चैत्र प्रतिपदा अर्थात चैत्र माह के शुक्ल पक्ष की पहली तिथि, यह हम सभी भारतीयों का नववर्ष है। हजारों वर्ष प्राचीन भारतीय संस्कृति का नववर्ष। हिन्दू शास्त्रों के अनुसार यह सृष्टि के आरंभ का दिन भी है। क्योंकि इसी दिन ब्रह्माजी ने सृष्टि की रचना की थी। सम्पूर्ण भारत में इस दिन को अलग-अलग नाम से जाना जाता है।
उद्हारण के तौर पर मराठी समुदाय चैत्र प्रतिपदा को गुड़ी पड़वा के नाम से मनाता है तो सिंधी समुदाय चेटीचंड के नाम से इसे मनाता है। कोंकण क्षेत्र में इसे सम्वत्सर पड़वो के रूप में मनाया जाता है। कश्मीर में इस नववर्ष को नवरेह कहा जाता है। पारसी समुदाय इसे नवरोज कहता है। पंजाब में वैशाखी, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना और कर्नाटक में ‘उगादि’ तथा मणिपुर में यह दिन सजिबु नोंगमा पानबा के नाम से मनाया जाता है। वहीँ यह पर्व केरल में ‘विशु’, असम में ‘रोंगली बिहू’ के रूप में मनाया जाता है। इस तिथि को ‘नवसंवत्सर‘ भी कहते हैं क्योंकि इस तिथि से नए संवत्सर अर्थात नए कैलेंडर्स की शुरुआत भी होती है। सभी भारतियों को नवरात्र के अतिरिक्त नववर्ष का उत्सव भी धूमधाम से मनाना चाहिए। इसे मनाने के लिए छोटी सी तैयारी कीजिए। अपने परिवार के लोगों मित्रों और अन्य लोगों को नववर्ष की शुभकामनाएं दें, माथे पर पीला तिलक लगाएं , सवेरे उदित होते सूर्यदेव को अर्घ अर्पित करें।
अपने घर-भवन पर केसरिया ध्वज लहराएं, नए वस्त्र पहनकर मंदिर जाएँ, जरुरतमंदों को उपहार दें। लोग पूछेंगे यह क्यों, यह कौनसा दिवस है। तो आप गर्व से बताएं कि इस दिन ही भगवान ब्रह्माजी ने सृष्टि का आरंभ किया था।
महान गणितज्ञ भास्कराचार्य जी ने इसी दिन से सूर्योदय से सूर्यास्त तक दिन, महीना और वर्ष की गणना करते हुए पांच अंगों वाले ‘पंचांग’ की रचना की थी। हमारी संस्कृति में इस दिन के महत्व का अनुमान इन बातों से भी लगाया जा सकता है कि इसी दिन मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्रीरामजी का राज्याभिषेक हुआ था। इसी दिन से शक्ति पर्व नवरात्र का प्रारंभ होता है, जिसे हम ग्रीष्म नवरात्र भी कहते हैं। इसी दिन चक्रवर्ती सम्राट युधिष्ठिर का भी राज्याभिषेक हुआ था, उनके नाम से युगाब्द (युधिष्ठिर संवत्) का आरम्भ किया गया था । उज्जयिनी सम्राट विक्रमादित्य द्वारा विक्रमी संवत् का प्रारंभ भी इसी पवित्र तिथि से हुआ था। शालिवाहन शक संवत् जिसे हम भारत सरकार के राष्ट्रीय पंचांग के रूप भी जानते है, का प्रारंभ भी इसी दिन से होता है। इसके साथ ही आर्यों को अपने स्वत्व का बोध कराने के उद्देश्य से महर्षि दयानन्द द्वारा आर्य समाज की स्थापना भी इसी तिथि को की गई थी।
भारत का प्रमुख सांस्कृतिक पर्व होने के कारण वर्षप्रतिपदा का उत्सव राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के छह प्रमुख उत्सवों में से एक है। इसके साथ ही आपको यह भी जानना चाहिए कि संघ के संस्थापक डॉ. केशव बलिराम हेडगेवार जी का जन्म भी चैत्र प्रतिपदा के दिन ही हुआ था साथ ही सिख परंपरा के द्वितीय गुरु अंगद देव जी की जयंती का प्राकट्य दिवस भी चैत्र प्रतिपदा ही है।
चैत्रे मासिजगद्ब्रह्मा ससर्ज प्रथमेहनि… पृथ्वी पर आज के ही दिन मनुष्य उत्पन्न हुए थे। अतः यह हमारा मधुमय नववर्ष है। भारतीय काल गणना के अनुसार सृष्टि को प्रारंभ हुए लगभग एक अरब 95 करोड़ 58 लाख 85 हजार 122 वर्ष बीत चुके हैं तब से सनातन सृष्टि निरंतर चल रही है।
भारतीय काल गणना विश्व में सबसे वैज्ञानिक और तर्क सम्मत है। वासंतिक नवरात्रशक्ति पर्व के रूप में मनाने के साथ ही भारतीय नववर्ष सहित अन्य महापुरुषों से जुड़े इस पावन दिन को एक उत्सव के रूप में मनाना न भूलें।
आइये बाल-वृद्ध और युवा सब मिलकर चैत्र प्रतिपदा की पावन वेला को आनंदमय महोत्सव के रूप में मनाएं।
सुरभित शीतल मन्द मलय हो, नववर्ष शुभ मंगलमय हो।
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