नई दिल्ली। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने होटल अशोक में विश्व बौद्ध शिखर सम्मेलन के उद्घाटन सत्र को संबोधित किया. प्रधानमंत्री ने फोटो प्रदर्शनी का अवलोकन किया और बुद्ध प्रतिमा पर पुष्प अर्पित किए. उन्होंने उन्नीस प्रतिष्ठित भिक्षुओं को भिक्षु वस्त्र (चीवर दान) भी भेंट किए.
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने विश्व बौद्ध शिखर सम्मेलन के उद्घाटन सत्र में दुनिया के विभिन्न हिस्सों से आए अतिथियों का स्वागत किया. उन्होंने कहा कि ‘अतिथि देवो भव’ यानि ‘मेहमान भगवान के समान होते हैं’ की भावना, बुद्ध की इस भूमि की परंपरा है और बुद्ध के आदर्शों के अनुरूप जीवन जीने वाली विभूतियों की उपस्थिति हमें स्वयं बुद्ध के आसपास होने का अनुभव कराती है. “बुद्ध व्यक्ति से आगे बढ़कर, एक बोध हैं.” बुद्ध एक अनुभूति हैं जो व्यक्ति से आगे बढ़कर है, वे एक सोच हैं जो स्वरूप से आगे बढ़कर है और बुद्ध चित्रण से आगे बढ़कर एक चेतना हैं. “बुद्ध की यह चेतना शाश्वत है.” उन्होंने कहा कि विभिन्न क्षेत्रों से जुड़े इतने सारे लोगों की उपस्थिति बुद्ध के प्रसार का प्रतिनिधित्व करती है जो मानवता को एक सूत्र में बांधती है.
उन्होंने दुनिया के कल्याण के लिए वैश्विक स्तर पर भगवान बुद्ध के करोड़ों अनुयायियों की सामूहिक इच्छा और संकल्प की ताकत को भी रेखांकित किया. यह पहला विश्व बौद्ध शिखर सम्मेलन सभी देशों के प्रयासों के लिए एक प्रभावी मंच तैयार करेगा.
उन्होंने कहा कि यह विश्व बौद्ध शिखर सम्मेलन भारत की स्वाधीनता के 75वें वर्ष के दौरान उस समय हो रहा है, जब देश अमृत काल मना रहा है. भारत के पास अपने भविष्य के लिए विशाल लक्ष्य और वैश्विक कल्याण के नए संकल्प भी हैं.
उन्होंने शांति मिशन और तुर्किए में भूकंप जैसी आपदाओं के दौरान बचाव कार्य में भारत द्वारा पूरा सामर्थ्य लगाकर किए प्रयासों का उल्लेख किया. “140 करोड़ भारतीयों की इस भावना को दुनिया देख रही है, समझ रही है और स्वीकार कर रही है.” आईबीसी जैसे मंच समान विचारधारा वाले और समान हृदय वाले देशों को बुद्ध के धम्म और शांति का प्रसार करने का अवसर दे रहे हैं.
प्रधानमंत्री ने कहा, “समस्या से समाधान तक पहुंचने की यात्रा ही बुद्ध की वास्तविक यात्रा है.” सुखी विश्व के लक्ष्य को प्राप्त करने का एकमात्र तरीका यह है कि स्व से निकलकर संसार और संकुचित सोच को त्यागकर समग्रता के बुद्ध के मंत्र को अपनाया जाए. बेहतर और स्थिर दुनिया तभी हासिल की जा सकती है, जब हम संसाधनों की कमी से जूझने वाले देशों के बारे में विचार करें. “यह समय की मांग है कि हर व्यक्ति और राष्ट्र की प्राथमिकता देशहित के साथ विश्वहित भी हो.”
प्रधानमंत्री ने कहा कि वर्तमान समय इस सदी का सबसे चुनौतीपूर्ण समय है क्योंकि युद्ध, आर्थिक अस्थिरता, आतंकवाद एवं धार्मिक कट्टरता की समस्या और विभिन्न प्रजातियों के लुप्त होने और ग्लेशियरों के पिघलने के साथ-साथ जलवायु परिवर्तन की चुनौती सामने है.
उन्होंने कहा कि आधुनिक समय की सभी समस्याओं का समाधान भगवान बुद्ध की प्राचीन शिक्षाओं के माध्यम से होता है. भगवान बुद्ध ने स्थायी शांति के लिए युद्ध, हार और जीत के विचार को त्यागने का उपदेश दिया. उन्होंने कहा कि दुश्मनी का मुकाबला दुश्मनी से नहीं किया जा सकता और खुशहाली एकता में निहित है. उन्होंने कुछ साल पहले संयुक्त राष्ट्र में दिए कथन का स्मरण करवाया कि ‘हम वो देश हैं, जिसने दुनिया को युद्ध नहीं बुद्ध दिए हैं.’
प्रधानमंत्री ने कहा, “बुद्ध का मार्ग भविष्य का मार्ग और स्थिरता का मार्ग है. अगर दुनिया ने बुद्ध की शिक्षाओं का पालन किया होता, तो उसे जलवायु परिवर्तन के संकट का सामना नहीं करना पड़ता. यह संकट इसलिए आया क्योंकि कुछ देशों ने दूसरों और आने वाली पीढ़ियों के बारे में सोचना बंद कर दिया.
प्रधानमंत्री ने भौतिकवाद और स्वार्थ की परिभाषाओं से बाहर आने और ‘भवतु सब मंगलम’ की भावना को आत्मसात करने की जरूरत पर जोर दिया, यानि बुद्ध को प्रतीक ही नहीं बल्कि विचार भी बनाना चाहिए. यह संकल्प तभी पूरा होगा, जब हम पीछे न मुड़ने और हमेशा आगे बढ़ने के बुद्ध के वचनों को याद रखेंगे. विश्वास जताया कि ये सारे संकल्प सभी के साथ आने से सफल होंगे.