Magh Bihu: भारत के पूर्वोत्तर राज्य असम में रोंगाली बिहू मुख्य रूप से मनाया जाने वाला एक पारंपरिक त्योहार है। साथ ही यह पर्व असमिया नव वर्ष की शुरुआत का प्रतीक भी माना जाता है। इस पर्व को वसंत ऋतु के आने की खुशी में भी मनाया जाता है। अधिकतर आदिवासी मूल के लोगों द्वारा रोंगाली बिहू का त्योहार बड़े ही उत्साह के साथ मनाया जाता है। इस पर्व में असम की पारम्परिक संस्कृति के दर्शन भी किए जा सकते हैं।
बिहू का पर्व तीन चरणों में बंटा हुआ है। जनवरी माह के मध्य से भोगली बिहू मनाया जाता है। इसे माघ बिहू भी कहते हैं। वहीं, अप्रैल के मध्य में रोंगाली बिहू मनाया जाता है, इसे बोहाग और हित बिहू भी कहा जाता है। तीसरा होता है कोंगाली बिहू या काती बिहू, जो कार्तिक माह में मनाया जाता है। बोहाग या रोंगाली बिहू 14 अप्रैल 2024 से शुरू हो रहा है, जो 20 अप्रैल 2024 तक मनाया जाएगा।
असम संस्कृत में महत्व रखने वाला यह त्यौहार बड़ी उत्साह के साथ मनाया जाता है। इस दौरान घर की अच्छे से साफ-सफाई की जाती है और उसे सजाया जाता है। घर के मुख्य द्वार पर फूलों की मलाई लगाई जाती हैं और रंगोली बनाई जाती है। इस त्यौहार पर महिलाओं और पुरुषों द्वारा पारंपरिक पोशाक पहनी जाती हैं।
महिलाओं की पोशाक को मेखला चादोर कहा जाता है, तो वहीं इस अवसर पर पुरुष धोती-कुर्ता पहनते हैं। साथ ही इस दौरान स्थानीय व्यंजन जैसे पिठा, लारू, दोई-चीरा, आलू पिटिका, फिश करी आदि बनाकर एक-दूसरे के घर भिजवाने की भी परंपरा है। बिहू के दौरान असम संस्कृति को दर्शाने वाली झांकियां भी लगाई जाती हैं।
मान्यताएं
रोंगाली बिहू के विषय में मान्यताएं प्रचलित हैं। रोंगाली बिहू के पहले दिन मवेशियों को पानी में काली दाल और कच्ची हल्दी मिलाकर नहलाया जाता है। साथ ही इस पर्व के दौरान गायों की साफ-सफाई की जाती है और उनकी पूजा की जाती है। इस दौरान उन्हें लौकी, बैंगन आदि भी खिलाएं जाते हैं।
इस परम्परा को लेकर यह मान्यता है कि ऐसा करने से मवेशी स्वस्थ रहते हैं और परिवार में भी सुख-समृद्धि का वास बना रहता है। बिहू के इस पर्व के दौरान महिलाओं और पुरुषों ढोल नगाड़े बजाए जाते हैं और पारम्परिक बिहू नृत्य किया जाता है। माना जाता है कि इससे इंद्रदेव प्रसन्न होते हैं और वर्षा कर अच्छी फसल का वरदान देते हैं।