माँ गंगा के तट पर स्थित उत्तराखण्ड का हरिद्वार नगर भारत की सांस्कृतिक नगरों में से एक है…. नगर का नाम हरिद्वार संस्कृत के शब्द हरि और द्वार से मिलकर बना है, जिसका अर्थ होता है, भगवान विष्णु का द्वार। आदि काल से ही हरिद्वार को तीर्थ स्थल के रूप में जाना जाता रहा है। भारत के प्रमुख तीर्थों में से एक माने जाने वाले इस नगर में वर्षभर भक्तों का मेला लगा रहता है।

कुम्भ नगरी हरिद्वार से तीन किलो मीटर की दूरी पर स्थित बिलवा पर्वत पर माता मनसा देवी का पवित्र स्थान है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, मां मनसा की शादीका विवाह जगत्कारू से हुआ था और उनके पुत्र का नाम आस्तिक था। मनसा देवी को नागों के राजा वासुकी की बहन के रूप में भी जाना जाता है।
माता मनसा देवी को भगवान शिव की मानस पुत्री के रूप में भी पूजा जाता है। ‘मनसा’ शब्द का प्रचलित अर्थ इच्छा है। मान्यता है कि माँ मनसा सच्चे और पवित्र भाव से स्मरण किये जाने पर श्रद्धालु की इच्छा को पूर्ण करती हैं। यह मंदिर 52 शक्तिपीठों में से एक है। वहीं हरिद्वार में स्थापित तीन सिद्ध पीठो में से भी यह एक है।
शिवालिक पर्वतमाला पर बिलवा नामक पहाड़ी पर स्थित मां मनसा देवी के प्रसिद्ध मंदिर में देवी की दो प्रतिमाएं स्थापित है। प्रथम प्रतिमा की पांच भुजाएं एवं तीन मुख हैं। जबकि दूसरी प्रतिमा की आठ भुजाएं हैं। मान्यता है कि यदि कोई व्यक्ति सच्चे मन से मनसा देवी के भवन में पहुंचकर निरंतर पूजा अर्चना करता है, तो मां मनसा देवी उसकी मनोकामना अवश्य पूर्ण करती हैं।
लोक किवदन्ती के अनुसार, महाभारत काल में राजा युधिष्ठिर ने भी विजय की कामना से माता मनसा की पूजा की थी जिसके फलस्वरूप वह महाभारत के युद्ध में विजयी हुए। जहाँ युधिष्ठिर ने पूजन किया वहाँ सालवन गाँव में माता का भव्य मंदिर स्थापित है। मनसा देवी का दर्शन करने हेतु यहाँ आने वाले श्रृद्धालु देवी माँ के जयकारे लगाते हुए कीर्तन भजन करते हुए 786 सीढियाँ चढ़कर मंदिर पहुँचते हैं । मंदिर से मां गंगा और हरिद्वार के समतल मैदानी क्षेत्र का मनोरम दृश्य देखकर हृदय में हर्ष उल्लास के भाव उत्पन्न हो जाते हैं।
भारत के कोने कोने में स्थित धार्मिक केंद्र ही भारत की आध्यत्मिक चेतना को स्पंदित करते हैं। माँ मनसा देवी के चरणों में कोटि-कोटि नमन है।
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