Chaudhary Charan Singh biography: चरण सिंह स्वतंत्र भारत के पांचवे प्रधानमंत्री थे, इस पद को इन्होने 28 जुलाई 1979 से 14 जनवरी 1980 तक सम्भाला. चरण सिंह का कार्यकम महज 7 महीने का था, लेकिन इस दौरान उन्होंने देश के किसान भाइयों की स्थति सुधारने व उनके अधिकार के लिए अथक प्रयास किये. इन्होने देश की आजादी में भी अपना योगदान दिया. अपने जीवन का बड़ा हिस्सा इन्होने देश की राजनीती को दिया, इन्होने राजनीती को करीब से जाना व समझा था.
चरण सिंह जन्म व शिक्षा
चरण सिंह जन्म जाट परिवार में 23 दिसम्बर सन 1902 में उत्तर प्रदेश के मेरठ जिले में चौधरी मीर सिंह के परिवार में हुआ . इनके पिता किसान थे, जो अत्याधिक गरीब थे. इनके व्यवहार में इनके पिता की छवि झलकती थी. गरीबी में जीवन व्यतीत करने के बाबजूद उन्होंने पढाई को पहला दर्जा दिया. इनके परिवार का संबंध 1857 की लड़ाई में हिस्सा लेने वाले राजा नाहर सिंह से था. इनके पिता की अध्ययन में काफी रूचि थी, इसलिए इनका भी काफी झुकाव रहा. प्रारम्भिक शिक्षा नूरपुर ग्राम में ही हुई एवम मेट्रिक इन्होने मेरठ के सरकारी उच्च विध्यालय से किया . 1923 में यह विज्ञान के स्नातक हुए, दो वर्षों के बाद 1925 में कला स्नातकोत्तर की परीक्षा उत्तीर्ण की, इसके पश्चात वकील की परीक्षा उत्तीर्ण करने के बाद गाजियाबाद में वकालत का कार्यभार सम्भाला. इनका विवाह गायत्री देवी से हुआ.
चरण सिंह का आजादी की लड़ाई में आना
1929 में चरण सिंह ने भारत के स्वतन्त्रता आन्दोलन में प्रवेश किया, सर्वप्रथम इन्होने गाजियावाद में काँग्रेस का गठन किया. 1930 में गांधीजी द्वारा चलाये गये “सविनय अवज्ञा आन्दोलन” में नमक कानून तोड़ने का आव्हान किया, चरण सिंह ने गाजियाबाद की सीमा पर बहने वाली हिंडन नदी पर नमक बनाया था एवम “डांडी मार्च” में भी भाग लिया. इस दौरान इन्हें 6 माह के लिए जैल भी जाना पड़ा. इसके बाद इन्होने महात्मा गाँधी जी की छाया में खुद को स्वतन्त्रता की आँधी का हिस्सा बनाया .
1940 के सत्याग्रह आन्दोलन में भी यह जेल गए उसके बाद 1941 में बाहर आये . फरवरी 1937 में इन्हें विधानसभा के लिए चुना गया . 31 मार्च 1938 में इन्होने “कृषि उत्पाद बाजार विधेयक” पेश किया यह विधेयक किसानों के हित में था, यह विधेयक सर्वप्रथम 1940 में पंजाब द्वारा अपनाया गया. आजादी के बाद, चरण सिंह 1952 में, उत्तरप्रदेश के राजस्व मंत्री बने एवम किसानों के हित में कार्य करते रहे, इन्होने 1952 में “जमींदारी उन्मूलन विधेयक ” पारित किया. इस विधेयक के कारण 27000 पटवारियों ने त्याग पत्र दे दिया . जिसे इन्होने निडरता के साथ स्वीकार किया एवम किसानों को पटवारी के आतंकी वातावरण से आजाद किया और स्वम् ने ‘लेखपाल ’ पद का भर सम्भाला और नए पटवारी नियुक्त किये जिसमे 18% हरिजनों के लिए आरक्षित किया गया.
