Uttarakhand Kartik Swami Temple: देवभूमि उत्तराखंड का धर्म और अध्यात्म के क्षेत्र में बहुत ही महत्वपूर्ण स्थान है। विश्वभर से लोग यहाँ भारतीय संस्कृति जानने आते है। हरी-भरी वनस्पतियों से भरे पहाड़, घाटियां, हिमालय की बर्फीली चोटियां, नदी-झरने इस स्थल को एक अद्भुत रूप प्रदान करते हैं।
उत्तराखंड असंख्य मंदिरों का घर है, जिनमें से अनेक मंदिर पौराणिक काल से संबंध रखते हैं। भारत के कई बड़े तीर्थ स्थल यहां की पहाड़ियों के मध्य स्थित हैं, जिसमें केदारनाथ, बद्रीनाथ, गंगोत्री, यमुनोत्री, हेमकुंड आदि शामिल हैं।
प्रतिवर्ष यहां के प्राचीन मंदिरों के दर्शन के लिए लाखों श्रद्धालु यहाँ धार्मिक यात्रा के लिए आते है। उत्तराखंड में एक धाम ऐसा भी है जो भगवान शंकर के पुत्र भगवान कार्तिकेय को समर्पित है।
उत्तराखंड के रूद्रप्रयाग जिले में स्थित कार्तिक स्वामी मंदिर हिन्दुओं का एक पवित्र धार्मिक स्थल है, जो भगवान शिव के ज्येष्ठ पुत्र कार्तिकेय जी को समर्पित है। यह मंदिर समुद्र तल से 3050 मीटर की ऊंचाई पर गढ़वाल हिमालय की बर्फीली चोटियों के मध्य स्थित है।
माना जाता है कि यह एक प्राचीन मंदिर है जिसका इतिहास वर्षों पुराना है। पहाड़ी ऊंचाई पर स्थित मनमोहक छवि वाला यह मंदिर श्रद्धालुओं की आस्था का प्रमुख केन्द्र है। इस स्थान के बारे में मान्यता है कि भगवान कार्तिकेय ने इस स्थान पर ही अपनी हड्डियां भगवान शिव को समर्पित की थी।
किवदंती के अनुसार एक दिन भगवान शिव ने अपने दो पुत्र गणेश और कार्तिकेय से कहा कि तुम में से जो ब्रह्माण्ड के सात चक्कर पहले लगाकर आएगा उसकी पूजा सभी देवी-देवताओं से पहले की जाएगी।
कार्तिकेय ब्रह्माण्ड के सात चक्कर लगाने के लिए उसी समय निकल गए, लेकिन दूसरी ओर गणेश ने भगवान शिव और माता पार्वती के सात चक्कर लगा लिए और कहा कि मेरे लिए तो आप दोनो ही संपूर्ण ब्रम्हांड हो।
भगवान शिव बाल गणेश से काफी खुश हुए और उन्हे सौभाग्य प्रदान करा कि आज से तुम्हारी पूजा सबसे पहले की जाएगी। लेकिन जब कार्तिक ब्रम्हांड का चक्कर लगाकर आए और उन्हें इस बात का पता चला तो उन्होंने अपना शरीर त्याग दिया और अपनी हड्डियां भगवान शिव को अर्पित कर दी।
मंदिर में घन्टी बांधने की एक अनोखी परम्परा है। मान्यता है कि यदि श्रद्धालु इस मंदिर में घन्टी बांधते है तो उनकी मनोकामना पूर्ण होती है। बहुत दूर से ही आपको मंदिर प्रांगण में लगी अलग-अलग आकार की घंटियां दिखाई देने लगती हैं।
मंदिर के गर्भ गृह तक पहुंचने के लिए श्रद्धालुओं को मुख्य सड़क से लगभग 80 सीढ़ियों की यात्रा तय करना होती है। यहां सांझ की आरती अत्यंत विशिष्ट होती है। इस समय यहां भारी संख्या में भक्त उपस्थित रहते हैं।