मातृभाषा अर्थात वह भाषा जो हम जन्‍म के साथ सीखते और बोलते हैं। मेरी माँ की भाषा, अर्थात मेरी अपनी भाषा। आसान भाषा में समझें तो जो भाषा हम जन्‍म के बाद सबसे पहले सीखते और बोलते हैं, वह हमारी मातृभाषा कहलाती हैं। तो फिर सवाल उठता है कि हमारी शिक्षा और व्यवहार में मातृभाषा के स्थान पर अंग्रेजी भाषा कहाँ से स्थापित हो गई, कहीं यह किसी षड्यंत्र का हिस्सा तो नहीं था।

दो शताब्दी पहले भारत में अंग्रेजी भाषा का विकास हुआ। बाद में लार्ड मैकाले ने भारत में अंग्रेजी शिक्षा की नींव रखी और धीरे-धीरे इसे पहले सरकारी कामकाज की भाषा और फिर बाद में मुख्य भाषा के रूप में स्थापित कर दिया गया।

स्कूलों में भी मातृभाषा के स्थान पर अंग्रेजी भाषा को बढ़ावा दिया जाने लगा। इसका दुष्परिणाम यह हुआ की यह दीमक की तरह हमारी मातृभाषा को खा गई।

अंग्रेजों ने तो भारतीयों को उनकी अस्मिता से दूर करने के लिए यह षड्यंत्र रचा था लेक्नी दुर्भाग्य यह रहा कि आजादी मिलने के बाद हमारी अपनी सरकार ने भी उसी षड्यंत्र को आगे बढाया, आजादी से पूर्व और उसके बाद के काल खण्ड में अंग्रेजी भाषा का ऐसा प्रचार-प्रसार किया गया की अगर आप अंग्रेजी नहीं जानते तो आपका जीवन ही बेकार है। आप योग्य हो यह आपकी कार्यकुशलता से नहीं अच्छी अंग्रेजी बोलने से सिद्ध होने लगा। अपनी मातृभाषा में बात करना हेय दृष्टि से देखा जाने लगा।

जिसका भारतीय परिवेश पर नकारात्मक प्रभाव पड़ा। लोगों को लगने लगा की उनकी अपनी मातृभाषा से ज्यादा आज के समय में अंग्रेजी भाषा का महत्व है जिस कारण लोग अंग्रेजी के पीछे भागने लगे, इसका परिणाम यह हुआ कि लोग अपनी मातृभाषा से दूर होते चले गए और युवा पीढ़ी ने अपनी सांस्कृतिक जड़ों पर कुल्हाड़ी मार ली।

आज भी विश्व इतिहास में कई ऐसे देश है जहाँ उनकी मातृभाषा में ही पढ़ाई होती है और उनका प्रदर्शन भी विदेशी भाषा पर निर्भर देशों से अच्छा है।

इस से एक बात तो तय है कि भाषा लोगों से जुड़ने का साधन है न कि योग्यता का मापदण्ड, समाज में कई ऐसे लोग मिल जायेंगे जो थोपी गयी विदेशी भाषा के चलते योग्य और कुशल होते हुए भी अपनी योग्यता सिद्ध नहीं कर सके।

वर्तमान सरकार ने मातृभाषा को बढ़ावा देने हेतु नई शिक्षा नीति में विशेष प्रावधान किये हैं। संसदीय राजभाषा समिति की बैठक में तत्कालीन गृह मंत्री अमित शाह ने कहा था कि हिंदी को अंग्रेज़ी का स्थान लेना होगा। दो भारतीय जब भी आपस में बात करें तो हिंदी या अपनी स्थानीय भाषा में बात करें। बहुत ही कम लोगों को पता होगा, अमित शाह के गृहमंत्री बनने के बाद उन्होंने अपने मंत्रालय में जो पहला आदेश दिया वह था कि अबसे उनके पास कोई भी फाइल अंग्रेजी में नहीं आएगी। बहुत महत्वपूर्ण हुआ तो उसके साथ हिन्दी अनुवादित फाइल होगी चाहिए। आज केन्द्रीय गृह मंत्रालाय उन गिने-चुने विभागों में है जहाँ लगभग 100 प्रतिशत काम हिन्दी में होता है।

नई शिक्षा नीति का लक्ष्य 2040 तक एक कुशल शिक्षा प्रणाली बनाना है, जिसमें सभी शिक्षार्थियों की सामाजिक-आर्थिक पृष्ठभूमि की परवाह किए बिना उच्च गुणवत्ता वाली शिक्षा तक समान पहुंच हो। इसका उद्देश्य एक नई प्रणाली का निर्माण करना है, जो भारत की परंपराओं और मूल्य प्रणालियों पर निर्माण करते हुए 21वीं सदी के सशक्त और समर्थ भारत का निर्माण करे।

