भारतीय संस्कृति का तिब्बत के साथ गहरा संबंध है और तिब्बत को भारतीय सांस्कृतिक परंपरा का महत्वपूर्ण हिस्सा माना जाता है। यह संबंध कोई नया नहीं है यह सदियों पुराना है।
तिब्बत प्राचीन भारतीय संस्कृति, धर्म और सभ्यता का एक प्रमुख केंद्र रहा है। चीन ने वर्ष 1951 में अवैध रूप से इस पर कब्जा कर अपने नियंत्रण में ले लिया था तभी से तिब्बती धर्मगुरु दलाई लामा ने भारत में शरण ले रखी है।
तिब्बत सदियों से एक स्वतंत्र देश था लेकिन मंगोल राजा कुबलई खान ने युवान राजवंश की स्थापना की और उसने तब तिब्बत, चीन, वियतनाम और कोरिया तक अधिकार कर लिया था।
17वीं शताब्दी में चीन के चिंग राजवंश के तिब्बत के साथ रिश्ते बने और फिर लगभग 260 वर्ष के बाद चीन की चिंग सेना ने तिब्बत पर अधिकार कर लिया लेकिन 3 वर्ष के भीतर ही तिब्बतियों ने विदेशी शासन को उखाड़ फेंका और 1912 में तेरवें दलाई लामा ने तिब्बत की स्वतंत्रता की घोषणा की। तब से लेकर 1951 तक तिब्बत एक स्वंतन्त्र देश के रूप में जाना जाता था।
तिब्बत प्राचीन काल से ही योगियों और सिद्धों का घर माना जाता रहा है तथा अपने पर्वतीय सौंदर्य के लिए भी यह प्रसिद्ध है। संसार में सबसे अधिक ऊंचाई पर बसा हुआ प्रदेश तिब्बत ही है। तिब्बत मध्य एशिया का सबसे ऊंचा प्रमुख पठार है। वर्तमान में यह बौद्ध धर्म का प्रमुख केंद्र है।
सनातन धर्म की आस्था के प्रमुख केन्द्रों में कैलाश पर्वत और मानसरोवर तिब्बत में ही स्थित है। यहीं से ब्रह्मपुत्र नदी निकलती हैं। तिब्बत स्थित पवित्र मानसरोवर झील से निकलने वाली सांग्पो नदी पश्चिमी कैलाश पर्वत के ढाल से नीचे उतरती है तो ब्रह्मपुत्र कहलाती है। तिब्बत के मानसरोवर से निकलकर बाग्लांदेश में गंगा को अपने सीने से लगाकर एक नया नाम पद्मा फिर मेघना धारण कर सागर में समा जाने तक की 2906 किलोमीटर लंबी यात्रा करती है।
कैलाश और मानसरोवर के निकट बसी हुई कुबेर की नगरी ‘अलकापुरी’ का महाकवि कालिदास ने अपने महान ग्रन्थ ‘मेघदूत’ में वर्णन किया है।
प्राचीनकाल में तिब्बत को त्रिविष्टप कहते थे। भारत के बहुत से विद्वान मानते हैं कि तिब्बत ही प्राचीन आर्यों की भूमि है। पौराणिक ग्रंथों के अनुसार वैवस्वत मनु ने जल प्रलय के बाद इसी को अपना निवास स्थान बनाया था और फिर यहीं से उनके कुल के लोग संपूर्ण भारत में फैल गए थे।
वेद-पुराणों में तिब्बत को त्रिविष्टप कहा गया है। महाभारत के महाप्रस्थानिक पर्व में स्वर्गारोहण में स्पष्ट किया गया है कि तिब्बत हिमालय के उस राज्य को पुकारा जाता था जिसमें नंदनकानन नामक देवराज इंद्र का देश था। इससे सिद्ध होता है कि इंद्र धरती पर ही हिमालय क्षेत्र में रहते थे, जिसे स्वर्ग की उपमा दी गयी थी।
वहीं भगवान शिव और अन्य देवताओं की भी निवास स्थली हिमालय क्षेत्र रहा है। हिन्दू धर्मग्रंथों के अनुसार जलप्रलय के पश्चात कई माह तक वैवस्वत मनु विशालकाय नाव में ही रहे, प्रलय का प्रभाव कम हो जाने के बाद उनकी नाव गौरी -शंकर के शिखर से होते हुए नीचे उतरी। गौरी-शंकर को ही एवरेस्ट चोटी कहा जाता है, दुनिया में इससे ऊंचा, बर्फ से ढका हुआ ठोस पर्वत दूसरा नहीं है।
बौद्ध धर्म के महान् आचार्यों शान्तरक्षित और पद्मसंभव ने तिब्बत की यात्राएँ 8वीं शती के मध्य में और अतिशा ने 11 वीं शताब्दी के मध्य में कीं। इस सांस्कृतिक सम्पर्क से तिब्बत में लामावाद की स्थापना और विकास हुआ।
तिब्बत में ही मानस शक्ति पीठ स्थित है। मानस शक्तिपीठ भगवान शिव की पत्नी माता सती के 51 शक्तिपीठों में से एक है। मान्यता है कि यहां माता सती के दाहिने हाथ की हथेली गिरी थी। इसलिए यहां सती की पूजा दाक्षायनी और शिव जी की पूजा भगवान भैरव व ‘अमर’ के रूप में की जाती है। यहां देवी की पूजा एक शिला के रूप में होती है।