प्रतीक खरे
एक महान स्वतन्त्रता सेनानी, कवि और सामाज सुधारक जिनकी याद में हिन्दू विश्वविद्यालय काशी के तमिल अध्ययन केंद्र में सुब्रमण्यम भारती चेयर की स्थापना की गई, जिन्हें हम महाकवि भारथियार के नाम से भी जानते है। वह महान व्यक्ति थे कवि सुब्रमण्यम भारती।
जब देश में स्वतन्त्रता आन्दोलन अपने शिखर पर था, उस समय सुब्रमण्यम भारती ने न केवल देशभक्ति की मशाल जलाई बल्कि अपनी कविताओं और रचनाओं के माध्यम से मानव जीवन के हर पहलू को स्पर्श किया जो समाज के पुनरुत्थान और उत्तरोत्तर विकास के लिए आवश्यक थे।
सुब्रमण्य भारती साहित्य की दोनों कलाओं गद्य और काव्य में विपुल और कुशल थे। उनकी रचनाओं ने भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन के लिए जनता को एकजुट करने में मदद की। उनकी रचनाओं में समग्रता, प्रभावोत्पादकता, व्यापक दृष्टि थी। राष्ट्र के प्रति अनन्य प्रेम के कारण उन्हे सम्मान से “महाकवि भारथियार” के नाम से भी जाना जाता है।
सुब्रमण्य भारती का जीवन भारतीय इतिहास के उस महत्वपूर्ण कालखंड का साक्षी है जब बाल गंगाधर तिलक, श्री अरबिंदो, वीवीएस अय्यर, गांधी जी जैसे लोग भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन के प्रमुख नेता थे और भारती जी ने उनके साथ कंधे से कंधा मिलाकर स्वतंत्रता संग्राम की ज्योति को आगे बढ़ाया।
कई भाषाओं में थे पारंगत
सुब्रमण्यम भारती अपनी मातृभाषा तमिल भाषा के प्रति समर्पित थे, उन्हें अपनी विरासत पर गर्व था। भारती तेलुगु, बंगाली, हिंदी, संस्कृत, फ्रेंच और अंग्रेजी सहित कई भाषाओं में पारंगत थे और अन्य भाषाओं से तमिल में अनुवाद करते थे। ताकि तमिल भाषी भी अन्य भाषाओँ में उपलब्ध राष्ट्रीय बोध से अवगत हो सकें।
स्त्रियों के साथ भेदभाव जैसी कुप्रथाओं के थे विरुद्ध
आज भी कुछ राष्ट्रविरोधी तत्व भारती को ऐसे व्यक्ति के रूप में चित्रित करते हैं कि वह ब्राह्मण समुदाय और हिंदू धर्म के विरुद्ध थे। जबकि भारती तत्कालीन समाज में जड़ें जमा चुकी छुआछूत और स्त्रियों के साथ भेदभाव जैसी कुप्रथाओं के विरुद्ध थे। भारती देवी काली के बड़े भक्त थे और उन्होंने देवी की स्तुति करते हुए कई कविताओं की रचना की थी, फिर उन्हें हिन्दू विरोधी कहने का षड्यंत्र क्यों किया गया।
भारती ने अपने जीवन काल में पंजाली सपथम, कन्नन पट्टु , कुयिल पट्टु , पतंजलि योग सूत्र और भगवद गीता का अनुवाद सहित अन्य लेखन कार्य किए। जो आज भी समाज को नई दिशा दिखा रहे हैं। उनकी कविताएं और साहित्यिक कृतियां केवल स्वतंत्रता के विचारों तक ही सीमित नहीं थीं, बल्कि उन्होंने उनके समय में प्रचलित सभी सामाजिक बुराइयों के विरुद्ध एक समाज सुधारक के रूप में अपनी भावनाओं को प्रतिध्वनित किया गया था।
सम्मान में राष्ट्रीय सुब्रमण्य भारती पुरस्कार की स्थापना
भारत सरकार ने उनके सम्मान में राष्ट्रीय सुब्रमण्य भारती पुरस्कार की स्थापना की, जो हिंदी साहित्य में उत्कृष्ट कार्यों के लेखकों को प्रतिवर्ष प्रदान किया जाता है। सुब्रमण्यम भारती का जीवन काल मात्र 39 वर्ष का रहा किन्तु इस अल्पकाल में भी उनका राष्ट्रीय बोध के जागरण में जो योगदान था वह अनुकरणीय और वंदनीय है। भारत की पीढ़ियां उन्हें सदैव स्मरण रखेंगी।