मुगल आक्रांताओं में सबसे क्रूर शासक माने जाने वाले औरंगजेब के सम्पूर्ण भारत जीतने के सपने के बीच दीवार बनी रानी ताराबाई पर मराठी फिल्म बनने जा रही है। इसकी शूटिंग मंगलवार (23 अगस्त, 2022) से शुरू हो चुकी है। बताया जा रहा है कि यह फिल्म औरंगजेब के अत्याचारों का काला चिट्ठा खोलेगी। मराठा साम्राज्य की महारानी ताराबाई के इतिहास को फिल्म में दिखाया जाएगा।

मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, फिल्म की रिलीज डेट को लेकर तो निर्माताओं ने अभी स्पष्ट बात नहीं की है। लेकिन फिल्म को 2023 में रिलीज कर दिया जाएगा, ऐसी खबरें सामने आ रही है। ‘रानी ताराबाई’ के जीवन पर बनी इस फिल्म का नाम ‘मोगल मर्दिनी छत्रपति ताराराणी’ रखा गया है। फिल्म में रानी ताराबाई का किरदार सोनाली कुलकर्णी निभाने वाली हैं।



रानी ताराबाई का इतिहास
आपने अक्सर भारत के उन वीर योद्धाओं के बारे में सुना होगा, जिन्होंने राष्ट्र और धर्म के लिए विदेशी आक्रांताओं को धूल चटाई। इस सूची में सम्राट पृथ्वीराज चौहान, महाराणा प्रताप, छत्रपती शिवाजी महाराज और पेशवा बाजीराव जैसे वीर सहित कई नाम शामिल हैं। इन सबके बारे में आप सभी जानते होंगे, लेकिन आप में से ज्यादातर लोग शायद मराठा साम्राज्य की वीरांगना ‘महारानी ताराबाई’ के इतिहास से परिचित नहीं होंगे।
‘स्टोरी टाइम्स’ में छपे एक लेख के मुताबिक, रानी ताराबाई ने अपनी वीरता और कौशल से मराठा साम्राज्य को मुगल आक्रांत औरंगजेब से कई सालों तक बचाकर रखा। रानी ताराबाई का जन्म 1675 में हुआ था। वो छत्रपति शिवाजी महाराज के सरसेनापति हंबीरराव मोहिते की पुत्री थीं। इनका विवाह संभाजी महाराज के सौतेले भाई और शिवाजी महाराज के छोटे बेटे छत्रपति राजाराम महाराज से हुआ था।

सन् 1700 में मराठा छत्रपती राजाराम महाराज की मृत्यु के बाद ताराबाई ने अपने 4 वर्षीय पुत्र शिवाजी द्वितीय का राज्याभिषेक करवाकर उन्हें मराठा साम्राज्य का महाराज घोषित किया। अपने पुत्र को राजगद्दी पर बैठाकर ताराबाई ने ही मराठा साम्राज्य को औरंगजेब और मुगलों से संरक्षित रखा। उन्होंने 1700 से 1707 ईस्वी तक औरंगजेब से सीधे लोहा लिया।

इन 7 सालों में ताराबाई लगातार मुगलों पर आक्रमण करती रहीं। वे सेना को उत्साहित करतीं और किले बदलती रहती। उन्होंने जनता और सेना का विश्वास जीतकर मराठों को बढ़ाना शुरू किया। इस दौरान ताराबाई ने औरंगजेब की नाक के नीचे से सूरत की तरफ से मुगलों के क्षेत्रों पर आक्रमण करना शुरू किया। औरंगजेब मरते दम तक ताराबाई से नहीं जीत पाया और 1707 में उसने दम तोड़ दिया।

‘पब्लिकेशन डिवीजन’ की पुस्तक ‘भारत की नारी रत्न‘ में इतिहासकारों के हवाले से जिक्र है, “वह मराठा रानी एक बाघिन के जैसी हैं। एक छोर से दूसरे छोर, एक किले से दूसरे किले तक दौड़ती रहती, सैनिकों की परेशानियों को भी वो अपना मानती हैं। असहनीय तेज धूप को सहती और भूमि पर ही सोती। अपने सिपाहियों का जोश बढ़ाती, मुगलों द्वारा कब्जा की गई सीमा में आक्रमण करने की रणनीति तैयार करती। उनकी सोच इतनी चौकस और निर्णय इतने अचूक होते थे कि युद्धक्षेत्र तथा दरबार दोनों ही जगहों पर कुशल योद्धा और अनुभवी राजनीतिज्ञ उसका सम्मान करते थे। शुरू में कमजोर दिखाई पड़ रहे मराठा आक्रमणों ने अब इतना जोर पकड़ लिया था की मुगल साम्राज्य की नींव हिल गई।”

