अत्यंत प्राचीन नाटकीय खेल कठपुतली का इतिहास बहुत पुराना है। यह रंगमंच पर खेले जाने वाले प्राचीनतम खेलों में से एक है। आधुनिक व्यस्तता के बीच कठपुतली सहित कई प्राचीन खेल विलुप्त होने लगे हैं। इन्हें फिर से जीवंत करने के उद्देश्य से विश्व भर में हर साल 21 मार्च को विश्व कठपुतली दिवस मनाया जाता है। यही हमारा सार्थक योगदान होगा।
इतिहास
कठपुतली का इतिहास बहुत ही पुराना है। यह रंगमंच पर खेले जाने वाले प्राचीनतम खेलों में से एक है। सर्वप्रथम इस दिवस को मनाने का विचार ईरान के कठपुतली प्रस्तोता जावेद जोलपाघरी के मन में आया था। वर्ष 2000 में माग्डेबुर्ग में 18वीं Union Internationale de la Marionnette, (UNIMA) सम्मेलन के दौरान यह प्रस्ताव विचार के हेतु रखा गया। इसके 2 वर्षों पश्चात इसे वर्ष 2002 के जून माह में अटलांटा में काउंसिल द्वारा सहर्ष स्वीकार कर लिया गया। इसके बाद 21 मार्च 2003 को पहला विश्व कठपुतली दिवस मनाया गया।
कठपुतली दिवस मनाने का उद्देश्य
कठपुतली दिवस का मुख्य उदेश्य कठपुतली कला को बढ़ावा देना। साथ कठपुतली कला के नवीकरण के साथ-साथ कठपुतली की परंपराओं को बनाए रखना और उनकी रक्षा करना है। कठपुतलियों के जरिए सामाजिक मुद्दों को रोचक तरीके से उठाया जा रहा। कठपुतलियां सुशिक्षित और स्वस्थ समाज का भी बुलंद संदेश दे रहीं। इतिहास में दर्ज नामों की प्रेरक कहानियों को कठपुतलियों के जरिए लोगो तक पहुंचाने के भी प्रयास हो रहे हैं।
कठपुतली क्या है?
कठपुतली लकड़ी की या पेरिस ऑफ प्लास्टर की या कागज की लुगदी की बनी होती है। कठपुतली के शरीर के भाग इस प्रकार जुड़े होते हैं की उन से बंधी डोर खींचने पर अलग-अलग खेल सकें। लकड़ी के छोटे-छोटे टुकड़ों से बनी कठपुतलियों को रंगीन चटखदार गोटे, कांच, घुंघरू, चमकदार रेशमी कपड़े से तैयार किया जाता था। सजी-धजी इन कठपुतलियों के पात्र सभी का मन मोह लेते थे। बनावट के साथ-साथ इन कठपुतलियों का खेल प्रदर्शन मंत्रमुग्ध करने वाला होता था।