यह देश का दुर्भाग्य रहा कि हमारे हजारों वर्ष प्राचीन इतिहास एवं संस्कृति को नई पीढ़ी के से छिपाने का षड्यंत्र रचा गया, किन्तु अब देश बदल रहा है, आजादी के अमृतकाल में देश अपने ऐसे गुमनाम नायकों को याद कर रहा है जिन्होंने मातृभूमि के लिए अपना सर्वत्र निछावर कर दिया, पूर्व सरकारों और इतिहासकारों ने भले ही उन्हें वह सम्मान नहीं दिया जिसके वह हकदार थे। किन्तु आज देश का युवा जागृत हो गया है और खोज खोजकर अपने गुमनाम नायकों के बारे में जानना चाहता है। आज हम जिस नायक की बात करेंगे वह भी उन्ही नायकों में से एक है। उस नायक का नाम है लाचित बोरफुकन।
मुगल आक्रांताओं से उत्तर-पूर्व भारत की रक्षा करने वाले वीर योद्धा और हिन्दू अहोम राजवंश के सेनापति लाचित बरपुखान का जीवन शौर्य, साहस, स्वाभिमान, समर्पण और राष्ट्रभक्ति का पर्याय है।
अहोम राजवंश ने असम पर लगभग 600 वर्षों तक राज किया। इस राजवंश का शासन 1218 से 1826 ईस्वी अर्थात अंग्रेजों के शासन काल तक चला। इस राजवंश की स्थापना 1228 ईस्वी में अखंड भारत काल के म्यांमार के चाओलुंग सुकप्पा नामक राजा ने की थी। इस राजवंश के लोग हिंदू धर्म के अनुयायी थे और हिन्दू धर्म को ही इन्होने अपना राजधर्म घोषित किया हुआ था।
मुगल पूरे भारत में इस्लाम की स्थापना करना चाहते थे, उनकी इसी नीति के चलते वे पूर्वोत्तर भारत में भी कब्जा करना चाहते थे। अहोम राजवंश के साथ उनका टकराव उनकी इसी विस्तारवादी नीति के कारण हुआ। मुगलों और अहोम राजवंश के बीच करीब 70 सालों तक रुक-रुककर संघर्ष चला, लेकिन मुगल इस पूर्वोत्तर में कभी अपनी जड़ें जमाने में सफल नहीं हो सके।
असम के वीर योद्धा लाचित बोरफुकन के साथ हुए युद्ध के बाद मुगलों का उत्तर पूर्व भारत में साम्राज्य विस्तार का स्वप्न सदैव के लिए टूट गया।
प्रसिद्ध इतिहासकार सूर्यकुमार भूयान ने लाचित बरफुकन की मौलिक रणनीति और वीरता के कारण उन्हें उत्तर-पूर्व भारत के ‘शिवाजी’ की उपाधि दी थी। वास्तव में, लाचित बरफुकन ने उत्तर-पूर्व भारत में वही स्वातंत्र्य-ज्वाला जलाई जो मुगल आक्रांताओं के विरुद्ध दक्षिण-पश्चिम भारत में छत्रपति शिवाजी महाराज ने, पंजाब में गुरु गोविंद सिंह ने, राजपूताना में महाराणा प्रताप और बुंदेलखंड में राजा छत्रसाल ने जलाई थी।
इसी तथ्य को रेखांकित करते हुए पूर्व राज्यपाल श्रीनिवास कुमार सिन्हा ने अपनी पुस्तक ‘मिशन असम’ में लिखा है, “महाराष्ट्र और असम हमारे विशाल और महान देश के दो विपरीत छोर पर हो सकते हैं। लेकिन वे एक इतिहास, एक साझी विरासत और एक भावना से एकजुट होते हैं। मध्ययुगीन काल में उन्होंने दो महान सैन्य नेताओं, महाराष्ट्र में छत्रपति शिवाजी और असम में लाचित बरफुकन को जन्म दिया है।”
भारत में इस वीर योद्धा की स्मृति को नमन करते हुए प्रतिवर्ष 24 नवम्बर को ‘लाचित दिवस’ के रूप में मनाया जाता है। वर्ष 1999 से नेशनल डिफेंस एकेडमी में बेस्ट कैडेट को दिया जाने वाला गोल्ड मेडल “लचित मेडल” के नाम से दिया जाता है।
वहीं असम में ताई अहोम युवा परिषद द्वारा उल्लेखनीय व्यक्तियों को ‘महावीर लाचित’ दिया जाता है। इस पुरस्कार के तहत 50000 रुपये का नकद पुरस्कार और तलवार प्रदान की जाती है।
भारत की पुण्यभूमि पर कण कण में वीरों का तेज समाया है। मातृभूमि की रक्षा करने वाले महान योद्धा लचित बरफुकन को कोटि-कोटि नमन है।
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