नैक)
• दिवस होने पर वजन – 42 ग्राम
• 6 सप्ताह में वजन – 1650 से 1700 ग्राम
• 7 सप्ताह में वजन – 200 से 2150 ग्राम
• ड्रैसिंग प्रतिशतः 77 प्रतिशत
• सहनीय प्रतिशत – 97-98 प्रतिशत
• 6 सप्ताह में आहार रूपांतरण अनुपातः 9 से 2.0
कुक्कुट पालन परियोजना निदेशालय, हैदराबाद द्वारा विकसित नस्लें
वनराजा
• कुक्कुटपालन परियोजना निदेशालय, हैदराबाद द्वारा विकसित ग्रामीण और आदिवासी क्षेत्रों में पिछवाड़े में पालन के लिए उपयुक्त पक्षी
• यह एक बहुरंगी तथा दोहरे प्रयोजन वाला पक्षी होने के साथ आकर्षक पक्षति (प्लूमेज) वाला पक्षी है।
• सामान्य कुक्कुट रोग के विरुद्घ इसमें बेहतर प्रतिरक्षा स्तर है और यह मुक्त रेंज पालन के लिए अनुकूल है।
• वजराजा के नर नियमित आहार प्रणाली के तहत 8 सप्ताह की आयु में मामूली शरीर वजन हासिल करते हैं।
• मुर्गी के अंडजनन का चक्र 160-180 अंडे एक चक्र में होते हैं।
• इसके परस्पर हल्के वजन और लम्बी टांगों के कारण पक्षी परभक्षी से अपनी रक्षा करने में सफल होते हैं जो कि पिछवाड़े में पक्षी पालन में अपने आप में एक मुख्य समस्या है।
कृषिभ्रो
• कुक्कुट पालन परियोजना निदेशालय, हैदराबाद द्वारा विकसित
• बहु-रंगी व्यावसायिक ब्रायलर चिक्स
• 2-2 आहार रूपांतरण अनुपात से कम
• 6 सप्ताह की आयु तक शरीर वजन प्राप्त करता
लाभः
• सख्त, बेहतर अनुकूल तथा जीवित रहने की बेहतर क्षमता
• इसकी निर्वाहता 6 सप्ताह तक लगभग 97 प्रतिशत है
• इन पक्षियों का आकर्षक रंग पक्षति है तथा उपोष्ण मौसम स्थितियों के अनुकूल है।
• व्यावसायिक कृषिभ्रो सामान्य पोल्ट्री रोग जैसे रानीखेत तथा संक्रमण ब्रुसलरोग के विरुद्ध उच्च प्रतिरोधी है।
नस्लों की उपलब्धता के बारे में कृपया निम्नलिखित से सम्पर्क करें।
Director
Project Directorate on Poultry
Rajendra Nagar, Hyderabad – 500030
Andhra Pradesh, INDIA
Phone :- 91-40-2401700091-40-24017000/24015651
Fax : – 91-40-24017002
E-mail: pdpoult@ap.nic.in

By pratik khare

पत्रकार प्रतीक खरे झक्कास खबर के संस्थापक सदस्य है। ये पिछले 8 वर्ष से पत्रकारिता के क्षेत्र में सक्रिय हैं। इन्होंने कई समाचार पत्र, पत्रिकाओं के साथ - साथ समाचार एजेंसी में भी अपनी सेवाएं दी है। सामाजिक मुद्दों को उठाना उन्हें पसंद है।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Verified by MonsterInsights