देहरादून। उम्र बढ़ने के साथ-साथ शरीर में कई बदलाव आने लगते हैं, और इसका प्रभाव आंखों पर भी प्रभाव पड़ता है। जिस कारण हमारी दृष्टि धुंधली हो जाती है, यही मोतियाबिंद का कारण बनता है। उत्तराखंड की राजधानी देहरादून के दून मेडिकल कॉलेज अस्पताल के नेत्र विभाग के एचओडी डॉ यूसुफ रिजवी ने जानकारी देते हुए कहा कि हमारे देश में यह देखा जाता है कि हर तीसरे व्यक्ति को मोतियाबिंद की शिकायत होती है। दुनिया में सबसे ज्यादा ऑपरेशन भी मोतियाबिंद के ही होते हैं। आमतौर पर हमारा नेचुरल लेंस पारदर्शी होता है लेकिन उम्र के कारण उसके भीतर मटमैलापन आ जाता है, जिसके चलते दृष्टि धुंधली हो जाती है। ऐसे में कोई दवा ऐसी नहीं बनी है, जो उस लेंस को दोबारा साफ कर सके, तो इसका इलाज सिर्फ सर्जरी होता है।



उन्होंने आगे कहा कि उम्र बढ़ने के साथ कई कारणों से इंसान की आंखों की रोशनी कम होने लगती है या दिक्कतें होने लगती हैं, इसलिए जानना जरूरी है कि आंखों की रोशनी या प्रभाव मोतियाबिंद की वजह से है या नहीं। उम्र बढ़ने के साथ-साथ काला मोतिया या ग्लूकोमा भी हो सकता है लेकिन उसकी संभावना सिर्फ 5 फीसदी ही होती है जबकि 95 फीसदी संभावना मोतियाबिंद होने की होती है।

मोतियाबिंद के लक्षण
डॉ यूसुफ रिजवी बताते हैं कि मोतियाबिंद होने के कई लक्षण हैं। सबसे पहला यह कि उस व्यक्ति को धुंधला नजर आता है, कभी-कभी व्यक्ति को दो या तीन प्रतिबिंब नजर आते हैं। जब इंसान चांद को रात में देखता है, तो उसे 2 या 3 चांद नजर आते हैं। कई लोगों को रात में लाइट देखने पर उसके आसपास रंगीन गोले नजर आते हैं। अगर इस तरह का कोई भी लक्षण 40 -50 वर्ष की उम्र के बाद नजर आए, तो तुरंत चिकित्सक से परामर्श लीजिए और इलाज करवाइए। दून अस्पताल में आयुष्मान के अंतर्गत मुफ्त मोतियाबिंद का ऑपरेशन करवाया जाता है। प्रति दिन 5 से 10 ऑपरेशन किये जाते हैं। ऑपरेशन के बाद कुछ ही हफ्ते में मरीज ठीक भी हो जाते हैं।

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By pratik khare

पत्रकार प्रतीक खरे झक्कास खबर के संस्थापक सदस्य है। ये पिछले 8 वर्ष से पत्रकारिता के क्षेत्र में सक्रिय हैं। इन्होंने कई समाचार पत्र, पत्रिकाओं के साथ - साथ समाचार एजेंसी में भी अपनी सेवाएं दी है। सामाजिक मुद्दों को उठाना उन्हें पसंद है।

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