-प्रतीक खरे
आतंकवादियों, देशद्रोहियों, भ्रष्टाचारियों, अधर्मियों और समाजघातकों को समाप्त करने के उद्देश्य से धराधाम पर अवतरित हुए योगेश्वर श्रीकृष्ण, जन्म से लेकर अन्त तक अपने निर्धारित उद्देश्य के लिए सक्रिय रहे। वे एक आदर्श क्रांतिकारी थे।
भगवान कृष्ण के जीवन की समस्त लीलाएं प्रत्येक मानव के लिए प्रेरणा देने वाले अद्भुत प्रसंगों का जीवंत दर्शन हैं। इस संदर्भ में देखें तो श्रीकृष्ण का सम्पूर्ण जीवन ही कर्म क्षेत्र में उतरकर समाज एवं राष्ट्र के उत्थान के लिए निरंतर संघर्षरत रहने का अतुलनीय उदाहरण है। भगवान श्रीकृष्ण का जन्म भाद्रपद मास के कृष्ण पक्ष में अष्टमी तिथि को रोहिणी नक्षत्र के दिन रात्रि 12 बजे कंस के कारावास में हुआ था।
कारावास की कोठरी से ही भगवान कृष्ण की जीवनयात्रा प्रारम्भ होती है। जेल से निकलकर उन्होंने आतंकवाद और अधर्म के साथ युद्ध करने का बिगुल फूंका। सबसे पहले वह नंदग्राम पहुंचे, जिसके समाचार से अत्याचारी शासक कंस सहित राक्षसी प्रवृत्ति के उसके साथी भय से कांप उठे।
नंदग्राम में माता यशोदा की गोद में खेल कर और बाल सखाओं के साथ कृष्ण ने जो साहसिक लीलाएं कीं, उनसे समाज-सेवा, सामाजिक समरसता, धर्म-रक्षण, नारी सशक्तिकरण और संगठन में शक्ति का दर्शन शास्त्र समाया हुआ है।
बाल सखाओं का संगठन बनाकर मक्खन की मटकियां फोड़ना, अत्याचारी शासक कंस द्वारा पोषित पूंजीवादी व्यवस्था के विरोध में प्रजा के बालवर्ग के साहस और संगठनात्मक योग्यता का उदाहरण है। किसानों, श्रमिकों के द्वारा परिश्रमपूर्वक अर्जित किया गया धन जो उस समय मक्खन के मटके के रूप में कंस जैसे तानाशाहों के घरों तक पहुँचाया जाता था तब कृष्ण की बाल सेना ने इस धन को रोक कर ग्रामवासियों में वितरित करने की प्रथा को जन्म दिया।
इसलिए तो किसानों की पत्नियों, माताओं-बहनों ने कृष्ण के इस कार्य को सदैव प्रेमपूर्वक स्वीकृति दी। बाल कृष्ण को ग्रामवासियों ने ‘माखनचोर’ कहकर अपना स्नेहिल आशीर्वाद भी दिया। पूरे क्षेत्र में जब मूसलाधार वर्षा एक संकट लेकर आयीं तब कृष्ण ने अपनी हथेली पर गोवर्धन पर्वत को उठाकर सबको इसके नीचे शरण दी। प्रतीकात्मक रूप में तब श्री कृष्ण प्रकृति के प्रकोप से बचने हेतु गोवर्धन पर्वत अर्थात प्रकृति की शरण में ही जाने का सन्देश देते हैं।
श्रीकृष्ण की बांसुरी की धुन से समाज के सभी वर्ग मंत्रमुग्ध होकर एक सूत्र में बंध जाने की प्रेरणा लेते थे। जिस प्रकार आज हम देखते हैं कि सेना में सैनिकों के प्रशिक्षण, अनुशासन, संचलन इत्यादि में ‘बैंड’ को सुनकर हम एक साथ देश प्रेम के भाव में झूमने लगते हैं।
जब भगवान श्री कृष्ण को लगा की समाज और धर्म की रक्षा के आगे आना है तो उन्होंने बांसुरी के बाद सुदर्शन चक्र उठा लिया। महाभारत का युद्ध का केंद्र हैं श्री कृष्ण, इस युद्ध में वह मित्र, भाई, सारथी, शांतिदूत, उपदेशक, राजनीतिज्ञ, कूटनीतिज्ञ के साथ-साथ धर्म रक्षक की भूमिकाओं में सक्रिय दिखाई देते हैं।
महाभारत युद्ध क्षेत्र में भी श्रीकृष्ण ने आदर्श राजनीति-कूटनीति का परिचय दिया। धर्म और अधर्म के मध्य होने जा रहे युद्ध से पहले अर्जुन को गीता के उपदेश के माध्यम से सारे संसार को कर्मयोग का उपदेश देना उनके ईश्वरी अवतार का सबसे महत्वपूर्ण कार्य था। भारत की सनातन संस्कृति के आलम्बन योगेश्वर श्री कृष्ण को कोटि-कोटि नमन है।
(श्रीकृष्ण जन्माष्टमी विशेष)

One thought on “‘भारत की सनातन संस्कृति के आलम्बन योगेश्वर श्रीकृष्ण’”

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Verified by MonsterInsights