देश में अंग्रेजी सरकार के विरुद्ध आज़ादी की लड़ाई जोर पकड़ रही थी। अलग-अलग स्थानों पर आंदोलन और प्रदर्शन हो रहे थे। इस बीच 09 अगस्त 1925 की रात चंद्रशेखर आजाद, राम प्रसाद बिस्मिल, अशफाक उल्ला खां, राजेंद्र लाहिड़ी और रौशन सिंह समेत साथी क्रांतिकारियों ने अंग्रेज़ी सरकार पर बड़ी चोट की। इन सभी क्रांतिकारियों ने लखनऊ से कुछ दूरी पर काकोरी और आलमनगर के बीच ट्रेन में ले जाए जा रहे सरकारी खजाने को लूट लिया। इस घटना ने गोरी सरकार को हिला कर रख दिया था।



लेकिन क्या आप जानते है कि काकोरी ट्रेन एक्शन से एक महिला क्रान्तिकारी का नाम भी जुड़ा है, जिसे इतिहास के पन्नों से गुम कर दिया गया। वह गुमनाम नायिका कौन थी जिसने अपनी जान की परवाह किए बिना स्वतन्त्रता सेनानियों का साथ दिया और इस रेल एक्शन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।

भारत पर दो सौ साल चलने वाले अंग्रेज़ों के शासन की शुरुआत से ही इसके विरुद्ध देश के कई भागों में स्वतंत्रता आन्दोलन होता रहा। अलग-अलग कालखंण्डों में आज़ादी के लिए हुए विद्रोहों में स्थानीय स्तर पर मातृशक्ति की भागीदारी भी रही, ऐसा ही एक विरोध था काकोरी ट्रेन एक्शन। जिसकों अंजाम देने में हिन्दुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसिएसन की महिला कॉमरेड राजकुमारी ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।

राजकुमारी का जन्म बीसवीं शताब्दी के पहले दशक में वर्ष 1902 में बांदा में हुआ था… 13 वर्ष की आयु में राजकुमारी का विवाह मदन मोहन गुप्ता से कर दी गई। उनके पति मदन गुप्ता भी स्वतंत्रता आन्दोलन में सक्रिय थे जिसके कारण राजकुमारी प्रयागराज में महात्मा गांधी और चन्द्रशेखर आजाद के सम्पर्क में आयी.. उन दिनों स्वतंत्रता संग्राम तेजी पर था। राजकुमारी भी इसमें सक्रिय योगदान दे रही थी। जैसे-जैसे राजकुमारी आंदोलनों में एक्टिव हुई उसे लगने लगा की अंग्रेज़ो के अत्याचारों से केवल अहिंसा के द्वारा आज़ादी नहीं मिल सकती। इसके बाद वह चन्द्रशेखर आज़ाद से न सिर्फ जुड़ी और संगठन के लिए गुप्त सूचनाएं और सामग्री दूसरे क्रान्तिकारियों तक पहुंचाने लगीं। बाद में वह हिन्दुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसिएशन के प्रयागराज विंग की प्रमुख कार्यकर्त्ता हो गई।


09 अगस्त वर्ष 1925 को हुए काकोरी ट्रेन एक्शन को अंजाम देनेवाले क्रांतिकारियों को रिवॉल्वर मुहैया करवाने की जिम्मेदारी भी राजकुमारी गुप्ता की थी जिसे उन्होंने बखूबी निभाया। राजकुमारी कपड़ों के अंदर हथियार छिपाकर एक जगह से दूसरी जगह पहुंचाया करती थीं।

सुरुचि थापर की किताब, ‘वीमन इन द इंडियन नैशनल मूवमेंट:अनसीन फेसेज़ एंड अनहर्ड वॉइसेज (1930-1942)’ के अनुसार एक बार जब वह हथियार पहुंचाने जा रही थीं तब इन्हें खेतों से गुज़रते हुए गिरफ़्तार कर लिया गया। वर्ष 1930, 1932 और 1942 राजकुमारी ने जेल में गुज़ारे। मातृभूमि के लिए अपने जीवन को दांव पर लगा देने वाली ऐसी गुमनाम वीरांगनाओं को शत्-शत् नमन।

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By pratik khare

पत्रकार प्रतीक खरे झक्कास खबर के संस्थापक सदस्य है। ये पिछले 8 वर्ष से पत्रकारिता के क्षेत्र में सक्रिय हैं। इन्होंने कई समाचार पत्र, पत्रिकाओं के साथ - साथ समाचार एजेंसी में भी अपनी सेवाएं दी है। सामाजिक मुद्दों को उठाना उन्हें पसंद है।

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