प्रतीक तिवारी
‘तीर्थ’ शब्द को सुनते ही मन में देव स्मरण, श्रद्धा, आध्यात्म की अनुभूति होने लगती है। हमारे मस्तिष्क में दर्शन, पूजन, दान और धर्म की रेखा खिंच जाती हैं। हमारा भारतवर्ष तीर्थों, दिव्य धामों और पवित्र धार्मिक स्थलों की भूमि है। यहां के हर प्रांत और क्षेत्र में कोई न कोई तीर्थ स्थल या पवित्र भूमि स्थित है। भारत में चारधाम, सप्तपुरियां अयोध्या, मथुरा, माया(हरिद्वार), काशी, कांची, अवंतिका (उज्जयिनी) और द्वारिकापुरी और तमाम छोटे बड़े प्रख्यात-विख्यात तीर्थ स्थल हैं। हमारे सनातन धर्म में तीर्थ यात्राओं की परंपरा है। कहा जाता है कि तीर्थ स्थल हमें भगवान के नजदीक ले जाते हैं और तीर्थयात्रा से हमारे पापों का नाश होता है और पुण्य की प्राप्ति होती है। तीर्थयात्रा और तीर्थ क्षेत्रों के कुछ नियम और मर्यादाएं होती हैं, जिन नियमों का पालन करते हुए ही हमें तीर्थ एवं धार्मिक यात्राएं करनी चाहिए।
तीर्थ यात्रा में नियम और धर्म के पालन करने का बहुत महत्व है, परंतु वर्तमान समय में ठीक इसके विपरीत हो रहा है। आज तीर्थों की मर्यादा खत्म हो गई है। आज तीर्थ स्थल छुट्टी बिताने, पिकनिक मानने और मूड फ्रेश करने का स्थान बन गए हैं, अधिकांश लोग तीर्थ स्थलों पर बस मौज-मस्ती के लिए जाते हैं। देवदर्शन और उस तीर्थक्षेत्र की महत्ता और पवित्रता से उनको कोई मतलब नहीं है।
आज अनेक देवालयों या देव स्थानों पर आपको ज्यादा से ज्यादा नव युवक और युवतियां देखने को मिलेंगे जो अपने मनमाने रवैये के साथ तीर्थ स्थलों पर जाते हैं और न उनका पहनावा उचित रहता है न चाल-ढाल न ही हाव-भाव। वहां भी नई पीढ़ी अपने नखरे दिखाने से बाज नहीं आती है। वहां की पवित्रता, प्राचीनता और पौराणिक महत्ता से उन्हें कोई मतलब नहीं है। वे बस अपने मौज-मस्ती और मनोरंजन के लिए वहां आते हैं। रिल्स, ब्लॉगिंग, वीडियो आदि बनाने वालों ने तो तीर्थों की महिमा को बढ़ाने की जगह और कम कर दिया है। इन लोगों को बस अपनी वीडियो बनाने से मतलब रहता है। उन्हें उस तीर्थ या धाम की परंपरा और मर्यादा को मानने में कोई दिलचस्पी नहीं है। अपने अनुसार वे किसी भी तीर्थ या धाम पर वीडियो बनाकर अपने अनुरूप किसी तरह से प्रस्तुत कर देते हैं। आम लोगों का भी तीर्थों और देव स्थानों पर जाकर सिर्फ फोटो खिंचवाना और वीडियो बनाना ही मक़सद रह गया है। तीर्थों की महिमा बस आज इतने में ही सिमट कर रह गई है।
यह कहना गलत है, पर यह कटु सत्य है कि तीर्थक्षेत्र और भगवान के धाम आज भौतिक सुख के अड्डे बन गए हैं। तमाम नव विवाहित जोड़े विवाह के तुंरत बाद हनीमून और क्वालिटी टाइम बिताने के लिए तीर्थों पर दर्शन के लिए जाते हैं। बहुत से प्रेमी-प्रेमिका अपने घर से तीर्थाटन के बहाने तीर्थों पर निकल जाते हैं और देवदर्शन के बहाने या कहे तीर्थाटन के आढ़ में मौज-मस्ती करते हैं और उस पुण्य क्षेत्र को कलंकित करते हैं। अभी कुछ दिन पहले ही एक वीडियो बहुत चर्चा में था। जिसमें किसी तीर्थ के पवित्र नदी में एक स्त्री-पुरुष का जोड़ा प्रेमालाप कर रहा था। तब वहां आस-पास के अन्य लोगों ने उनका विरोध किया था। वह असामाजिक दृश्य इस बात को प्रमाणित कर रहा था कि आज लोग तीर्थ स्थानों की मर्यादा भूल चुके हैं।
बहुत से लोग तीर्थ तो करने जाते हैं, उसके साथ अपने सारे सौख भी पूरे करते हैं। कितने लोग तो ऐसे है कि तीर्थयात्रा या तीर्थक्षेत्र में जाकर भी ब्रह्मचर्य, सात्विक भोजन और सात्विकता का पालन नहीं कर पाते, बल्कि और बढ़चढ़कर अनेक प्रकार के व्यसन और कुकर्म करते हैं और इन सब प्रकार का इंतजाम वहां के होटलों और गेस्टहाउस में आसानी से हो जाता है।
हम यहां किसी विशेष तीर्थ स्थान का नाम नहीं लेंगे पर कुछ पर्वतीय तीर्थ स्थलों में एसी भी वस्तुएं देखने को मिल जाती है जिनका वहां पर कोई काम नहीं है और वे वस्तुएं तीर्थ एवं धर्म क्षेत्रों में वर्जित होती हैं और उन आपत्तिजनक वस्तुओं की उपलब्धता तीर्थ स्थलों और धर्म क्षेत्रों की महिमा और पवित्रता को कलंकित करती हैं। लोगों की जरूरत और शौक के कारण वहां पर उनकी हर उचित-अनुचित जरूरतों को पूरा वहां के बाजार करते हैं, भले पर्दे के पीछे या छुपाकर ही क्यों न करें।
आज जो तीर्थ स्थलों और पवित्र क्षेत्रों में प्राकृतिक, दैविक और अन्य घटनाएं घट रही हैं। वो सब इन्हीं कारणों की ओर संकेत करती हैं। ईश्वर हमलोगों को समय-समय पर चेतावनी देते हैं, पर हम और हमारा समाज इन बातों को नजरअंदाज कर देता है। ऐसा नहीं की सब लोग एक जैसे ही हैं। आज भी बहुत से लोग बड़े सात्विक भाव, श्रद्धा-भक्ति, आस्था और विश्वास के साथ पूरे मनोभाव के साथ तीर्थयात्रा करते हैं और तीर्थों की मान्यतानुसार स्नान-दान, दर्शन-पूजन का विधान निभाते हैं, पर ऐसे लोगों की संख्या अब कम हो चुकी है।
तीर्थाटन और देवदर्शन की कोई अवस्था और आयु नही होती हम जब चाहे तब ईश्वर के दरबार में जा सकते हैं, पर वहां के नियम और मर्यादा का पालन भी जरूरी है। तभी हम ईश्वर और उस तीर्थक्षेत्र के दर्शन के सच्चे अधिकारी बन सकेंगे।
(लेखक स्वतंत्र पत्रकार हैं।)