विनायक दामोदर सावरकर के बड़े भाई गणेश दामोदर सावरकर का जन्म 13 जून, 1879 को नासिक जिले (महाराष्ट्र) के भगूर गांव में हुआ था। जन्म से ही उनका स्वास्थ्य खराब रहा। बचपन से ही वह गहरे धार्मिक व्यक्ति थे। जब गणेश दामोदर सावरकर लगभग 13 वर्ष के थे, तब उन्होंने अपनी मां को खो दिया। वह केवल 26 वर्ष की थीं। वीडी सावरकर के बड़े भाई को बाबा राव सावरकर के नाम से भी जाना जाता है।
जीडी सावरकर को सशस्त्र विद्रोही और स्वतंत्रता संग्राम सेनानी बताया जाता है। वह अपने छोटे भाई वीडी सावरकर के साथ अंग्रेजों के खिलाफ क्रांतिकारी कार्रवाई के मामले में जेल भी गए थे। हालांकि उन्हें एक हिंदू राष्ट्रवादी आइकन के रूप में अधिक पहचाना जाता है। वीडी सावरकर की लेखनी प्रकाशित करने वाली एक वेबसाइट savarkar.org के मुताबित, जीडी सावरकर ने कई किताबें लिखी हैं। सीनियर सावरकर ने एक किताब ईसा मसीह को लेकर भी लिखी है, जिसमें उन्होंने जीसस क्राइस्ट को शिव की आराधना करने वाला हिंदू बताया है।
‘जीसस क्राइस्ट का असली नाम केशव कृष्णा’
गणेश दामोदर सावरकर ने 1946 में प्रकाशित अपनी किताब ‘क्राइस्ट परिचय’ में अजीबोगरीब दावे किए हैं। उन्होंने लिखा है, “ईसा मसीह जन्म से विश्वकर्मा ब्राह्मण थे और ईसाई धर्म हिंदू धर्म का ही एक संप्रदाय है।” किताब यह नहीं बताती कि ईसा मसीह का जन्म कहां हुआ था। लेकिन यह दावा जरूर करती है कि फिलिस्तीन और अरब क्षेत्र हिंदू भूमि हुआ करते थे।
किताब कई दावे करती है, “ईसा मसीह एक तमिल हिंदू थे। उनका असली नाम केशव कृष्णा था। तमिल उनकी मातृभाषा थी और उनका रंग सांवला था। 12 वर्ष आयु में ब्राह्मण परंपरा के अनुसार ईसा मसीह का जनेऊ संस्कार हुआ था। यह साबित करने के लिए कि ईसा मसीह हिंदू थे। वे वेदों का अध्ययन करने के लिए भारत आए और योग विशेषज्ञ बन गए। फिर सही मार्ग या धर्म का प्रचार करने के लिए अपने देश लौट गए। उपदेश देते समय ही उन्हें उनके विरोधियों ने सूली पर चढ़ा दी। लेकिन योग और आध्यात्मिक विज्ञान का अभ्यास करने वाले एसेन्स पंथ के लोगों ने उन्हें बचाया। ईसा मसीह के इलाज के लिए औषधीय जड़ी-बूटियों का इस्तेमाल किया गया था।
इसके बाद ईसा मसीह का फिलिस्तीन में उनका रहना खतरनाक हो गया। वह एक योगी के साथ भारत आया। वे एक महान व्यक्तित्व थे। भारत आने के बाद उन्होंने अपनी मृत्यु तक प्रचार करना जारी रखा। उन्होंने हिमालय में एक मठ की स्थापना की, जहां वह तीन साल तक भगवान शिव की पूजा करते रहे और शिव के दर्शन प्राप्त किए। 49 साल की उम्र तक पंथ का काम किया। जब उन्होंने अपने भौतिक शरीर को छोड़ने का फैसला किया, तब वह एक योग मुद्रा में बैठ गया और गहरी समाधि में चले गए। इस तरह उन्होंने अपना भौतिक शरीर छोड़ दिया। ईसा मसीह की समाधि कश्मीर में है।”
जीडी सावरकर ने इस किताब को लिखने कारण भी किताब में ही बता रखा है। उन्होंने लिखा है, “ईसा मसीह ने भारत के बाहर हिंदुत्व का झंडा फहराकर हमें जो कर्ज दिया है, उसे चुकाने के लिए मैंने यह काम किया है और मैं इससे संतुष्ट हूं। क्राइस्ट या केशव कृष्ण की यह साहित्यिक पूजा उनके दिव्य चरणों तक पहुंचे।”
बता दें, 26 फरवरी, 2016 को मुंबई के एक दक्षिणपंथी ट्रस्ट ने इस किताब को दोबारा मार्केट में उतारा था। ट्रस्ट का नाम ‘स्वातंत्र्यवीर सावरकर राष्ट्रीय स्मारक’ है, जो सावरकर भाइयों के साहित्य और विचारधारा को संरक्षित और प्रचारित करता है। किताब मूलरूप से मराठी में है।
जीडी सावरकर को आरएसएस के पांच संस्थापकों में से एक माना जाता है। इस तथ्य का जिक्र वरिष्ठ पत्रकार और केंद्रीय मंत्री एमजे अकबर की किताब ‘India: The Siege Within: Challenges to a Nation’s Unity’ में मिलता है। पुस्तक के पेज नंबर 306 पर अकबर लिखते हैं, “आरएसएस शुरू करने वाले पांच मित्र डॉ बीएस मुंजे, डॉ एलवी परांजपे, डॉ थोलकर, बाबाराव सावरकर और स्वयं डॉ. हेडगेवार थे।”
सावरकर बंधुओं ने साल 1904 में क्रांतिकारी समूह अभिनव भारत सोसाइटी की भी स्थापना की थी। जीडी सावरकर का निधन 16 मार्च, 1945 को हुआ था। उनके निधन के सात साल बाद वर्ष 1952 में वीडी सावरकर ने अभिनव भारत सोसाइटी को भंग कर दिया था।
हिंदू दक्षिणपंथी वेबसाइट ‘हिंदू जनजागृति’ के अनुसार , “गणेश दामोदर उन पहले लोगों में से एक थे, जिन्होंने “हिंदुस्तान एक हिंदू राष्ट्र है” की घोषणा की थी।”