Pitru Paksha Shradh: 29 सितंबर से शुरु हुआ पितृ पक्ष 14 अक्टूबर को खत्म होगा। इसमें पूरी श्रद्धा के साथ पितरों को याद किया जाता है और उनके प्रति आभार व्यक्त किया जाता है। पितृ पक्ष में पूर्वजों की तिथि पर श्राद्ध, पिंडदान और तर्पण करने की परंपरा है। पितृ पक्ष में पूरे विधि विधान से पितरों का श्राद्ध करने से उनकी आत्मा को शांति मिलती है और वो अपने वंशजों को सुख-समृद्धि का आशीर्वाद देते हैं। मान्यता है कि पितृ पक्ष में के दौरान हमारे पूर्वज किसी ना किसी रूप में हमसे मिलने धरती पर आते हैं।
पितृ पक्ष में कौए का विशेष महत्व माना है। माना जाता है कि इन दिनों में पितर कौवों के रूप में धरती पर आते हैं और जल-अन्न ग्रहण करते हैं। कौए के पितरों का रूप माना जाता है। मान्यता है कि श्राद्ध ग्रहण करने के लिए हमारे पितृ कौए का रूप धारण कर नियत तिथि पर दोपहर के समय हमारे घर आते हैं। पितृ पक्ष के दौरान अगर कौआ आपके घर में आकर भोजन ग्रहण करता है तो इसका मतलब है कि आपके पूर्वजों की दया दृष्टि आप पर है। यही वजह है कि श्राद्ध का प्रथम अंश कौओं को दिया जाता है।
पितृ पक्ष के दौरान आपको घर में बहुत सारी लाल चीटियां दिखाई दें तो यह भी पितरों के आसपास होने का संकेत है। माना गया है कि आपके पितृ चीटियों के रूप में अपने वशंजों से मिलने आते हैं। ऐसे में आपको चीटियों को आटा खिलाना चाहिए। इससे पितरों की आत्मा को शांति मिलती है।
कैसे मिलता है पितरों को भोजन?
हिंदू धर्म में मृत्यु के बाद पुनर्जन्म की मान्यता है। मरणोपरांत आत्मा पितृ लोक, गंधर्व लोक या किसी भी लोक अथवा योनी में जा सकती है। यह उस आत्मा के स्वयं के कर्मों पर निर्भर करता है। उसके पुण्य और पाप से ही आत्मा के लोक या योनी का निर्धारण होता है लेकिन वे जिस भी लोक या जिस भी योनी में हो आपके श्राद्ध का भोजन उन्हें तृप्ति प्रदान करेगा।
यदि पितर देवयोनी को प्राप्त करते हैं तो उन्हें यह भोजन अमृत रूप में प्राप्त होगा, गंधर्व लोक में जाने पर उन्हें भोग्य रूप में, प्राप्त होगा, पशुयोनी में हो तो तृण यानी घास रूप में और सर्पयोनी हो तो हवा यानि कि वायु रूप में वे तृप्त होंगे। यक्षयोनी के पितर पेय रूप में, दानवयोनी के पितर मांस रूप में, प्रेतयोनी के पितर रूधिर यानी लहू रूप में और मनुष्ययोनी में गए पितर अन्न रूप में श्राद्ध का प्रतिफल प्राप्त करते है।