चरण सिंह राजनैतिक सफ़र
चरण सिंह व जवाहर लाल नेहरु के विचारो एवम कार्यप्रणाली में काफी मतभेद था. जिसके चलते इन दोनों में कई बार टकराव हुए, चरण सिंह नेहरु की आर्थिक नीती के आलोचक थे. चरण सिंह ने इस मतभेद के चलते 1967 में काँग्रेस पार्टी को छोड़ दिया और राज नारायण एवम राम मनोहर लोहिया के साथ नयी पार्टी का गठन किया, जिसका चिन्ह ‘हलदार’ था. इसके बाद कई काँग्रेस विरोधी नेताओं को 1970 एवम 1975 में जेल में बन्द किया गया . 1975-1977 में आपातकालीन स्थिती में इन्दिरा गाँधी के लगभग सभी विरोधी नेता जेल में थे. इन नेताओं ने जनता पार्टी के लिए जेल में रहकर ही चुनाव लड़ा एवम जीत हासिल की. इसके बाद चौधरी चरण सिंह एक वरिष्ठ नेता के रूप में सत्ता में आये.
मोरारजी देसाई जी के कार्यकाल में चरण सिंह “उप-प्रधानमंत्री” एवम “गृहमंत्री रहे. इसी शासन के दौरान चरण सिंह और मोरार जी देसाई के बीच मतभेद बढ़ गये थे. इसके बाद चरण सिंह ने बगावत कर दी व जनता दल पार्टी छोड़ दी, जिससे मोरारजी देसाई की सरकार गिर गई. कांग्रेस व दूसरी पार्टी के समर्थन से चरण सिंह ने 28 जुलाई 1979 को प्रधानमंत्री पद को संभाला. इस समय इन्हें इन्दिरा गाँधी जैसे दिग्गज नेता बहुत समर्थन दिया. समाजवादी पार्टी और काँग्रेस ने एक साथ समझौता कर शासन किया, पर कुछ वक्त बाद 19 अगस्त 1979 में इन्दिरा ने समर्थन वापस ले लिया और समर्थन के लिए इन्दिरा ने शर्त रखी की, “उनकी पार्टी व उनके खिलाफ़ किये गये मुक़दमें वापस लिए जाये”, पर चरण सिंह के लिए इस शर्त को मानना उनके सिधान्तों के विरुध्द था. इसलिए उन्होंने इस शर्त को स्वीकार नहीं किया और सिधान्तों के विरुध्द न जाकर, समर्थन न मिलने से प्रधानमंत्री के पद से इस्तीफा दे दिया.
चरण सिंह के द्वारा किये गए कार्य चरण सिंह किसानों के लिए एक महीसा की तरह थे. इन्होने पुरे उत्तर प्रदेश के किसानों से मिल कर उनकी समस्या का निदान किया . भारत की भूमि हमेंशा से कृषि प्रधान रही है. कृषकों के प्रति प्रेम ने चरण सिंह को इतना सम्मान दिया की इन्हें कभी हार का सामना नहीं करना पड़ा . इनका जीवन सादगी पूर्ण एवम सिधांतवादी रहा. यह भी गांधीवादी विचारधारा के नेता थे, जिन्होंने इस विचारधारा को जीवन पर्यन्त संजोया . गांधीवादी नेताओं ने बाद में जब कांग्रेस छोड़ अलग पार्टी बनाई थी, तब गाँधी टोपी का त्याग कर दिया था, पर चरण सिंह ने उसे जीवन भर धारण किया . गाँधी जी ने भी किसानों को भारत का सरताज कहा था . आजादी के बाद चरण सिंह ही ऐसे नेता थे जिन्होंने किसानों के जीवन को सुधारा.
चरण सिंह मृत्यु
29 मई 1987 को इनका निधन हो गया . इनकी पत्नी गायत्री देवी और पांच बच्चे थे. इनके पूर्वज राजा नाहर सिंह 1857 की क्रांति में भागीदारी थे. इस तरह देश प्रेम चरण सिंह के स्वभाव में व्याप्त था. इनकी अंग्रेजी भाष में अच्छी पकड़ थी, इन्होने कई पुस्तके भी इसी भाषा में लिखी थी.