राजस्थान को किलों का शहर कहा जाता है, यहां कई ऐसे किले हैं, जिनका इतिहास स्वर्णिम अक्षरों में लिखा हुआ है। इसमें से ही एक है राजस्थान का सोनार किला। स्वर्णिम आभा बिखेरता यह किला राजस्थान के जैसलमेर जिले में स्थित है। यह किला लगभग 900 साल पुराना है, कहा जाता है कि इसे किले के निर्माण के साथ ही जैसलमेर की भी नींव रखी गई थी।
जैसलमेर का किला कब बनवाया गया था?
यह किला राजस्थान के इतिहास का दूसरा सबसे पुराना किला माना जाता है। इसे भट्टी राजपूत राजा ‘राजा रावल जैसल’ ने 1156 ईस्वी में बनवाया था और उन्हीं के नाम पर इस शहर और इस किले का नाम पड़ा। कहा जाता है कि प्राचीन समय में यह किला पूरे मध्य व मध्य-पूर्व एशिया को उत्तरी अफ्रीका से जोड़ता था।
स्वर्णिम आभा के लिए जाना जाता है जैसलमेर किला
इस किले की दीवारों को बलुआ पत्थर से बनाया गया है, जो इसे दिन के उजाले सोने की चमक प्रदान करती है, यही कारण है कि इस किले को सोनार किले के नाम से जाना जाता है। भारत में तत्कालीन व्यापार मार्ग का एक प्रमुख हिस्सा होने के कारण यह किला कई व्यापारियों का घर बन गया, जिन्होंने किले के परिसर के अंदर हवेलियों, मंदिरों, दुकानों, महलों आदि का निर्माण कराया। इसके साथ ही व्यापारिक सुविधा को ध्यान में रखते हुए बाजार स्थापित करा दिए।
जैसलमेर किले का इतिहास
13वीं शाताब्दी के अंत (लगभग 1299 ईस्वी) में अलाउद्दीन खिलजी ने किले की घेराबंदी कर ली, जिससे यह किला कई वर्षों तक दिल्ली सल्तनत के अधीन रहा, लेकिन स्थानीय भाटियों ने कड़ी मशक्कत से इस पर अपना अधिकार जमा लिया। फिर 1530-52 के बीच किले पर अफगान शासक अमीर अली ने हमला किया, लेकिन जैसमेर के राजा रावल लुनाकर्ण ने युद्ध जीत लिया और अमीर अली के सैनिकों को दबे पांव वापसी करनी पड़ी।
जैसलमेर किले पर मुगलों का अधिकार
16वीं शताब्दी में इस किले पर मुगल शासक हुमायूं ने हमला बोला, जिसमें जैसलमेर को हार का सामना करना पड़ा। इस युद्ध के बाद राजा रावल लूनाकर्ण की बेटी की शादी अकबर से करा दी गई और किले का नियंत्रण मुगलों को सौंप दिया गया। इतिहास की मानें तो 1762 ईस्वी तक किले पर मुगलों का शासन रहा, जिसके तत्कालीन राजा महारावल मूलराज ने मुगलों से युद्ध कर जैसलमेर किले पर अपना अधिकार स्थापित कर लिया।
ब्रिटिश काल में जैसलमेर किला
ब्रिटिश काल के दौरान ईस्ट इंडिया कंपनी के साथ एक संधि हुई, जिसके चलते जैसलमेर किला रावल शासकों के अधीन ही रहा। ये एक ऐसा समय था, जब धीरे-धीरे यह अपना व्यापारिक अस्तित्व खोता गया और नए बंदरगाहों व समुद्री व्यापारिक मार्गों ने इसकी जगह ले ली और 20वीं शाताब्दी यह महज एक किले के रूप में ही रह गया।
जैसलमेर किला की वास्तुकला
जैसलमेर का किला एक मिश्रित वास्तुकला का बेहतरीन नमूना है, जिसमें स्थानीय, राजस्थानी और मुगल शैलियां देखने को मिलती है। इस किले में चार सुंदर नक्काशीदार प्रवेश द्वार हैं – अक्षय पोल, गणेश पोल, हवा पोल और सूरज पोल। शहर में आने वाली सूरज की पहली किरणें सूरज पोल द्वार को ही मिलती हैं। इन द्वारों पर कभी तोपों के साथ सैनिकों का पहरा होता था।
किले में गोलाकार बुर्जों और दोहरी किलेबंदी की दीवारों वाली डिजाइन बनाई गई थी, जो युद्ध के दौरान काफी मददगार साबित होता था। लड़ाई के दौरान सैनिकों की आवाजाही में आसानी हो, इसके लिए बाहरी और भीतरी किलेबंदी की दीवारों को अलग करने वाला एक रास्ता भी है। यह किला 460 मीटर लंबा और 230 मीटर चौड़ा है और जिस पहाड़ी पर किला बना हुआ है, उसकी ऊंचाई 76 मीटर है।
जैसलमेर किले के आसपास घूमने वाली जगहें
- बड़ा बाग (महारावल जैत सिंह द्वारा निर्मित)
- पटवों की हवेली
- सलीम सिंह की हवेली
- गडसीसर झील
- सैम सैंड ड्यून्स
- डेजर्ट नेशनल पार्क
- कुलधरा गांव (राजस्थान का भूतहा गांव)
जैसलमेर कैसे पहुंचें?
जैसलमेर में कोई हवाई अड्डा नहीं है। इसके लिए आपको जोधपुर हवाई अड्डा पहुंचना होगा, जो यहां से करीब 330 किमी. दूर है। वहीं, यहां का नजदीकी रेलवे स्टेशन किले से महज 2 किमी की दूरी पर स्थित है। इसके अलावा यहां सड़क मार्ग से भी आसानी से पहुंचा जा सकता है। यहां के लिए आपको राजस्थान के मुख्य शहरों से सीधी बस मिल जाएंगी।