आपको बताते चलें कि सन 1789 में छत्रपती शिवाजी महाराज के बड़े बेटे संभाजी महाराज और उनकी माता साईबाई की बेरहमी से हत्या करने के बाद औरंगजेब ने स्वराज (मराठा साम्राज्य का उपनाम) की राजधानी राजगढ़ पर हमला करवाया। जिसक लिए उसने 15000 सिपाहियों की फौज भेजी और उन्होंने इस किले पर कब्जा कर लिया।

8 वर्षों तक मुगलों से बचाकर रखा जिंजी किला
जिस समय मुगलों ने रायगढ़ पर कब्जा कर लिया था, तब वहाँ से ताराबाई और राजाराम महाराज सुरक्षित बच निकले थे। तब वे जिंजी किले आ पहुँचे, अब ये स्थान तमिलनाडु में है। दक्षिण में मराठा साम्राज्य का ये आखिरी किला था। इस पर भी मुगल कब्जा करना चाहते थे। इसके लिए मुगल सेनापति ज़ुल्फ़िकर अली खान ने 8 सालों तक संघर्ष किया।

बता दें कि ज़ुल्फ़िकर अली खान ने सितंबर 1690 में पहली बार जिंजी किले पर आक्रमण किया। वहीं राजाराम का स्वास्थ्य बिगड़ने के कारण शासन को ताराबाई ने अपने हाथों में लिया। तब से लेकर जनवरी 1698 तक मुगल सेनापति इस किले को जीतने कोशिश करता और हर बार उसे पराजित होना पड़ता। ताराबाई ने अपने गढ़ के बचाने के साथ-साथ मुगलों को खदेड़ कर मराठा भूमि से भगा दिया था।

रानी ताराबाई के बारे में यह भी कहा जाता है कि वे गुरिल्ला युद्ध का बहुत प्रयोग करती थीं। वहीं उन्होंने औरंगजेब की रिश्वत नीति को भी अपनाया था। औरंगजेब शत्रु सेना के सेनापतियों को घूस देकर युद्ध में फायदा लेता था। इसके अलावा शाही सेना कि एक ओर तकनीक महारानी प्रयोग करती थीं। ताराबाई और उनके सेनापति दुश्मन साम्राज्य में घुसकर अपने टैक्स कलेक्टर नियुक्त करने लगे। इस तरह वे मुग़लों के इलाके से ही कर जोड़कर, मराठा धन में बढ़ोतरी कर रही थीं।

ताराबाई की वीरता के मुगल दरबारी भी थे कायल
‘बेटर इंडिया’ के एक आर्टिकल के मुताबिक महारानी ताराबाई की वीरता और युद्धनीति के मुगल भी कायल थे। मुगल सेना के एक अधिकारी भीमसेन ने ताराबाई को लेकर कहा, “अपने पति की तुलना में ताराबाई मजबूत शासक थीं। उन्होंने उस समय की परिस्थितियों को इतने अच्छे तरीके से नियंत्रित किया कि कोई मराठा नेता उनके आदेश के बिना कोई काम नहीं करता था।” बताते चलें कि वह तलवार की लड़ाई, तीरंदाजी, घुड़सवार सेना, सैन्य रणनीति, कूटनीति और राज्य के अन्य सभी विषयों में अच्छी तरह से निपूर्ण भी थी।

वहीं मुगल इतिहासकार खफी खान ने महारानी ताराबाई के बारे में लिखा, “मराठा अधिकारियों के दिलों पर उनका राज था। महारानी ताराबाई के संघर्ष, उनकी तमाम योजनाओं, उनके युद्ध अभियान और औरंगजेब के मरने तक उसकी मुग़ल फ़ौज को लगातार हराते रहने के कारण मराठों की शक्ति दिन प्रतिदिन बढ़ती ही चली गई।”

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By pratik khare

पत्रकार प्रतीक खरे झक्कास खबर के संस्थापक सदस्य है। ये पिछले 8 वर्ष से पत्रकारिता के क्षेत्र में सक्रिय हैं। इन्होंने कई समाचार पत्र, पत्रिकाओं के साथ - साथ समाचार एजेंसी में भी अपनी सेवाएं दी है। सामाजिक मुद्दों को उठाना उन्हें पसंद है।

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