मंदिर सत्यम-शिवम-सुंदरम की प्रेरणा देते हैं: डॉ. भागवत

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक डॉ. मोहन भागवत ने कहा कि मंदिर हमारी परंपरा का अभिन्न अंग हैं। पूरे समाज को एक लक्ष्य लेकर चलाने के लिए मठ-मंदिर चाहिए। कभी हम गिरे, कभी दूसरों ने धक्का मारा, लेकिन हमारे मूल्य नहीं गिरे। हमारे जीवन का लक्ष्य एक ही है, हमारा कर्म और धर्म। यह लोक भी ठीक करेगा और परलोक भी।  

उन्होंने कहा कि मंदिर सत्यम-शिवम-सुंदरम की प्रेरणा देते हैं। मंदिर की कारीगरी हमारी पद्धति को दिखाते हैं। अपने यहां कुछ मंदिर सरकार और कुछ समाज के हाथ में हैं। काशी विश्वनाथ का स्वरूप बदला, ये भक्ति की शक्ति है। परिवर्तन करने वाले लोग भक्त हैं और इसके लिए भाव चाहिए। मंदिर कैसे चलाए जाएं, इस पर हमें चिंता करनी चाहिए। मंदिर को चलाने वाले भक्त होने चाहिए। इसलिए मंदिरों के द्वारा समाज में भक्ति और शक्ति दोनों की आपूर्ति करने का काम सब मंदिर करें, यह समय की आश्यकता है। डॉ. भागवत ने कहा कि मंदिर पवित्रता के आधार हैं। स्वच्छता का ध्यान रखना चाहिए। गुरुद्वारा जाना है तो पानी में होकर जाना होता है। लेकिन, ऐसा सभी मंदिरों में नहीं है। ऐसी ही स्वच्छता का ध्यान रखना है, ये सब मंदिरों में होना चाहिए। 

सरसंघचालक डॉ. मोहन भागवत वाराणसी में आयोजित International Temples Convention and Expo 2023 के उद्घाटन सत्र में संबोधित कर रहे थे। रुद्राक्ष कन्वेंशन सेंटर में महासम्मेलन का शुभारंभ हुआ। 

मोहन भागवत ने कहा कि समाज में धर्म चक्र परिवर्तन के आधार पर सृष्टि चलती है। शरीर, मन और बुद्धि को पवित्र करके ही आराधना होती है। मंदिर हमारी प्रगति का सामाजिक उपकरण हैं। मंदिर में आराधना के समय आराध्य का पूर्ण स्वरूप होना चाहिए। शिव के मंदिर में भस्म और विष्णु के मंदिर में चंदन मिलता है। यह उनकी ओर से समाज को प्रेरणा है। मंदिर केवल पूजा नहीं मोक्ष और चित्त सिद्धि का स्थल है। सत्य को प्राप्त करना, अपना आनंद सबका आनंद हो, इसके लिए धर्म ही समाज को तैयार करता है।

उन्होंने कहा कि मंदिर में शिक्षा मिले, संस्कार मिले, सेवा भाव हो और प्रेरणा मिले। मंदिर में लोगों के दुःख दूर करने की व्यवस्था हो। सभी समाज की चिंता करने वाला मंदिर होना चाहिए। देश के सभी मंदिर का एकत्रीकरण समाज को जोड़ेगा, ऊपर उठाएगा, राष्ट्र को समृद्ध बनाएगा। मंदिर भक्तों के आधार पर चलते हैं। पहले मंदिर में गुरुकुल चलते थे। कथा प्रवचन और पुराण से नई पीढ़ी शिक्षित होती थी। संस्कार होता है कि मनुष्य को जहां धन, वैभव आदि मिलता है, वह वहां आता है। 

सरसंघचालक ने कहा कि समाज प्रकृति और परंपरागत राजा पर निर्भर नहीं है। राजा का काम संचालन है। राजा अपना काम ठीक से करें, यह समाज को देखना पड़ता है। प्रजातंत्र में यह पद्धति है कि हम जिस प्रतिनिधि को चुनते हैं, वह देश चलाते हैं। हम उनको चुनकर सो नहीं जाते हैं। हम देखते रहते हैं कि वह क्या करते हैं, क्या नहीं करते। अच्छा करते हैं तो उसका फल मिलता है और बुरा करते हैं तो उसका फल चुनाव में मिलता है।

उन्होंने कहा कि हमें गली के छोटे-छोटे मंदिरों की भी सूची बनानी चाहिए। वहां रोज पूजा हो, सफाई रखी जाए। मिलकर सभी आयोजन करें। संगठित बल साधनों से संपूर्ण करें। मंदिर अपना-उनका छोड़कर एक साथ आगे आएं। जिसको धर्म का पालन करना है वो धर्म के लिए सजग रहेगा। निष्ठा और श्रद्धा को जागृत करना है। भारत के छोटे से छोटे मंदिर को समृद्ध व सशक्त बनाना है। मंदिर को नई पीढ़ी को संभालना है तो उन्हें प्रशिक्षण देना होगा। अपने साधन और संसाधन को एक करके अपनी कला और कारीगरी को सशक्त करें। समाज के कारीगर को प्रोत्साहन मिले तो वह अपने को मजबूत करेगा। 

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