-प्रतीक खरे
Raksha Bandhan: रक्षा बंधन का पर्व प्रेम, विश्वास, त्याग और बलिदान का पर्व है…. वर्तमान समय में रक्षा बंधन पर्व हिन्दू परिवारों में बहनों द्वारा भाइयों को रक्षा सूत्र बांधने के पर्व के रूप में प्रचलित है। लेकिन प्राचीन काल में इसका स्वरूप केवल भाई बहन के पर्व के रूप तक सीमित नहीं था।
पुरातन भारतीय परंपरा में समाज का मार्गदर्शक गुरु होते थे, वे सम्पूर्ण समाज को रक्षा सूत्र बांधकर राष्ट्र की सनातन ज्ञान परंपरा के संरक्षण और संवर्धन का संकल्प कराते थे। ठीक इसी तरह सांस्कृतिक और धार्मिक पुरोहित वर्ग भी रक्षा सूत्र के माध्यम से समाज से संस्कृति और धर्म की रक्षा का संकल्प कराते थे।
राजव्यवस्था के अन्दर राजपुरोहित राजा को रक्षा सूत्र बाँध कर धर्म और सत्य की रक्षा के साथ-साथ संपूर्ण प्रजा की रक्षा का संकल्प कराते थे। यहीं कारण है कि आज भी किसी भी धार्मिक और सांस्कृतिक अनुष्ठान के बाद रक्षासूत्र के माध्यम से उपस्थित सभी जनों को धर्म रक्षा और कर्तव्य निर्वहन का संकल्प कराया जाता है।
रक्षाबंधन का मौलिक भाव यहीं है कि समाज का शक्ति सम्पन्न वर्ग अपनी शक्ति सामर्थ्य के बोध और दायित्व को ध्यान में रखकर समाज के श्रेष्ठ मूल्यों की रक्षा और उनको नई पीढ़ी को हस्तांतरित करने का संकल्प लेता है।
रक्षाबंधन आपसी विश्वास का पर्व है इस पर्व पर सक्षम एवम समर्थ जन समाज के निर्बल समझे जाने वाले बंधुओं को विश्वास दिलाता हैं कि वे निर्भय रहें, किसी भी संकट में सक्षम और समर्थ बन्धु बांधव उनके साथ खड़े रहेंगे।
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के स्वयंसेवक भी भगवा ध्वज को रक्षा सूत्र बांधकर राष्ट्र की धर्म संस्कृति की रक्षा का व्रत धारण करते हैं। यह उनके द्वारा धारण किया गया वह वीरव्रत है जो उन्हें सदैव राष्ट्र, धर्म और संस्कृति की रक्षा के लिए संकल्पित करता है, कभी भी अपने संकल्प से डिगने नहीं देता है।
जहां वे भगवा ध्वज को अर्थात राष्ट्र, धर्म-संस्कृति को संरक्षित करने का संकल्प लेते हैं वहीं यह व्रत भी धारण करते हैं कि भगवा ध्वज के द्वारा प्रदर्शित जीवन मूल्यों को धारण करते हुए राष्ट्र सर्वप्रथम की भावना से अपनी जीवन ऊर्जा लगायेंगे। वर्तमान समय में पर्यावरण प्रेमी भी पर्यावरण के प्रति लोगों को जागरूक करने और रक्षा करने के लिए पेड़ पौधों को रक्षा सूत्र बांधकर उनकी रक्षा का संकल्प लेते है।
परिवर्तन जीवन का नियम है, नए युग में आज की आवश्यकताओं के अनुरूप आधुनिक युवा अपनी पुरातन विरासतों और धरोहरों की रक्षा करने का संकल्प लेते हैं, आसपास स्थित स्वतंत्रता सेनानियों के स्मारक, पौराणिक व ऐतिहासिक महत्व के स्थानों पर जाकर, अपने ग्राम देहात के सांस्कृतिक महत्व के स्थल आदि पर जाकर किसी मानक वस्तु पर रक्षा सूत्र बांधकर अपनी विरासत और धरोहर को सहेजने, उसके संरक्षण करने का संकल्प लेते अनेक युवा आपको दिख जायेंगे।
आजादी के अमृत महोत्सव की इस शुभ वेला में राष्ट्र सांस्कृतिक नवजागरण के दौर से गुजर रहा है उसमें हम सभी युवाओं के लिए संस्कृति वीर बनना अत्यंत आवश्यक है। आधुनिक जीवन को पुरातन मूल्यों से पोषित कर अपनी भारतीय विरासत को सहेजने का संकल्प हम आज इस रक्षा बंधन के पावन पर्व पर लेते हैं।