भारतीय संस्कृति सनातन काल से ही समृद्ध विकसित और व्यवस्थित संस्कृति रही है। जहाँ पुरुष हो या फिर महिला सभी को समान अधिकार थे… मनुस्मृति में कहा गया है कि :-
यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवताः । (मनुस्मृति अध्याय 3 श्लोक 56 )
अर्थात… जहां नारियों की पूजा होती है, वहां देवता निवास करते हैं।
सम्पूर्ण विश्व में नारियों के प्रति ऐसा भाव का यह एकमात्र उदाहरण है जो दर्शाता है कि हज़ारों वर्ष पहले हमारी वैदिक सभ्यता में नारी का क्या स्थान था। नारी न सिर्फ वेद पढ़ती थीं बल्कि पढ़ाती भी थीं। वेदों में अनेक नारी ऋषियों का उल्लेख मिलता है। भारत की प्राचीन नारियां शस्त्र और शास्त्र दोनों कलाओं एवं प्रशासनिक कार्यों में भी पारंगत थीं जिसके शास्त्रों में कई उदाहरण मिलते हैं…

लेकिन जब बाहरी आक्रांताओं ने भारत पर कुदृष्टि डाली तब भारत की अस्मिता की रक्षा के लिए हजारों वीरों ने अपना बलिदान देकर भारतीय संस्कृति की रक्षा की। उस कालखण्ड का ही प्रभाव था कि नारियों को घर से बाहर निकलने पर पाबंदी लगा दी गई..क्योंकि वह बाहर सुरक्षित नहीं थी। इसका सीधा प्रभाव उनकी शिक्षा पर भी पड़ा। जिसके कारण समाज में कम आयु में विवाह, पर्दा प्रथा जैसी कुरीतियाँ आ गई थी।
इसके बाद 18वीं शताब्दी में जब भारत में अंग्रेजों के विरुद्ध राष्ट्रवाद का उदय होना प्रारम्भ हुआ तो भारत का बौद्धिक वर्ग अपने-अपने स्तर पर राष्ट्र उत्थान के लिए समर्पित भाव से कार्य करने लगा…
उस समय भारत में स्त्री शिक्षा की अलख जगाने वाली एक महान नारी का उदय हुआ… जो थी क्रांतिज्योति सावित्रीबाई फुले। जिन्होंने पराधीनताकाल में जड़ें जमा चुकी सामाजिक कुरीतियों के विरुद्ध जागरण करते हुए भारत के नारी बोध को फिर से जगाया और नारियों को विशिष्ट स्थान देने वाली अपने महान पूर्वजों की परम्परा को पुनर्प्रतिष्ठित किया।
1848 को पुणे में केवल नौ छात्राओं के साथ उन्होंने पहला बालिका विद्यालय प्रारम्भ किया और स्वयं सावित्रीबाई इसकी प्रथम महिला शिक्षिका बनी। क्रान्तिज्योति सावित्रीबाई फुले ने तत्कालीन समाज में नारी सशक्तिकरण का जो स्वप्न देखा आज के भारत में वह स्वप्न साकार रूप लेता दिखाई दे रहा है। प्रधानमन्त्री नरेंद्र मोदी के कुशल नेतृत्व में पीएम विश्वकर्मा योजना, प्रधानमंत्री आवास योजना, जनधन योजना, प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि योजना, प्रधानमंत्री गरीब कल्याण अन्न योजना, उज्ज्वला योजना, आयुष्मान भारत योजना, प्रधानमंत्री जीवन ज्योति बीमा योजना, प्रधानमंत्री सुरक्षा बीमा योजना, अटल पेंशन योजना जैसी अनेक योजनाएं समाज को सशक्त और आत्मनिर्भर करने में अहम भूमिका निभा रही है…
मातृशक्ति को सशक्त और आत्मनिर्भर बनाने के लिए सरकार ने सुकन्या समृद्धि योजना, नई रोशनी योजना, बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ योजना, उज्ज्वला योजना शुरु की… और मातृत्व विधेयक भी पास किया है…इन योजनाओं से नारी सशक्तिकरण की दिशा में एक बड़ा परिवर्तन देखने को मिल रहा है। स्टैंड-अप इंडिया, कौशल विकास योजना, ई-हाट मंच के माध्यम से नारियां स्वावलंबी बन रही हैं। आजादी के 70 वर्ष के बाद देश की सभी लोकसभा और विधानसभाओं में नारीशक्ति के लिए 33 प्रतिशत सीटें आरक्षित करने वाला नारी शक्ति वंदन विधेयक 2023 पास हुआ, जो भारतीय नारी को लोकतान्त्रिक प्रणाली और वैश्विक समाज में प्रतिष्ठित करने वाला है।
सरकार के प्रयास से पिछले नौ वर्षों में सात करोड़ से भी अधिक महिलाएं स्व-सहायता समूहों में सम्मिलित होकर देश के विकास में सहयोग दे रही हैं..
लेकिन बहुत ही कम लोग जानते होंगे की भारत का पहला महिला संगठन तथा स्व-सहायता समूह बनाने का श्रेय भी सवित्रीबाई फूले को जाता है… उन्होंने भारत की बेटियों और माताओं को शिक्षित और आत्मनिर्भर बनाने के लिए अनेक प्रयास किए थे जिससे पुण्यभूमि भारत की नारियां आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर होकर अपने परिवार, समाज और राष्ट्र के निर्माण में अपनी भूमिका निभा सकें। वर्तमान भारत कुशल राजनैतिक नेतृत्व में सावित्री बाई फुले के महिला सशक्तिकरण को साकार रूप दे रहा है, यही क्रान्तिज्योति सावित्रीबाई फुले को सच्ची श्रद्धांजलि है।