गुरुर्ब्रह्मा, गुरुर्विष्णु, गुरुर्देवो महेश्वरः।
गुरुर्साक्षात् परमब्रह्म, तस्मै श्री गुरुवैनमः॥
अर्थात शिष्य के लिए गुरु ही ब्रह्मदेव हैं, गुरु ही विष्णु हैं, गुरु ही भगवान शंकर हैं। गुरु प्रत्यक्ष परब्रह्म हैं। इसलिए ऐसे गुरु को प्रणाम। इस श्लोक में ‘गुरु के महात्म को बताया गया है। अर्थात गुरु को भगवान के समान माना जाता है, क्योंकि वह हमें इस संसार में जीने के तरीके और अंधकार से प्रकाश तक ले जाना का मार्ग दिखाते हैं। इसलिए गुरु का स्थान बहुत महत्वपूर्ण होता है।
आज, 3 जुलाई को देश भर में गुरु पूर्णिमा मनाई जा रही है। आषाढ़ की पूर्णिमा तिथि को गुरु पूर्णिमा कहा जाता है। इस दिन महर्षि वेद व्यास का जन्म हुआ था इसलिए इसे व्यास पूर्णिमा भी कहा जाता है। इस दिन शिष्य अपने गुरु की विशेष पूजा करता है। शिष्य इस दिन अपनी सारे अवगुणों को गुरु को अर्पित कर देता है और अपना सारा भार गुरु को दे देता है।
गुरु पूर्णिमा शुभ मुहूर्त
गुरु पूर्णिमा की तिथि- 03 जुलाई 2023, आज
गुरु पूर्णिमा प्रारंभ- 02 जुलाई, रात 08 बजकर 21 मिनट से
गुरु पूर्णिमा समापन – 03 जुलाई, शाम 05 बजकर 08 मिनट तक
गुरु पूर्णिमा पूजन विधि
गुरु पूर्णिमा के दिन सुबह जल्दी उठें। नहाने के बाद साफ वस्त्र धारण करें। अपने घर के पूजा स्थान पर गुरु व्यास की प्रतिमा उस पर स्थापित करें और उन्हें पुष्प, फल और प्रसाद अर्पित करें। गुरु व्यास के साथ-साथ शुक्रदेव और शंकराचार्य आदि गुरुओं का भी आवाहन करें।”गुरुपरंपरासिद्धयर्थं व्यासपूजां करिष्ये” मंत्र का जाप करें। इसके बाद अपने गुरु के घर जाएं, वहां श्रृद्धा भाव से गुरु का आशीर्वाद लें।
गुरु पूर्णिमा महत्व
आषाढ़ माह के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा तिथि को गुरु पूर्णिमा के रूप में मनाया जाता है. ये पर्व गुरुओं के सम्मान में समर्पित है. इस दिन शिष्य अपने गुरु देव की पूजा कर उनका आशीर्वाद लेते हैं। हमारे सनातन धर्म में गुरु का स्थान भगवान से भी ऊंचा माना गया है, क्योंकि गुरु की आंखों मे आंखे डालकर भगवान के दर्शन किए जा सकते हैं। गुरु के बिना ब्रह्मज्ञान और मोक्ष की प्राप्ति नहीं होती है। गुरु अपने ज्ञान से शिष्य को सही मार्ग पर ले जाते हैं और भगवान का साक्षात्कार करवाते हैं।
महर्षि वेदव्यास की पूजा
मान्यता है कि गुरु पूर्णिमा के ही दिन महर्षि वेदव्यास जी का जन्म हुआ था। सनातन धर्म में महर्षि वेदव्यास को प्रथम गुरु का दर्जा प्राप्त है, क्योंकि सबसे पहले वेदों की शिक्षा उन्होंने ही दी थी। इसके अलावा महर्षि वेदव्यास को श्रीमद्भागवत, महाभारत, ब्रह्मसूत्र, मीमांसा के अलावा 18 पुराणों का रचियता माना जाता है। यही वजह है कि महर्षि वेदव्यास को आदि गुरु का दर्जा प्राप्त है। गुरु पूर्णिमा के दिन विशेष तौर पर महर्षि वेदव्यास की पूजा होती है।
गुरु की महिमा
गुरु की महिमा अपार है। उसे शब्दों में बयां नहीं किया जा सकता। वेद, पुराण, उपनिषद, सन्त, कवि, मुनि आदि सब गुरु की अपार महिमा का बखान करते हैं। शास्त्रों में ‘गु’ का अर्थ ‘अंधकार या मूल अज्ञान’ और ‘रु’ का अर्थ ‘उसका निरोधक’ बताया गया है। इसका अर्थ ‘अंधकार से प्रकाश की ओर ले जाने वाला’ अर्थात अज्ञान को मिटाकर ज्ञान का मार्ग दिखाने वाला ‘गुरु’ होता है।
सन्त कबीर दास गुरु की महिमा का वर्णन करते हुए कहते हैं:-
गुरु गोबिंद दोऊ खड़े, का के लागूं पाय।
बलिहारी गुरु आपणे, गोबिंद दियो मिलाय।।
अर्थात, गुरु और गोविन्द (भगवान) एक साथ खड़े हों तो किसे प्रणाम करना चाहिए, गुरु को अथवा गोबिन्द को? ऐसी स्थिति में गुरु के श्रीचरणों में शीश झुकाना उत्तम है, जिनकी कृपा रूपी प्रसाद से गोविन्द का दर्शन करने का सौभाग्य प्राप्त हुआ।
तुलसीदास जी गुरु को मनुष्य रूप में नारायण यानी भगवान ही मानते हैं। वे रामचरितमानस में लिखते हैं:
बंदउं गुरु पद कंज कृपा सिंधु नररूप हरि।
महामोह तम पुंज जासु बचन रबिकर निकर।।
अर्थात् गुरु मनुष्य रूप में नारायण ही हैं। मैं उनके चरण कमलों की वन्दना करता हूं। जैसे सूर्य के निकलने पर अन्धेरा नष्ट हो जाता है, वैसे ही उनके वचनों से मोहरूपी अन्धकार का नाश हो जाता है।