Famous Dunagiri Temple of Almora : देवभूमि उत्तराखण्ड देश- विदेश में हिन्दू आस्था और विश्वास का केंद्र है। यहां कदम-कदम पर स्थित देवस्थानों की अद्भुत जानकारी आज भी विश्व को अचंभित करती है।
आज हम इस वीडियों में एक ऐसे ही धाम की यात्रा करेंगे जिसके बारे में मान्यता है कि जम्मू के अतिरिक्त माता वैष्णोदेवी यहां भी शक्तिपीठ के रूप में विराजमान हैं…. जी हां हम बात कर रहे हैं दूनागिरी धाम की।
राष्ट्रीय राजधानी नई दिल्ली से लगभग 410 किलोमीटर और उत्तराखंड के अल्मोड़ा जिले के द्वारहाट बाजार से करीब 14 किमी दूर स्थित दूनागिरि धाम हिन्दू आस्था का प्रमुख केन्द्र है। यहां देशभर से श्रद्धालु पहुंचते हैं। प्राचीन दूनागिरि का उल्लेख पुराणों और उपनिषदों में भी मिलता है।
मान्यता है कि त्रेता युग में लंका युद्ध के समय जब लक्ष्मण जी मूर्छित हो गए थे तो हनुमान जी संजीवनी बूटी के लिए द्रोणगिरि पर्वत को उठा लाए थे। इस पर्वत का एक टुकड़ा यहीं गिरा था, इसलिए इस स्थान को द्रोणागिरि पर्वत भी कहा जाता है। जिसके बाद इस स्थान पर दूनागिरी मंदिर बन गया। जिसका वर्णन बद्रीदत्त पांडे द्वारा लिखित पुस्तक ‘कुमाऊं का इतिहास’ में भी है।
इसके बाद द्वापर युग में यह पवित्र स्थान पांडवगुरु द्रोण की तपोस्थली बनी तो द्रोण पर्वत कहा गया। मानसखंड के अनुसार ब्रह्म एवं लोध्र पर्वत यानी दो शिखर वाली पर्वत श्रृंखला दूनागिरी कहलाई। वहीं दो शिला विग्रहों की आदिकाल से पूजा होने के कारण इसे दूनागिरि कहा गया।
दूनागिरी धाम में भगवान शिव और माता पार्वती की प्राचीन प्रतिमा, ज्योर्तिलिंग और नंदी की प्रतिमा स्थापित हैं। मंदिर के गर्भगृह में दो शिलाओं के रूप में प्रकृति पुरुष शिव-पार्वती, विष्णु-माया, काली-महागौरी के रूप में शक्ति पूजन होता है।
मान्यता है कि जो भी महिला अखंड दीपक जलाकर संतान प्राप्ति के लिए पूजा करती है उसकी मनोकामना अवश्य ही पूर्ण होती है।
देवी पुराण के अनुसार अज्ञातवास में पांडवों ने युद्ध में विजय के लिए इस स्थान पर शक्ति उपासना की थी… ऐसा माना जाता है कि जम्मू के बाद शक्तिपीठ के रूप में माता वैष्णो यदि कहीं विराजमान हैं तो वह स्थान दूनागिरी धाम ही है। वहीं स्कंद पुराण के मानस खंड द्रोणादि महात्म्य में दूनागिरी को महामाया ब्रह्मचारी के रूप में प्रदर्शित किया गया है। 1238 ईसवी में कत्यूर वंशीय राजा सुधारदेव ने मंदिर का पुनर्निर्माण कर मूर्ति स्थापित की। हिमालय गजिटेरियन के लेखक ईटी एडकिंशन के अनुसार इस मंदिर के होने का प्रमाण वर्ष 1181 के शिलालेखों में भी मिलता है।

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By pratik khare

पत्रकार प्रतीक खरे झक्कास खबर के संस्थापक सदस्य है। ये पिछले 8 वर्ष से पत्रकारिता के क्षेत्र में सक्रिय हैं। इन्होंने कई समाचार पत्र, पत्रिकाओं के साथ - साथ समाचार एजेंसी में भी अपनी सेवाएं दी है। सामाजिक मुद्दों को उठाना उन्हें पसंद है।

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