भारतीय संविधान में मात्र 22 भाषाओं का जिक्र है जबकि भारत में आज के समय कुल भाषाओं की संख्या 1650 से अधिक है और 19,500 से अधिक बोलियाँ मातृभाषा के रूप में बोली जाती हैं। यहाँ 121 भाषाएँ ऐसी हैं जो भारत में 10,000 या इस से अधिक लोगों द्वारा बोली जाती है।
इसमें से कई ऐसी भाषाएं भी है जो या तो लुप्त हो चुकी हैं या लुप्त होने की कगार पर है। कुछ भी कहें भाषा की दृष्टि से भी भारत एक समृद्ध राष्ट्र हैं।
आज अनेक युवा ऐसे हैं जो अपनी भाषा, अपनी संस्कृति और अपने परिवेश में आत्मनिर्भरता की कहानी लिखकर अंग्रेजी के भ्रमजाल को चुनौती दे रहे हैं।
मातृभाषा के बारे में पूर्व राष्ट्रपति डॉ. अब्दुल कलाम ने स्वयं के अनुभव के आधार पर कहा है कि ‘मैं अच्छा वैज्ञानिक इसलिए बना, क्योंकि मैंने गणित और विज्ञान की शिक्षा मातृभाषा में प्राप्त की’। 
महात्मा गाँधी जी का मानना था कि राष्ट्रभाषा के बिना राष्ट्र गूँगा होता है।
भारतीय वैज्ञानिक सीवी श्रीनाथ शास्त्री का राष्ट्रभाषा को लेकर मत था कि अंग्रेजी के माध्यम से इंजीनियरिंग की शिक्षा प्राप्त करने वाले छात्रों की तुलना में भारतीय भाषाओं में पढ़े छात्र, अधिक वैज्ञानिक अनुसंधान करते हैं।

भारतीय नवजागरण के अग्रदूत कवि भारतेंदु हरिश्चंद्र ने निज भाषा के महत्व को बताते हुए लिखा था कि
‘निज भाषा उन्नति अहै, सब उन्नति को मूल
बिन निज भाषा ज्ञान के, मिटन न हिय के सूल’।
अर्थात… मातृभाषा की उन्नति बिना किसी भी समाज की तरक्की संभव नहीं है तथा अपनी भाषा के ज्ञान के बिना मन की पीड़ा को दूर करना भी मुश्किल है। 

निज भाषा का महत्व बताते हुए वे आगे लिखते हैं कि
‘अंग्रेजी पढ़के जदपि, सब गुण होत प्रवीन।
पै निज भाषा ज्ञान के, रहत हीन के हीन।’
अर्थात अंग्रेजी जैसी विदेशी भाषाओँ में प्राप्त शिक्षा से आप प्रवीण तो हो जाओगे किंतु सांस्कृतिक एवं व्यावहारिक दृष्टिकोण से हीन ही रहोगे।

वर्ष 2014 में चुनी गयी मोदी सरकार भी मातृभाषा को बढ़ावा दे रही है। नई शिक्षा नीति इस दिशा में एक सार्थक पहल है जिसमें मातृभाषा को लेकर अनेक प्रावधान किये गये हैं।यह नीति भारत के स्वत्व के आधार पर भारत को गढ़ने का दस्तावेज है जिसमें मातृभाषा का विशेष महत्व है। नि:संदेह जब भारत के बच्चे अपनी मातृभाषा में पढेंगे लिखेंगे तो वे भारतीय जीवन मूल्यों, भारत की पहचान और अपनी मिटटी का प्रतिनिधित्व भी सरलता से कर सकेंगे। इस बात में कोई सन्देह नहीं कि माँ, माटी और मातृभाषा का कभी कोई विकल्प नहीं हो सकता है यही वे भाव संवेदनाएं हैं जो नई पीढ़ी को अपनी मातृभूमि से, अपनी सांस्कृतिक जड़ों से और अपनी पहचान से जोडती हैं।

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By pratik khare

पत्रकार प्रतीक खरे झक्कास खबर के संस्थापक सदस्य है। ये पिछले 8 वर्ष से पत्रकारिता के क्षेत्र में सक्रिय हैं। इन्होंने कई समाचार पत्र, पत्रिकाओं के साथ - साथ समाचार एजेंसी में भी अपनी सेवाएं दी है। सामाजिक मुद्दों को उठाना उन्हें पसंद है।

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