दुनिया रहस्यों से भरी है, जिसकी गुत्थी सुलझा पाना किसी के बस की बात नहीं। कुछ ऐसा ही राजस्थान का कुलधरा गांव, जिसे भारत का सबसे डरावना गांव भी कहा जाता है। लेकिन सवाल है.. आखिर क्यूं? इस सवाल का सटिक जवाब तो नहीं है लेकिन हां आसपास के लोगों द्वारा कही गई कुछ किवदंतियां है। 13वीं शाताब्दी में बसा ये गांव आज एकदम बंजर सा हो गया है।

करीब 700 साल से पुराने इस गांव अब किसी के आने की हिम्मत नहीं होती और शाम के समय इसके लिए एक सीधी बात कही जाती है “यहां आना मना है”..। कहा जाता है कि इस गांव को पालीवाल ब्राह्मण समाज ने बसाया था, जिसके श्राप से ही आज ये गांव श्रापित हो गया है और 200 सालों से ये गांव वीरान पड़ा हुआ है। अब जरा दिमाग में कल्पना करिए कि ये वीरान मंजर हो और आप अकेले इस स्थान पर हो तो हार्ट अटैक होना तो तय है।


एएसआई के अंतर्गत आता है कुलधरा
लेकिन ऐसा भी नहीं है कि यहां जाने की परमिशन नहीं है। वर्तमान समय में यह स्थान भारतीय पुरातत्व विभाग के अंतर्गत आता है, जिसके परमिशन से यहां सुबह से शाम तक पर्यटक जा सकते हैं। लेकिन शाम के बाद जाना सख्त मना है। इतने सालों बाद आज भी यहां कोई बस नहीं पाया। कहा जाता है कि इस गांव में कोई रात नहीं रूक पाता है। यह गांव जैसलमेर शहर से करीब 20 किमी की दूरी पर स्थित है।

कुलधरा के वीरान होने के पीछे की कहानी
किवदंती के अनुसार, जैसलमेर राज्य के मंत्री सलीम सिंह से इस कहानी की शुरुआत होती है। कहा जाता है कि पालीवाल ब्राह्मण समाज की एक लड़की सलीम सिंह को पसंद आ गई थी, जिसको पाने के लिए उसने तमाम कोशिशें की और अंत में उसने ग्रामीणों को चेतावनी भी दे डाली। लेकिन गांव के ऐसा बिल्कुल नहीं करना चाहते थे। जिसने भी इस बात का विरोध किया तो उसने उससे अधिक कर वसूली की।

फिर एक शाम ऐसी आई, जिसके बाद हंसता खेलता गांव कुलधरा हमेशा के लिए वीरान हो गया। जी हां, एक शाम गांव के सभी लोगों ने इस निश्चय किया कि वे अपनी बेटी व गांव की सुरक्षा के लिए गांव छोड़कर हमेशा के लिए चले जाएंगे और सभी चले गए लेकिन कहां… ये आज तक किसी को नहीं मालूम..। लेकिन जाते-जाते ब्राह्मण समाज कुलधरा गांव को हमेशा के लिए वीरान रहने का श्राप दे गए।

पर्यटन स्थल के रूप में विकसित कुलधरा
एएसआई द्वारा संरक्षित यह गांव वर्तमान में एक पर्यटन स्थल के रूप में उभरा है। गांव की प्राचीनतम घर, दरवाजे, खिड़कियों को आज भी देखा जा सकता है लेकिन अब ये खंडहर हो चुके हैं। यहां एक देवी मंदिर भी है और वो भी इस खंडहर का हिस्सा बन चुका है। इस मंदिर के अंदर एक शिलालेख है, जिसके माध्यम से एएसआई ग्रामीणों के बारे में जानकारी जुटाने में लगी है।

कुलधरा गांव में घूमने का सही समय – सुबह 08:00 बजे से लेकर शाम 06:00 बजे तक (अक्टूबर से मार्च के बीच)। कुलधरा गांव में घूमने के लिए प्रवेश शुल्क – 10 रुपया प्रति व्यक्ति व गाड़ी साथ ले जाने पर 50 रुपया प्रति व्यक्ति।

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By pratik khare

पत्रकार प्रतीक खरे झक्कास खबर के संस्थापक सदस्य है। ये पिछले 8 वर्ष से पत्रकारिता के क्षेत्र में सक्रिय हैं। इन्होंने कई समाचार पत्र, पत्रिकाओं के साथ - साथ समाचार एजेंसी में भी अपनी सेवाएं दी है। सामाजिक मुद्दों को उठाना उन्हें पसंद है।

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