विश्व को भारतीय संस्कृति और ज्ञान का पाठ पढ़ाने वाले स्वामी विवेकानंद जी प्रकांड विद्वान, महान दार्शनिक, अद्भुत विचारक और युवा शक्ति के प्रेरणास्रोत थे… जिन्होंने विश्व धर्म सम्मेलन में सनातन धर्म के महान विचारों से सम्पूर्ण विश्व को परिचित करवाया था।
स्वामी विवेकानंद जी का जन्म 12 जनवरी 1863 को एक बंगाली कायस्थ परिवार में कलकत्ता में हुआ था। वर्ष 1870 में उन्हें श्री ईश्वरचंद विद्यासागर द्वारा स्थापित स्कूल में भर्ती कराया गया। मैट्रिक के बाद उन्होंने कोलकाता के प्रेसीडेंसी कॉलेज में प्रवेश लिया और दर्शनशास्त्र में एमए पूरा किया। उसके बाद वह सत्य की खोज में लग गए… इसी दौरान उनकी मुलाकात स्वामी रामकृष्ण परमहंस से हुई और उनके शिष्य बन गए। उसके बाद उन्होंने 1888 से भारत भ्रमण शुरू किया… और उन्होंने लगभग पूरे पांच साल भारत का भ्रमण किया।
इस दौरान स्वामी विवेकानंद जी ने युवाओं को समाज सेवा के महत्व का संदेश दिया और गरीबों के प्रति उनकी सेवा की अवधारणा ने लाखों युवाओं के मन में प्रेरणा जगाने में सहायता की।
इसके अतिरिक्त परतंत्रता काल में ब्रिटिश उपनिवेवाद के चंगुल में जकड़े भारत के स्वबोध को जगाकर विश्व-मंच पर भारतीय अध्यात्म और भारत की अनुपम विरासत का परचम लहराने में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभायी…
वर्ष 1893 में अमेरिका के शिकागो शहर में स्वामी जी के द्वारा दिया गया भाषण विश्व के प्रसिद्ध भाषणों में से एक है। भारत की प्राचीन आध्यात्मिक विरासत को संपूर्ण विश्व में प्रखर रूप से स्वामी जी ने उस कालखंड में रखा था जिस कालखंड में भारत ब्रिटिश तंत्र के अधीन था और उसे संपूर्ण विश्व में हेय दृष्टि से देखा जाता था। दुनिया में भारत की प्रतिष्ठा नहीं थी। गुलामी के कारण भारत का जनमानस भी आत्मविश्वास से विहीन था। स्वामी जी ने जिस प्रखरता के साथ भारत की संत परंपरा से प्राप्त ज्ञान को संपूर्ण विश्व के समक्ष रखा था उससे विश्व के विद्वानों एवं धार्मिक गुरुओं के मन में भारत के प्रति आदर जाग उठा था। सभागार में उपस्थित विद्वत जन समुदाय भारत के वास्तविक स्वरुप को अनुभव कर रहा था।
शिकागो सम्मेलन के पश्चात दुनिया की भारत को देखने की दृष्टि बदल गई, इसके साथ ही भारत के बुद्धिजीवी वर्ग में भी भारत की सनातन संस्कृति और सनातन हिंदूधर्म के प्रति फिर से जागरुकता आ गई जो ब्रिटिश तंत्र की प्रताड़ना के प्रभाव में धूमिल पड़ गई थी।
भारत के सनातन ज्ञान को एक वैज्ञानिक बुद्धि वाले युवा संन्यासी ने विश्व के सामने तर्क और साक्ष्यों के साथ रखा, वसुधैव कुटुंबकम और विश्व कल्याण के मार्ग को प्रस्तुत किया। हजारों लोगों ने स्वामी जी के द्वारा बताए गए सनातन धर्म को अपनी जीवन शैली और आत्मा में धारण किया।
स्वामी विवेकानंद के इस उद्बोधन के पश्चात भारत को समझने के लिए अनेक जिज्ञासुओं का भारत में आना प्रारंभ हुआ और भारत से अनेक संतों ने पश्चिम में जाकर भारत की संस्कृति को संपूर्ण पश्चिमी जगत के समक्ष नई-नई शैली में रखना प्रारंभ किया।
भारत के सनातन ज्ञान को विश्व तक पहुंचने में स्वामी विवेकानंद का अद्भुत योगदान है और आज भी उनकी बौद्धिक और आध्यात्मिक विरासत भारत के युवाओं को भारत को समझने के लिए और भारत के स्वबोध को धारण करने के लिए प्रेरित करती है। वे सही अर्थ में युवा भारत की तेजस्विता के प्रतीक हैं।
19वीं शताब्दी में स्वामी विवेकानंद के द्वारा स्थापित वह ज्ञान परंपरा आज भी सतत प्रवाहमान है स्वामी शिवानंद, परमहंस योगानंद, महर्षि महेश योगी, जे. कृष्णमूर्ति, श्रील प्रभुपाद, स्वामी चिन्मयानन्द और ओशो जैसे दार्शनिकों, विचारकों एवं संतों ने भारत की आध्यात्मिक विरासत को अपनी अपनी विशिष्ट शैली में संपूर्ण विश्व को हस्तांतरित किया है। समय-समय पर भारत की आध्यात्मिक और सांस्कृतिक विरासत के प्रतिनिधि आज भी विश्व को आध्यात्मिक संदेश देने में सक्रिय हैं।