जिस तरह आज देश में ईसाई मिशनरियों और मुस्लिम जिहादियों द्वारा भोले-भाले वनवासियों और पथभ्रांत हिन्दुओं को लोभ-लालच में फंसाकर जबरन मतांतरण का कुचक्र बड़े पैमाने रचा जा रहा है, ठीक ऐसा ही परिदृश्य मध्ययुग में भी था जब देश में सत्तासीन मुगल आक्रान्ता देश की हिन्दू जनता को डरा-धमकाकर-बरगलाकर जबरन इस्लाम कबूलने को बाध्य कर रहे थे, और जिस तरह आज देशभर का सन्त समाज जबरन मतांतरण के कुचक्र के विरुद्ध मुखर जनजागरण में जुटा हुआ है… तब ठीक वैसे ही मध्ययुगीन भक्तिकालीन कवियों ने जबरन मतांतरण के विरुद्ध व्यापक जनजागृति अभियान चलाकर सनातनधर्मियों को न केवल विधर्मी होने से बचाया था अपितु भय व लालच में इस्लाम कबूल चुके लोगों की बड़ी संख्या में स्वधर्म में वापसी भी करायी थी। मध्ययुग में इसका श्रेय जिन सन्तों को जाता है उनमें से एक हैं भक्त शिरोमणि सन्त रविदास।


काशी के मड़ुआडीह ग्राम में पिता संतोख दास और माता कर्मा देवी के घर 1398 की माघ पूर्णिमा को जन्में संत रविदास की गणना देश में मतांतरण के खिलाफ अलख जगाने वाले भक्तिकालीन कवियों में प्रमुखता से होती है।
जब 14वीं-15वीं शताब्दी में हिन्दू धर्मावलम्बियों का जीना दूभर था। हिंदूओं को धन का प्रलोभन देकर और डरा-धमका कर मतांतरण कराना आम बात थी। उनपर विभिन्न प्रकार के कर लगाये जा रहे थे। शादी-ब्याह पर जजिया, पूजा -पाठ पर जजिया, तीर्थ यात्रा पर जजिया, यहां तक कि शव-दाह पर जजिया लगा दिया गया था। इन अत्याचारों से देश का हिन्दू समाज त्राहि-त्राहि कर रहा था। हिन्दू परंपराओं के पालन पर ‘कर’ वसूली और इस्लाम मानने वालों को छूट देने के पीछे एकमात्र भाव यही था कि हिन्दू धर्मावलम्बी तंग आकर इस्लाम स्वीकार कर लें।
ऐसे विषम समय में जगद्गुरु स्वामी रामानंदाचार्य ने भारत माता को इस्लामी अत्याचार से मुक्त कराने और देशवासियों को विधर्मी होने से बचाने के लिए अपने विभिन्न, भिन्न जाति शिष्यों में से चयनित कर जिस 12 भागवत शिष्य मण्डली का गठन किया था… उन 12 प्रमुख शिष्यों में से एक संत रविदास भी थे।
संत रविदास ने अपनी अनूठी रचनाधर्मिता के आधार पर जिस समतामूलक समाज की परिकल्पना की वह अपने आप में क्रान्तिकारी है।
वे सामाजिक समानता तथा समरसता के लिए सतत जनजागरण करते रहे। संत कबीर के समसामयिक व उनके गुरुभाई रविदास ने “जात-पात पूछे न कोई, हरि को भजे सो हरि का होई” की उक्ति को अपने जीवन में चरितार्थ कर दिखाया।
संत रविदास जैसे भक्तिकालीन संतों ने अपनी अनुपम शिक्षाओं के द्वारा जीवन जीने का जो मार्ग दिखाया, उसी पर चलते हुए आज के भारत ने अपनी आधुनिक संवैधानिक व्यवस्थाओं को कायम किया है। हमारी सामाजिक व्यवस्था मूलत: मध्यकालीन भक्ति आंदोलन से उपजे दया, प्रेम, करुणा, क्षमा, धैर्य, सौहार्द, समानता, विश्वबंधुत्व और सत्यशीलता जैसे चारित्रिक गुणों पर ही आधारित है। संत रविदास की कल्पना एक ऐसे समाज की थी जिसमें राग, द्वेष, ईर्ष्या, दु:ख व कुटिलता का कोई स्थान न हो। उन्होंने घृणा और सामाजिक प्रताड़ना के बीच टकराहट और भेदभाव मिटाकर प्रेम तथा एकता का संदेश दिया। वे ऐसे आदर्श समाज की परिकल्पना करते हैं जिसमें धार्मिक कुरीतियां और जाति-पाति का भेदभाव न हो…सन्त शिरोमणि रविदास जी को कोटि-कोटि नमन है।

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By pratik khare

पत्रकार प्रतीक खरे झक्कास खबर के संस्थापक सदस्य है। ये पिछले 8 वर्ष से पत्रकारिता के क्षेत्र में सक्रिय हैं। इन्होंने कई समाचार पत्र, पत्रिकाओं के साथ - साथ समाचार एजेंसी में भी अपनी सेवाएं दी है। सामाजिक मुद्दों को उठाना उन्हें पसंद है।

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