प्रतीक तिवारी

बुंदेलखण्ड जैसे सूखाग्रस्त क्षेत्र में जब जलस्रोतों की ऐसी दुर्दशा देखने को मिलती है, तो यह प्रशासन की लाचार व्यवस्था का और उस क्षेत्र के लोगों की गैर जिम्मेदारी का सीधा प्रमाण प्रदर्शित करती हैं। जब बात आती है जलसंकट से जूझते क्षेत्र में स्थित रामायण काल के पवित्र धर्मस्थल चित्रकूट की तो यह विषय और भी गंभीर और चिंतनीय हो जाता है। आज चित्रकूट तीर्थ क्षेत्र में प्रवाहित होने वाली सदानीरा मंदाकिनी का प्रवाह और शुद्धता पर ग्रहण लगता सा प्रतीत हो रहा है।

आज पुण्य सलिला मंदाकिनी इतनी प्रदूषित हो गई है कि कहीं-कहीं उसने नाले का रूप ले लिया है। चित्रकूट का हृदयस्थल कहे जाने वाले रामघाट पर भी मंदाकिनी अपनी दयनीय स्थिति में अपने पवित्रता के हनन को साफ-साफ व्यक्त कर रही है। आज यह स्थिति है कि लोग इसके जल में आचमन तो दूर स्नान करने से भी कतराते हैं, फिर भी तीर्थ की गरिमा और अपने धार्मिक मूल्यों को बचाने के लिए स्नान कर ही लेते हैं।

मंदाकिनी नदी का पौराणिक और आध्यात्मिक महत्व

अपने पति अत्रि ऋषि के आचमन, स्नान और पूजन के लिए महासती अनुसूया जी ने गंगाजी की एक धारा को अपने पतिव्रत धर्म एवं तपोबल के दम पर चित्रकूट के धरा पर प्रकट किया था। यह नदी चित्रकूट के सती अनुसूया नामक स्थान से निकलकर चित्रकूट की परिधि तक ही सीमित रह जाती है। चित्रकूट क्षेत्र के साधु-संतों, जीव-जंतुओं और मानव जाती के कल्याण के लिए सती अनसूया द्वारा यह यहां लाई गई थी, जो अनादिकाल से आजतक प्रवाहित हो रही है। वनवास काल के दौरान भगवान राम, लक्ष्मण और माता जानकी ने इसी मंदाकिनी गंगा के पावन जल में स्नान आचमन और तर्पण किया था। इसी मंदाकिनी के तट पर गोस्वामी तुलसीदास जी को रामजी ने अपने दर्शन दिए थे और हनुमान जी ने भी तोते के रूप में तुलसीदास जी का मार्गदर्शन किया था। 

तुलसीदास जी ने रामचरितमानस में मंदाकिनी का महत्व बताते हुए कहा है- 

नदी पुनीत पुरान बखानी। अत्रिप्रिया निज तप बल आनी॥

सुरसरि धार नाउं मंदाकिनि। जो सब पातक पोतक डाकिनि॥

अर्थात वह पवित्र नदी है, जिसकी पुराणों ने प्रशंसा की है और जिसको अत्रि ऋषि की पत्नी अनुसूया अपने तपोबल से लाई थीं। वह गंगाजी की धारा है, उसका मंदाकिनी नाम है। वह सब पाप रूपी बालकों को खा डालने के लिए डाकिनी (डायन) रूप है।

मंदाकिनी में प्रदूषण के कारण

करोड़ों लोगों की आस्था का केंद्र मंदाकिनी में गिर रहे सीवर के नालों से पानी काफी दूषित है। मंदाकिनी के किनारे स्थित बड़े-बड़े मठों से निकल रहे अवशिष्ट जल एवं अन्य पदार्थ मंदाकिनी में ही गिराये जा रहे हैं। मंदाकिनी किनारे स्थित बड़े-बड़े होटलों और गेस्ट हाउसों के मलमूत्र और अन्य प्रदूषक अवशिष्ट पदार्थ भी मंदाकिनी में ही गिराए जा रहें हैं। नगर के नालों को भी मंदाकिनी में ही गिराया गया है। कई वर्षों से मंदाकिनी को साफ करने के लिए सरकारी योजनाएं बन रही हैं, लेकिन अब तक कोई योजना सही तरह धरातल पर नहीं उतर पायी है। चित्रकूट की कुछ समाजसेवी संस्थाएं कुछ दिन मंदाकिनी को साफ करने का काम करती हैं उसके बाद भी स्थिति वैसी की वैसी ही बनी रहती हैं। यही कारण है कि आज यह पौराणिक नदी अपनी पवित्रता और अविरलता को खोती जा रही है

क्यों प्रदूषण मुक्त नहीं हुई मंदाकिनी?

प्रसाशन द्वारा कई बार मंदाकिनी को साफ कराने और प्रदूषण मुक्त करने के लिए योजनाएं लाई गईं, पर आज भी मंदाकिनी की स्थिति ज्यों की त्यों है। अनेक संस्थाओं ने कई प्रकार की मुहिम चलाई, जागरूकता अभियान चलाया, शिविर लगाया, रैलियां निकाली, जल यात्रा, मंदाकिनी पाठशाला, खून से पत्र लिखे गए पर प्रदूषण दिन प्रतिदिन मंदाकिनी में बढ़ता ही जा रहा है। आखिर बस ये सब करने से कोई नदी साफ और प्रदूषण मुक्त नहीं हो पाएगी। उसके लिए जमीनी स्तर पर काम करना होगा। बस दो चार दिन कही किसी न किसी घाटों की सफाई करा दी गई और आशा करते हैं कि उससे मंदाकिनी साफ हो जाएगी, जब अनवरत शहरों का अवशिष्ट जल और तमाम नदी तट स्थित मठों मंदिरों और सराय, धर्मशालाओं और होटलों का गंदा पानी निरंतर नदी में गिरेगा तो मंदाकिनी प्रदूषण मुक्त कैसे हो पाएगी। प्रशासन सहित हर एक नागरिक का यह दायित्व बनता है कि वो अपने स्तर के हिसाब से मंदाकिनी गंगा को निर्मल, अविरल और प्रदूषण मुक्त करने के लिए प्रयासरत हो। तीर्थयात्रियों को भी इस बात का ध्यान देना चाहिए कि वे घाटों की स्वच्छता का ध्यान रखें और गंदगी न फैलाएं। 

(लेखक स्वतंत्र पत्रकार हैं।)

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